आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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बहुत शुक्रिया , बड़ी मेहरबानी क्षत्रिय जी। प्यार बनाए रखिएगा
कथा पढ़ते-पढ़ते ,पाठक पात्रों के प्रति जहां तीव्र वित्र्ष्णा जगाती है वही समानांतर चलते हुए लडकी के प्रति गहरी सहानुभूति | यही तो उद्देश्य हुआ करता है एक सफल रचना का , जिसके लिए आप बधाई के पात्र है | स्वीकार करें ..
आपकी बधाई सर आँखों पर सुधीर भाई। समय निकाल पाएं तो अवश्य बताएं कि रचना में सुधार की कहीं गुंजायश है। मुझे अच्छा लगेगा।
बहुत आभारी हूँ नीता जी इस मुक्त-कंठ प्रशंसा के लिए , रचना के विश्लेषण के लिए।
बहुत ही प्रभावोत्पादक लघुकथा से आयोजन का शुभारम्भ किया है आ० प्रदीप नील जीI खादी और स्टेथोस्कोप के प्रतीकों ने समां बाँध दिया हालाकि नीली पगड़ी वाली बात समझ नहीं आईI (पंजाब में नीली पगड़ी अकालियों को कहा जाता है) बहरहाल, प्रदत्त विषय के साथ पूर्णतय: न्याय हुआ है, अंत इतना जबर्दस्त है कि यह लघुकथा मुझे बहुत देर तक याद रहेगीI इस विशिष्ट प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित हैI
आदरणीय प्रभाकर जी , आपसे इतनी प्रशंसा पा कर भला कौन न सातवें आसमान पर जा पहुंचेगा ! बदले में धन्यवाद बहुत ही छोटा शब्द है। नीली पगड़ी वास्तव में ही कन्फ्यूज़न पैदा करती है। यूँ भी नीले रंग का कथा में कोई विशिष्ट उद्देश्य नहीं था। हरियाणा में पीली, गुलाबी और हरी पगड़ी राजनैतिक दल विशेष की पहचान है , ऐसे में मुझे लगा , वह रंग ले लूँ जो अभी बचा हो। इसकी जगह कोई और शब्द आ सकता है तो कृपया आप तथा अन्य पाठक सुझाएँ। रचना की मुक्त-कंठ प्रशंसा के लिए बहुत आभारी हूँ , प्रभाकर जी।
दरअसल यदि आयोजन का प्रारंभ ऐसी उत्कृष्ट रचना से हो जाए तो आनंद बहुगुणित हो जाता है आ० प्रदीप नील जीI और फिर कोई अहमक ही होगा जो ऐसी लाजवाब रचना पर दिल खोल कर दाद न देI वैसे नीली पगड़ी को सफ़ेद कालर नहीं किया जा सकता क्या?
जी शुक्रिया आदरणीया। आप सही कह रही हैं ,हकीकत बहुत ही वीभत्स है , जानकी जी।
एक मजबूर पिता और उसकी मासूम बेटी राजनीति की गन्दी चाल में फंस गए । दिल को अंदर तक हिला दिया लघुकथा ने । दिल से बधाई आपको आदरणीय प्रदीप नील वशिष्ठ जी ।
आपने मेरे प्रयास को सफल कहा, यह सुन कर प्रसन्न हूँ नीता जी। हार्दिक धन्यवाद।
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