आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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जनाब चंद्रेश कुमार साहिब ,लघु कथा में गहराई से शिरकत करने और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,महरबानी
तमाशबीन
तलाश
" अरे , कौन हो तुम ? मेरे घर में क्या कर रहे हो ? मेरे बच्चे कहां है ? "
" अरे , कौन से बच्चे ? मुझे क्या पता ! आप कौन हो ? और ये घर तो अब मेरा है ! "
" तेरा घर ? मेरे घर को अपना बनाकर मुझसे ही पूछ रहा मेैं कौन और तू आया कहाँ से ? "
" मुझे कुछ समझ नही आ रहा है कि तुम क्या कह रही हो , आखिर कौन हो ? "
" अरे , मैं हूँ माँ , और यह मेरा घर है , पर तूने मेरे में घुसपैठ करके घर को तबाह कर दिया । बता, बता , मेरे आँखों के तारे कहां हैं ? "
" अरे आप ही माँ हो ? मैं खुद नही आया यहाँ , आपके बच्चे ही लाये है मुझे , और अब वे मेरे बच्चे झुठ ,कपट , छल ,लालच और बेईमानी के साथ मिलकर खुब खेल रहे हैं , मौज - मस्ती कर रहे हैं ।
" नही , नहीं , मेरे बच्चे बहुत संस्कारी है । श्रवण कुमार है । तू झूठ बोल रहा है ।"
" नही माँ , अब वे वैसे नहीं रहे है । देखो , देश में बढते वृद्धाश्रम , नारी निकेतन, विधवा आश्रम , अनाथालय , माँ , देखो , कहां गए रामकृष्ण , हरिश्चंद्र , श्रवण कुमार सब स्वहित में लगे है । "
" ओह यह सब नही , नही , मेरे बच्चे ऐसे.. जा रही हूँ , अपने लिये अनाथालय ढूंढने । पर ये तो बताओ मेरे घर में पैर जमाकर बैठे तुम कौन हो ? "
" हा हा हा हा , तुम्हारे बच्चो के दिल दिमाग पर राज करने वाला , भ्रष्टाचारsss ! हूं मै भ्रष्टाचारssss ! "
मां भारती अब लाचार थी , बुझे हुए मन लिये डगमगाते कदमों से विदा हो गई ।
हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट से गुँज उठी ।
कोने की कुर्सियों पर कलाकारों की खरीद फरोख्त की लिस्ट लेकर थियेटर मालिक अपने व्यवसाय में अब तक व्यस्त था ।
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मौलिक व् अप्रकाशित
बबीता जी, भ्रष्टाचार पर केन्द्रित है ये लघु कथा भारत माता के संस्कारी बच्चे आज कहाँ गए ..अच्छा सन्देश देने के बावजूद प्रदत्त विषय से अलग लगी | इसका अंत बेहतर हो सकता था | खैर संवादों में कहानी अच्छी है हार्दिक बधाई
लघुकथा अच्छी है बबिता चौबे जी, लेकिन मुझे लगता है कि आप शायद तमाशबीन विषय का अर्थ समझने में असमर्थ रही हैं I बहरहाल,प्रतिभागिता हेतु अभिनन्दन स्वीकारें I
झुठ=झूठ
खुब=खूब
हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट से गुँज उठी ।=हाॅल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा ।
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