आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय पवन जैन जी.
आदरणीया रीता गुप्ता जी, सराहना युक्त प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार.
युवा पतंग, डोर, और आवारा हवाएं और पतंग की अनुशासन रहित आज़ादी की चाहत , प्रतीकों में कही इतनी सुंदर सार्थक कथा ,,बस निशब्द कर रही है बधाई प्रेषित है आपको आदरणीय बागी जी
सराहना युक्त प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी.
आदरणीय गणेश जी पंतग डोर और हवा के प्रतीकों के माध्यम से आपने षडयंत्र विषय को अच्छे से उकेरा है इसके लिये बधाई । हम पहलेे भी कह चुके है कि इस विधा के एक पाठक है तो हमारी टिप्पणी को एक पााठक ही सामान्य प्रतिक्रिया के रूप में ही लें
“लग तो मुझे भी रहा है, पर .......” अविश्वास के बीज अंकुरित हो रहे थे I इस वाक्य के पढ़ने पर ही अंत का आभास होने लगा था वही हुआ भी हवाएं अपनी साजिश में कामयाब हो गई । सुखांत कथाओं के अंत में होता है '' और सब सुख से रहने लगे '' ऐसा ही जाना पहचाना परिचित सा अंत इस कथा का लगा '' और पत्तल मुस्कुरा उठी '' जैसी अपार संभावनाअों से भरी कोई पंच लाइन की प्रतीक्षा रह गई । सादर
//सुखांत कथाओं के अंत में होता है '' और सब सुख से रहने लगे '' ऐसा ही जाना पहचाना परिचित सा अंत इस कथा का लगा ''//
आदरणीय रवि शुक्ल जी, इस लघुकथा में सुखान्त कहाँ है ? साथ ही यह भी कहना चाहता हूँ कि यह आवश्यक तो नहीं की सभी लघुकथा का अंत किसी चमत्कृत करती पंच लाइन से ही हो. बहरहाल आपकी इस समीक्षात्मक प्रतिक्रिया हेतु हृदय से नमन.
सराहना और उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया नीता कसार जी.
आदरणीय समर साहब, आशीर्वाद युक्त आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार.
आदरणीया रश्मि तारिका जी, सराहना युक्त आपकी इस टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार.
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