For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या - माह फरवरी, 2018, एक प्रतिवेदन

   ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या - माह फरवरी, 2018, एक प्रतिवेदन                                                 

  • डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव

          

महिलाओं विशेषकर लड़कियों पर ‘एसिड अटैक’ विश्व की एक ज्वलंत समस्या है और भारत भी उससे पीछे नहीं है. ऐसी ही घटनाओं की शिकार ‘एसिड विक्टिम्स’ को लेकर सैरी चहल (SAIREE CHAHAL) ने  ‘SHEROES HANGOUT’ की स्थापना की. इसका नेटवर्क भारत के कई प्रतिष्ठित नगरों में है. लखनऊ में भी इसकी एक शाखा कुछ जीवट ‘एसिड विक्टिम्स’ द्वारा चलाई जा रही है. हम प्रायशः ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या यहीं सजाते रहे हैं और 11 फरवरी 2018 को माह के द्वितीय रविवार के दिन 3 बजे सायं एक बार फिर यह संध्या भास्वर हुयी, जिसकी अध्यक्षता गाज़ियाबाद से पधारे ‘साहित्य भूषण’ ( उ०प्र० हिंदी संस्थान ) डॉ. धनञ्जय सिंह ने की. संचालक की भूमिका डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने निभायी.

प्रथम कवि के रूप में हमारे आयोजन में आए मृगांक श्रीवास्तव को काव्य पाठ के लिए आहूत किया गया. उन्होंने  ‘BLUE WHALE GAME’ का रूपक लेकर एक कविता सुनायी. अधिकांश लोग जानते हैं कि ब्लू व्हेल चैलेंज गेम एक इंटरनेट स्टंट था जो मान्यतानुसार कई देशों में प्रचलित रहा. इस खेल में खिलाड़ियों को एक शृंखला के तहत 50 दिन की अवधि में कई तरह के कार्य दिए जाते थे जिसकी अंतिम चुनौती थी आत्महत्या. अर्थात यह लोगों को अवसादग्रस्त कर आत्महत्या करने के लिए उकसाने वाला गेम था,  जिसमे फँसकर कई निर्दोषों ने अपनी जानें भी गवायीं. श्री श्रीवास्तव की कविता का मुख्य बिंदु भी यही अवसाद था, जिसके अंतर्गत भारत में कन्याओं को जन्म से ही अनेक प्रतिबंधों के रूप में संस्कारित किया जाता रहा है.  कवि कहता है –

 

यह खेल हमारी बेटियों को

बचपन से खेलाया जाता

 

युवा कवयित्री सुनीता अग्रवाल भी पहली बार ओबीओ लखनऊ चैप्टर के कार्यक्रम में आयी थीं. उनकी कविता का विषय भी ‘नारी विमर्श’ पर आधारित था. इसे विडंबना ही कहेंगे कि सामंत युग में बेटियों पर जो जुल्म हुए उनकी परछायीं अभी तक बरकरार है. समाज में नारी की  पारंपरिक अवस्था का समर्थन करती हुई रचना इस प्रकार मुखर होती है –

 

वह लिपिबद्ध की गयी 

खूबसूरत चीज की तरह

समर्पण भरे प्यार की 

एक-एक ईंट पर

ओबीओ लखनऊ चैप्टर के संयोजक डॉ. शरदिंदु मुकर्जी, अपनी सहधर्मिणी कवयित्री  कुंती मुकर्जी की अस्वस्थता के बावजूद समय निकालकर आये थे. उन्होंने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ की एक शीर्षक विहीन रचना  का स्वानुवाद प्रस्तुत किया जिसमें गुरुदेव ने साहित्यिक लेखन कैसा होना चाहिए पूछे जाने पर कविता के रूप में अपनी प्रतिक्रिया दी थी. अनूदित रचना की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं –

 

न वर्णना की छटा

घटनाओं की घोर-घटा

न ज्ञान, न ही उपदेश

हिय में अतृप्ति रहे

अंत में यह मन कहे

हुआ समाप्त फिर भी

हुआ नहीं शेष   

 

इसके बाद उन्होंने अपनी कुछ कवितायेँ मुक्तछंद में भी पढ़ीं, जिनकी बानगी के तौर पर कुछ पंक्तियाँ दी जाती हैं जिसमें कवि ने दिल्ली के हवाई अड्डे के अंदर का दृश्य दिखाया है अपनी नज़रों से –

 

कुछ लम्बे,कुछ ढीले वस्त्र

कुछ मझले मचलते वस्त्र

कुछ छोटे शरमाते वस्त्र –

चिपक तन से वे चिल्लाते

हम कितने नि:संग हैं

यहाँ बहुतेरे रंग हैं

 

‘सीता के जाने के बाद राम‘ शीर्षक उपन्यास से सहसा प्रसिद्धि पाने वाले उपन्यासकार डॉ. अशोक शर्मा ने अपनी जो रचना पेश की उससे जीवन की निस्सारता का बोध होता है. इतिहास के ब्य्यज से हम जानते हैं कि सिकंदर ने मृत्युपूर्व घोषणा कर दी थी - जब उसकी अर्थी निकाली जाये तो उसके दोनों खाली हाथ बाहर लटके हों ताकि लोग यह जान सकें कि विश्वविजेता होकर भी सिकंदर इस दुनिया से खाली हाथ ही गया. कुछ-कुछ इन्ही भावनाओं को शब्दों की बाजीगरी से  डॉ० शर्मा ने एक मोहक अंदाज में प्रस्तुत किया है –

