आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आपकी टिप्पणी के बगैर तो सब अधूरा सा था । बहुत, बहुत आभार आदरणीया कांता दी! सदैव स्नेह बनाये रखिये । आपने रचना पसंद की मेरा तो लेखन सार्थक हो गया । सादर नमन ।
कथा की थीम सही पकड़ी आपने , राहिला जी। किसी देश को नष्ट करना है तो बम गिराने की जरूरत नहीं , शिक्षा व्यवस्था का भट्ठा बैठा दो , बस। दो
शब्दों के अर्थ ब्रैकट में देने पड़े आपको। लगता है पाठकों की बौद्धिक क्षमता पर भरोसा नहीं था। नहीं ही था तो ब्रैकट वाले शब्द मूल कथा का हिस्सा बन सकते थे। संवाद आखिर में आ कर कुछ ज्यादा बड़े हो गए , राहिला जी। इस पाठक की कोई बात बुरी लगी हो तो क्षमा कर दीजिएगा।
नहीं, नहीं आदरणीय नील सर जी! ये तो मेरी कम अक्ली है जो ब्रैकट में शब्दार्थ देने की गुस्ताखी कर दी इतने बड़े मंच पर । रही बात आखरी संवाद के बड़े होने की तो कोशिश करूंगी अगली बार बेहतर लिखने की । आपकी अमूल्य टिप्पणी के लिये बहुत, बहुत आभार । सादर प्रणाम
आदरणीया राहिला जी, आपने छोटी आंखो और चपटी नाक वाले षड्यंत्रकारी के षड्यंत्र को बखूबी उजागर किया है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई सादर
बहुत, बहुत शुक्रिया आदरणीय राजेन्द्र सर जी! ये तो आपका बड़प्पन है ।वरना मेरी लेखनी अभी प्राथमिक शाला की है ।बहुत, बहुत आभार इस हौसला अफ़जाई का।सादर नमन
//खैरात(भीख)के पैसे हों या कामयाबी, इससे ना कोई अमीर बन सकता है ना काबिल।"//
क्या बात है, बहुत खूब, शिक्षा व्यवस्था पर करारा तंज, अच्छी लघुकथा, बधाई हो आदरणीया राहिला जी.
निशानची
“अरे वाह! मैं साल भर कोर्स करने लंदन क्या गया, यार यहाँ का तो नक्शा ही बदल गयाI” दफ्तर में चारों ओर नज़र घुमाते हुए प्रशंसात्मक लहजे में आलोक ने कहाI
सभी संगी साथी उसके स्वागत में घेरा बना कर खड़े हुए थे कि तभी पीछे से किसी ने उसको बाहों में जकड़ते हुए कहा:
“अबे तू तो पूरा अंग्रेज बन कर लौटा है लंदन सेI”
“अबे मिश्रा! मैं तो सिर्फ अँगरेज़ ही बना हूँ, पर तू तो सुना है कम्पनी का चीफ बन गया है!” आलोक ने प्रसन्नता और आश्चर्य मिश्रित स्वर में कहाI
“चलो आओ! मेरे ऑफिस में बैठ कर बात करते हैंI” अपने केबिन का दरवाज़ा खोलते हुए मिश्रा ने कहाI “ये बता कि क्या पिएगा? ठंडा या ....?”
वातानुकूलित कमरे में घुसते ही आलोक ने मिश्रा की बात काटते हुए प्रश्न किया:
“यार ये चमत्कार कैसे हो गया? तेरी एक सीनियर भी थी न? वो दलित लड़की, क्या नाम था उसका?” लड़की का नाम याद करते हुए आलोक ने पूछाI
“पल्लवी!” उसने धीरे से मुस्कुराते हुए उत्तर दियाI
“हाँ हाँ, पल्लवीI” नाम सुनते ही आलोक का चेहरा खिल उठाI “उसका क्या हुआ? उसका तो पूरा चांस था और वो तो थी भी सीनियरI”
“बताता हूँ, बताता हूँ!, एक ही सांस में पूरा हाल जान लेगा क्या?”
आलोक की व्यग्रता और उत्सुकता देखते हुए उसने कहाI
”बता तो सही पल्लवी गई कहाँ? शहर छोड़ गई या दुनिया? तू तो जूनियर था उससे, आखिर ये चमत्कार हुआ कैसे?”
“ऐसा कुछ नहीं है यार! बस ये समझ ले कि अपनी अच्छी सूरत की वजह से मौके पर चौका लग गया मुझसेI” चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए उसने कहाI
“क्या मतलब?” आलोक की उत्सुकता बढ़ती जा रही थाI
“पल्लवी अब एक गृहणी और मेरी धर्मपत्नी हैI और मेरे होने वाले बच्चे की माँ भीI"
मौलिक एवं अप्रकाशित
आपको कथा पसंद आई ... शुक्रिया राहिला जी.
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