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ओबीओ मासिक साहित्यिक-गोष्ठी (भोपाल) : एक रिपोर्ट (मार्च 2017)

ओबीओ मासिक साहित्यिक-गोष्ठी (भोपाल) : एक रिपोर्ट (मार्च 2017)

 

आज दिनांक 04 मार्च 2017 को आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी एवं आदरणीया सीमा शर्मा जी के निवास रीगल टाउन, अवधपुरी, भोपाल में ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार सदस्यों की साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन किया गया.

 

इस गोष्ठी में आ. तिलकराज कपूर जी (भोपाल), आ. गिरिराज भण्डारी जी (भिलाई), आ. अरविन्द जैन जी (भोपाल), आ. प्रतिभा पाण्डेय जी (रतलाम), आ. सीमा पांडे मिश्रा जी (भोपाल), आ. हरिओम श्रीवास्तव जी (भोपाल), आ. अपर्णा शर्मा जी(भोपाल), आ. मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी जी (भोपाल), आ. कपिल शर्मा जी (भोपाल) एवं मेज़बान दंपत्ति की गोष्ठी में गरिमामय उपस्थिति एवं काव्य पाठ ने आयोजन को समृद्ध किया.

 

गोष्ठी की अध्यक्षता आ. तिलकराज कपूर जी ने की एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में आ. गिरिराज भण्डारी जी एवं आ. अरविन्द जैन जी मंचासीन हुए. काव्य गोष्ठी का सञ्चालन आ. हरिवल्लभ शर्मा जी ने किया. काव्य पाठ का आरम्भ आ. सीमा शर्मा जी ने सरस्वती वंदना से किया ने किया.

1. आदरणीया सीमा पांडे मिश्रा जी ने नदियों की स्थिति पर चिंता जताते हुए एक अतुकांत कविता सुनाई और झुग्गियाँ शीर्षक से भी एक कविता सुनाई. आपकी कविता का एक अंश है-

 

कृशकाय होती जा रही नदी चिंतित है

भविष्य की कल्पना से आशंकित है

 

2. आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी कविता एवं लघुकथा सुनाई. आपके के काव्य पाठ के अंश है- .

 

अपने बच्चे टाल ठोककर

बोल रहे बैरी की बोली

फागों की धुन कहाँ खो गई

बोलो कैसे खेलें होली

 

3. आदरणीया अर्पणा शर्मा जी ने “मुसीबत और कुव्वत” और “फागुन की पूनम” शीर्षक से कवितायें सुनाई.

 

4.आदरणीया सीमा शर्मा जी ने एक गीत और एक ग़ज़ल सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया –

 

कौन कहता है चाँद लाकर दो

एक दीपक ही बस अता कर दो

 

लोग मगरूर हो गए शायद

या ख़ुदा रहमतें अता कर दो

5. मंच संचालक आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी ने दो घनाक्षरी छंद एवं ग़ज़ल का पाठ किया-

 

शोहरत मिली क्या आप तो मगरूर हो गए

अहबाब साथ थे जो सभी दूर हो गए

 

 

6. इस नाचीज़ को भी अपने चंद दोहा छंद और दो गज़लें सुनाने का अवसर मिला-

 

आँखें भर भर आ गई, छूकर उनके पाँव

यादों में फिर छा गया, बरगद वाला गाँव

 

7. आदरणीय कपिल शास्त्री जी ने “बड़ी नाक वाला लड़का” शीर्षक की लघुकथा का पाठ किया जिसका अंश है –

 

“अब मेरे पास दस रूपये हो गए, अब मैं नाश्ता करूँगा.”

 

8. आदरणीय मुज़फ्फर इकबाल सिद्दीकी जी ने एक लघुकथा “रंगीन” का पाठ किया जिसका अंश है-

 

“मेरे वजूद को निचोड़कर मैंने संतोष के हर रंग में अपना रंग मिलाना चाहा लेकिन संतोष......... संतोष कभी संतुष्ट न हुआ.”

 

9. आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी दो कुण्डलिया छंद एवं दोहा छंद प्रस्तुत किये-

 

रोना सब रोते यही, बुरा समय है आज

भ्रष्टों का ही राज है, कैसा हुआ समाज

 

 

10. आदरणीय डॉ. अरविन्द जैन जी ने अपनी कवितायेँ एवं व्यंग्य कथा “थानेदार की बरबस हँसी” का पाठ किया-

कल तक यह सुनता था

कि गिरने के लिए बहुत ऊँचाई,

हाँ गिरने के लिए चाहिए ऊँचाई

पर मैंने तो नज़रों से गिरते देखा है.

11. गोष्ठी के विशिष्ट अतिथि आदरणीय गिरिराज भण्डारी जी ने अपने ग़ज़लों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया-

 

सबके अन्दर एक सिकंदर जिंदा है

इसीलिए हर ओर बवंडर जिंदा है

 

सब शर्मिंदा होंगे जब ये जानेंगे

अभी जानवर सबके अन्दर जिंदा है

 

12. गोष्ठी के अध्यक्ष आदरणीय तिलकराज कपूर जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ अपनी ग़ज़लों से आयोजन को नई ऊँचाईयाँ प्रदान की-

 

हमारे नाम लग जाए तुम्हारे नाम लग जाए

मुहब्बत में न जाने कब कोई इलज़ाम लग जाए

 

ग़ज़ल के शे’र ऐ लोगो निकाले कब निकलते हैं

कभी चुटकी में ये निकले कभी एक याम लग जाए

 

मेज़बान आदरणीया सीमा शर्मा जी ने आभार व्यक्त किया. इस आयोजन का मुख्य आकर्षण “लज़ीज़ स्वल्पाहार” के लिए सभी मेहमानों ने मेज़बान दंपत्ति का आभार व्यक्त किया. हरी और लाल चटनी के साथ साबूदाना वड़ा, ढोकला, गाजर का हलवा, अंगूर, बिस्किट और चाय की चुस्कियों के साथ आयोजन का समापन हुआ.

 

-मिथिलेश वामनकर

 भोपाल

 

 

 

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सभी को बहुत बहुत बधाई । धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश सर रिपोर्ट पढ़कर लगा वहां न होकर भी शामिल हो गयी । न आ पाने के लिए क्षमा चाहती हूँ। सादर ।
गोष्ठी B

कल की गोष्ठी के पद्यांश बहुत कुछ साबित कर रहे हैं. उपस्थित हुए सभी सदस्यों को हृदयतल से धन्यवाद. 

अगली गोष्ठी में सम्मिलित होने की कोशिश करूँगा. 

शुभ-शुभ

आदरणीय मिथिलेश जी भोपाल में आपका यह प्रयास एक नए साहिरयिक युग की आधारशिला रखेगा मंच के तमाम बिद्वान सदस्य जिस गोष्ठी में शरीक हुए हों निश्चित अद्भुत ही होगी आदरणीय ऐसे कार्यक्रमों के अंशो केवीडियो क्लिप भी अपलोड किये जाएँ तो एक पाठक की तरह जो सुख मिलता है उसे एक श्रोता की तरह सुनकर और आनन्द मिल सके इस आयोजन पर ढेर सारी शुभकामनाओं और भिवष्य में इसके तमामों आयोजनों की सफलता की कामना के साथ सादर

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