आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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जैन साहब सिर्फ संवादों के माध्यम से कथा कहना बहुत मुश्किल विधा है मगर आपने कर दिखाया। डायलॉग्स भी छोटे और चुस्त-दुरुस्त , पठनीय भी। हमदर्द होने का दिखावा करके बरगलाने वाले षड्यंत्रकारी पंचतंत्र की कहानियों के ज़माने से चले आ रहे हैं और कब तक चलेंगे कोई नहीं जानता। लेकिन कथा आपकी भी पॉज़िटिव नोट पर बंद होती है। अच्छी है।
कथा पर समय देने एवं सराहना हेतु आभार आदरणीय प्रदीप नील जी ।अनकहा भी समझ आया सुधार हेतु प्रयासरत हूँ आदरणीय।
आदरणीय पवन जी, एक चैम्पियन के आत्मविश्वास को तोड़ने के षड्यंत्र के बीच सकारात्मक अंत वाली बढ़िया लघुकथा है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ।
वाह्ह्ह, पहले रचा षडयन्त्र और फिर उसको नाकाम करता आत्मविश्वास , अति सुन्दर लघु -कथा,
आभारी हूँ आदरणीय महिमा वर्मा जी कथा पर समय देने एवं सराहना हेतु ।
ओह ! अच्छा हुआ यह सपना ही था, वरना किसी के कह भर देने से चैम्पियन के पैरों में दर्द होने लगना और गेम से खुद को बाहर रखना अतिश्योक्ति ही है. खैर बधाई इस प्रयास पर.
आ. पवन जैन जी प्रदत्त शीर्षक को संतुष्ट करते इस कथानक केलिए हार्दिक बधाई
‘चिंतामणि’
चिंतामणि की नजरें बाहर दरवाज़े पर टिकी थीं Iपत्नी की लायी चाय को उसने बगल में स्टूल में सरका दिया थाI
पत्नी और साली निशा का जोर जोर से बोलना और हँसना उसे असहज कर रहा था I
“आपकी चाय ऐसे ही रखी है ,पी क्यों नहीं ?”
“खाली पेट खून की जांच करवानी है I अभी आता होगा लैब वाला”I पत्नी की सवालिया नज़रों से बचने के लिए वो फोन में उँगलियाँ फिराने लगा था I
“पिछले हफ्ते ही तो करवाई थी दो जगह से जाँच I ,सब ठीक ही निकला था I ,अपने डॉक्टर साहब ने भी आपको अच्छी तरह देख लिया था I अब फिर से जाँच क्यों ?” निशा भी बहन के पास आकर खड़ी हो गई थीI
“हाँ हाँi पर वो दोनों लैब यहीं पर करती हैं जांच और ये वाली दिल्ली भेजती है सैंपल I मैंने एक दूसरे डॉक्टर को भी दिखा दिया था I उन्होंने ही कहा कि इस लैब में जांच करवाओ” I उसे गुस्सा आ रहा था कि क्यों उन दोनों को सफाई देनी पड़ रही हैI
“मिलीभगत चल रही है आजकल दवा कंपनी ,लैब और कुछ डॉक्टरों के बीच जीजा जी I आप भी लग रहा है फंस रहे हो ऐसे ही किसी जाल में “I
“ऐसा कुछ नहीं है I मै भी इन्टरनेट से जानकारी लेता रहता हूँ “I‘’
“वो भी एक भागीदार ही है इस साजिश काI डरा डरा कर शिकार को घेर कर लाने की जिम्मेदारी उसी की तो है “I
सही नब्ज़ पर हाथ रख दिया था निशा ने उसकी I इन्टरनेट में बीमारियों के बारे में पढ़कर ही वो वहम पालने लगा था पिछले कुछ दिनों सेI
“ मेरे लिए दूसरी चाय बना लाओ प्लीज ” पत्नी से प्यार से बोला I “ उस लैब वाले को मना कर देता हूँ I वैसे तुम दोनों कहाँ जाने के लिए तैयार हो ?”
“पापा के यहाँ , पूजा है ना I दादी सौ साल की हो जायेगी कल I आपको बताया तो था I,भूल जाते हैं आप आज कल “I पत्नी के लहज़े में प्यार भरा उलाहना था I
चिंतामणि का दिल अब फिर डूबने लगा था I दोनों के बाहर जाते ही वो फोन में लग गयाI
“ हलो i यूनीक लैब? ,हाँ , आप पहुँच रहे हैं ना ,ठीक है.. “I फिर कुछ रुक कर बोला “ एक बात और पूछनी है, ,क्या आप किसी अच्छे डॉक्टर के बारे में बता सकते हैं ? कुछ मेमोरी प्रॉब्लम है , मेरा मतलब, चीज़ें भूल जाता हूँ जल्दी” I
मौलिक व् अप्रकाशित
आपने कथा के मर्म को समझा ,आपका हार्दिक आभार प्रिय राहिला जी
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