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ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर – समाचार
मौसम गुर्राया, नाक और आँख से पानी बहा, लखनऊ की सड़कों पर अजीब सा सन्नाटा था फिर भी ओ.बी.ओ. लखनऊ चैप्टर के कतिपय उत्साही और दृढ़ प्रतिबद्ध शुभार्थी सदस्यों और मित्रों की प्रेरणादायक उपस्थिति में दिसम्बर की मासिक गोष्ठी एक नए रंग से रंग गयी. हिमालय से आती हुई बर्फ़ीली, सनसनाती हवा के पुचकार से बाहर का माहौल जब सुनिश्चित असमंजस में था, कमरे के अंदर हम लोग दीवार पर प्रक्षेपित चित्रों के सहारे कुमेरु प्रदेश की सैर कर रहे थे. “अंटार्कटिका और भारत – कुछ जानी कुछ अनजानी बातें” शीर्षक पर बोलते हुए वर्तमान प्रतिवेदक ने अपने थोड़े से अनुभव को उपस्थित भद्रजनों के साथ साझा किया. सभी के उत्साहपूर्वक प्रोत्साहन से धन्य वक्ता ने भी बहुत ही अनौपचारिक ढंग से अंटार्कटिका अभियान और उस दूरस्थ महादेश के साथ भारत की एकात्मकता के सहज लेकिन आमतौर पर अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालने का प्रयत्न किया. अंटार्कटिका जितना बड़ा महादेश है, उसकी भारत से जितनी दूरी है, उसी अनुपात में अंटार्कटिका से सम्बंधित कोई भी व्याख्यान काफ़ी समय ले लेता है. वक्ता अथवा प्रबुद्ध श्रोता किसीको भी इसका पता तभी लगता है जब प्रोजेक्टर बंद होता है और कमरे में उजाला कर दिया जाता है. व्याख्यान की समाप्ति होते ही मफ़लर, टोपी, जैकेट के सुरक्षित घेरे में रहते हुए भी माननीय अतिथिगण लगा अंटार्कटिका पहुँच गए हैं. बाहर शीत लहर और तेज़ हो गयी थी...सांझ ढलने लगी थी. ऐसी स्थिति में भी यह नामुमकिन था कि एक-दो काव्य पाठ या साहित्यिक आलोचना के बिना सभा भंग हो.
वरिष्ठ सदस्य आदरणीय डॉ गोपाल नारायन जी ने दो रचनाएँ सुनाई –‘अमर भारत’(अतुकांत) और ‘भारत में ताल-तलैया’(गीत). गीत ने तो बहुत लम्बी रचना होते हुए भी हम लोगों का मन मोह लिया. गाँव के नैसर्गिक दृश्य का अनवद्य वर्णन, वहाँ की ज़िंदगी के साथ साये की तरह लिपटा हुआ दर्द, टूटते हुए जीवन माधुर्य के कारकों पर व्यंगात्मक प्रहार आदि भावनाओं को जो शब्द मिले हैं इस रचना में वे अतुलनीय हैं. आप स्वयं देखिए –
//भारत में ताल-तलैया, भारत है अपनी मैया
इसमें माटी के घर हैं/कुछ फूस और छप्पर हैं
मैदान दूर तक फैले/रेहू-रूपा ऊसर हैं
है धर्म-वृषभ घर-घर में, उजियारी श्यामा गैया//
*****
//निमुआरी गंध सुहानी/फूली है सरसों धानी
गेहूँ की बाल खड़ी है/अब हवा हुई फगुआनी
चुप पीपल, जामुन, बरगद ऊँचे लटकी खजुरैया//
***
//है भूख और बेकारी/मायूसी है लाचारी
पग-पग दरिद्र की देवी/है धिक जीवन से हारी
भव कैसे पार लगाए, सिकता में डूबी नैया//
***
//कुंठा हिंसा नफ़रत है/इंडिया स्वार्थ में रत है
सब प्रकृति वर्जना करते/ दहशत में यह कुदरत है
मैं हाल कहाँ तक गाऊँ, अब आओ कृष्ण कन्हैया//

श्री केवल प्रसाद ‘सत्यम’ ने कुछ ताज़े दोहे सुनाए –
//आफ़त में गंगा पड़ी, घाट हुए सब सून/सरकारी धन में नहा, लगा रहे सब चून//
//जो तेरा मेरा नहीं, मिले मुझे वह भाग्य/भाग्य अंश भी दान कर प्राप्त करूँ सौभाग्य//

अंत में गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की अपनी आवाज़ में उनकी कविता “आजि होते शोतोबर्षो पॉरे के तुमि पोड़िछो बोशी आमार कोबिता खानी कोउतुहल भोरे” (अर्थात आज से सौ वर्ष बाद तुम कौन हो जो मेरी कविता का इतने कौतूहलपूर्वक पाठ कर रहे हो) का पाठ सुनना (सौजन्य: शरदिंदु मुकर्जी) एक विरल अनुभव रहा.

वर्ष के अंतिम महीने की गोष्ठी विसर्जन होने से पहले अनौपचारिक वार्ता के माध्यम यह निर्णय लिया गया कि मई 2015 में हम सब मिलकर ओ.बी.ओ.लखनऊ चैप्टर की दूसरी वर्षगाँठ मनाएँगे. विस्तारित कार्यक्रम शीघ्र ही बनाकर सूचित किया जाएगा. हम सभी के सहयोग की अपेक्षा रखते हैं.
------शरदिंदु मुकर्जी

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आ० अग्रज

“अंटार्कटिका और भारत – कुछ जानी कुछ अनजानी बातें” कार्यक्रम ने हमें अकल्पनीय से अवगत कराया  i पर सच तो यह है कि अभी हमारी जिज्ञासा समाप्त नहीं हुयी है i अतः इस कार्यक्रम को आगे की गोष्ठियों में भी समय देना समीचीन होगा  i ओ बी ओ , लखनऊ चैप्टर की दूसरी वर्ष गाँठ  में  जो भी करणीय है उस व्यवस्था का सादर स्वागत है और उसमे आ० एड्मिन को भी आमंत्रित किया जाए i सादर i

विलम्ब से इस रपट पर आया हूँ. कई कारण हैं.. :-))

प्रति माह गोष्ठी का अनवरत आयोजन सुनने में ही सुखकर है, प्रतिभागियों के लिए तो विशिष्ट वातावरण की सौगात ही है यह गोष्ठी.

हृदयत से बधाई, आरदणीय शरदिन्दु जी

//गोष्ठी विसर्जन होने से पहले अनौपचारिक वार्ता के माध्यम यह निर्णय लिया गया कि मई 2015 में हम सब मिलकर ओ.बी.ओ.लखनऊ चैप्टर की दूसरी वर्षगाँठ मनाएँगे. //

जय हो..  .. .:-))))

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