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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-158

विषय : "अलविदा"

आयोजन अवधि- 16 दिसंबर 2023, दिन शनिवार से 17 दिसंबर 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 16 दिसंबर 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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स्वागतम

सादर अभिवादन।

दोहे- विषय "अलविदा"
*****************
पलट अलविदा जो कहा, उसने बीती साँझ।
सारे  सपने  हो  गये, एक  बार   फिर बाँझ।१।
*
जाने वाले को भला, रोक सका है कौन।
यही सोचकर हम रहे, बेबस होकर मौन।२।
*
जिस को आया छोड़ने, देखो नगर तमाम।
मंजिल तक जाना उसे, आज अकेले राम।२।
*
जाने वाला चल दिया, अपना सकल समेंट।
पथ  पर  बैठे  सब रहे, हुई  न  लेकिन भेंट।४।
*
कैसे आऊँ द्वार  तक, बोलो  उस को छोड़।
सहन न होती और अब, मन में उठी मरोड़।५।
*
जाते- जाते द्वार तक, मुड़ जाता हूँ मौन।
उसको बेबस इस तरह, जाता देखे कौन।६।
*
पलकों के  तट  चूमती, कहे  नयन जलधार।
सुख दुख काटे साथ जो, उनके हित आभार।७।
*
कैसे भूले मन  कहो, तमस भरी वह शाम।
हमसे लेना अलविदा, राम मिलन के नाम।८।
*
ऐसा ही  यह  जग  सदा, युगों - युगों से मीत
जहाँ अलविदा ना कहे, मिलन बिछोही रीत।९।
***
मौलिक/अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पदत्त विषय पर सुंदर दोहे सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई।

आ. भाई दयाराम जी सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।

वाह्ह क्या बात है आदरणीय भाई लक्ष्मण जी ,हर एक दोहा शानदार। बहुत बधाई इस सार्थक दोहावली के लिये

आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

अलविदा......
221 2121 1221 212

लो सो गई है शर्म इरादा भी मर गया
जो बोलता बहुत था वो आदम किधर गया

इस आदमी की जुस्तजू जाने कहाँ मिटी
बक़वादी हो गया है वो जज़्बा भी मर गया

ज़ालिम की सारी हैंकड़ी यारो हवा हुई
सामान सारा दरिन्दगी या रब किधर गया

आशिक शब ए फ़िराक न रोया न था ग़मगीं
आँखों का पानी सूखा जुनूँ उसका घर गया

शर्म ओ लिहाज बज़्म के जाते रहे कहीं
हर शख़्स बेहयाई करता उधर गया

बेलौस रहबरों की जबाँ बोलती नहीं
आवाज़ मुफ़लिसों की सहारा किधर गया

अब आ भी जा सनम बहुत टूटे हुए हैं हम
चेतन बुरा है वक्त इधर प्यार झर गया

मौलिक व अप्रकाशित

अलविदा (छंद मुक्त)

एक आ रहा है
एक जा रहा है
जो आया है वो जायेगा
इसमें रोना या
खुश होना कैसा?

ये साल जा रहा है
नया साल आ रहा है
किसमें कितने दुख मिले
कितने सुख मिले
इसकी गणना से क्या?
न सबको सुख मिले
न सबको दुख मिले
फिर किसी के आने
या
जाने से क्या?

आगत का स्वागत
एक रिवाज है
शोर मचाना, धमाल करना
और अपने गम भुलाना
इसमें सच्ची खुशी कहीं नही
वरन्
दिखावा ही दिखावा है।

जो बीत गया
सो बीत गया
उसका हिसाब क्या करना
जो आ रहा है
वो भी एक दिन बीत जायेगा
हम देखते रहेंगे
और
वो अलविदा कह जायेगा।

जाने वाला अपना कर्म करके निभा गया
आने वाला भी यही करेगा
खुशी या गम
किसी के आने
या जाने से
न मिले है न मिलेंगे
जो कुछ मिलना है
वो कर्म फल ही है
तो अपना कर्म करो
उसे कभी अलविदा
मत कहना।
- दयाराम मेठानी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई। 

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

अलविदा...... ! (छंद मुक्त )

किससे कहोगे अलविदा
जाते पलों से
या रूठते रिश्तों से
छोड़ कर जाते अपनों से
किसी दुःस्वप्न से
भूसी बिसरी यादों से
अथवा विदा लेते वर्ष की
तन्हाइयों से ...... 
रोज बढ़ती वासनाओं से
असफलताओं से
जरा बताओ तो !
सच तो ये है कि जन्म लेते ही
तुम्हारा इनसे शाश्वत सम्बंध
हो गया था |
मनुष्य हैं तो रोज नये दर्द
सँभालने होंगे....
कभी कोई पल सुख का मिले,
दोस्त, सहेज लेना 
दुश्चिन्ताओं में जब रात
बहुत लम्बी हो जाए,
तुम सो न सको तो
उन सुख के पलों को
फिर जी लेना !
शायद तुम्हे नींद आ जाए
थोड़ा ही सही, सुकून मिले

मौलिक व अप्रकाशित

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