 

सुबह से शाम तक किरणें जमा करता रहा

किन्तु दिन ढलने पे मेरे हाथ खाली ही मिले 

अध्यक्ष महोदय के आदेश पर संचालक डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव ने शिक्षा और शिक्षक के गिरते स्तर पर अपनी चिंता कुछ इस प्रकार प्रकट की –

 

प्रिय, अपना इतिहास टटोलो

अलस बन्द आँखें कुछ खोलो

सरस्वती माँ की जय बोलो

जय से क्यों घबराते

शिक्षक ! यदि तुम गुरू बन जाते

कोटि-कोटि छात्रों के मस्तक, चरणों में झुक जाते

 

वर्तमान में लखनऊ की अग्रगण्य कवयित्री संध्या सिंह की कवितायेँ उनकी विलक्षण  बिम्ब योजना से सदैव ही चौंकाती हैं. जड़ों की रक्षा के लिए वृक्ष का अस्तित्व में बने रहना कितना लाजिमी है,  इस भाव-संपदा को वह नए बिम्बों में किस प्रकार प्रस्तुत करती हैं, उसकी एक बानगी इस प्रकार है –

 

गुंबद जरा संभाले रखना

तभी बचेंगे तहखाने भी 

 

अब अध्यक्ष की बारी थी. संचालक ने उनको आह्वान करते हुए राष्ट्र कवि ‘दिनकर’ की यह काव्य पंक्ति पढ़ी –

 

धूप का ऐसा तना वितान, अँधेरा कठिनाई में फँसा

मिली जब उसे न कोई जगह मनुज के अंतर में जा बसा 

 

अध्यक्ष डॉ० धनञ्जय सिंह ने ‘पलाश दहके हैं’ (प्र० 1997) कविता संकलन की एक मुक्तछंद कविता ‘समुद्र तक की यात्रा नहीं‘ पढ़कर सुनायी. इस कविता की वैचारिक गहराई का निर्देश करती कुछ पंक्तियाँ उदाहरण के रूप में निम्न प्रकार प्रस्तुत हैं –

 

मुझे भागना भी नहीं है नदी से दूर कहीं

मुझे तो प्यार है उसके घाटों से

नीचे उतरती उन सीढ़ियों से

जिस पर बैठकर थका हारा पथिक

पाँव धोकर उतारता है अपनी थकान  

 

कोई भी काव्य गोष्ठी हो, यदि वहाँ डॉ० धनञ्जय सिंह हैं, तो बिना उनके सुमधुर गीत-गायन  के वह गोष्ठी संतृप्त नहीं होती. इस क्रम में उन्होंने जो गीत पढ़ा, उसका शीर्षक था - ‘बसंत के बहाने से‘.  इस गीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं –

 

मन पर हर बिम्ब अभी भी अंकित है

जल में जैसे वृक्षों की परछाईं

संस्पर्श सुखों के दुर्लभ हैं यों ही

ज्यों छुई न जाती दर्पण की झाईं 

कालिख के सब आरोप हमीं पर हैं, उनके सारे अपराध सुनहरे हैं

मौसम सुगंध का आया है लेकिन चन्दन पर सर्प दंश के पहरे हैं .

 

फूल अगर बिखर जाएं तो उन्हें बटोर लेने के बाद भी उस स्थान पर कुछ देर तक सुगंध व्याप्त रहती है. ऐसा ही होता है डॉ० धनञ्जय सिंह के गीतों का प्रभाव. काव्य-पाठ के बाद चाय की चुस्कियों के बीच छुट-पुट वार्ता का क्रम जारी रहा. पर मेरे मन में घूम रहे थे – हवाई अड्डे पर किसी ग़रीब और भूखे इंसान का संभावित गुस्सा, सिकंदर के खाली हाथ, गुम्बदों का संकट, नदी का सामीप्य और वे अपराध जो उनके हैं शायद इसलिए सुनहरे हैं.

हे विशद कल्पने ! दूर-दूर तू भागेगी   

भटकेगी संसृति में या तम में जागेगी  

पर ठौर न पायेगी विश्रुत ब्रह्मांडों में 

थक-हार अंततः कवि-मन में अनुरागेगी  (सद्य रचित )

 

       

Views: 722

Reply to This

Replies to This Discussion

बेहतरीन उद्देश्य व साहित्य सामग्री संग सम्पन्न साहित्य संध्या की झलक व सारगर्भित प्रतिवेदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय संयोजक महोदय डॉ. शरदिंदु मुकर्जी।

 आ० ओ बी ओ , लखनऊ चैप्टर आपके  उत्साहवर्धन का आभारी है . सादर .

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है ऋचा जी। आदरणीय शिजजु जी और नीलेश भाई ने जो बिन्दु दिए हैं वो…"
4 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"रदीफ़ 'भी करते रहे' पर आपकी स्पष्टता महत्वपूर्ण और समझने का विषय है।  आश्वस्त हूँ कि…"
23 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"तरही मिसरे पर अच्छे अशआर हुए हैं आदरणीय नीलेश जी। मतला बहुत अच्छा है। छल -कपट से देवता व्यभिचार भी…"
26 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय शिज्जु भाई, अच्छे अशआर के लिए बहुत बहुत बधाई। गिरह बेहद पसंद आई और तीसरे शेर के लिए ख़ास दाद…"
35 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"मुशायरे का आग़ाज़ करने के लिए बधाई लक्ष्मण भाई। अच्छी ग़ज़ल हुई है पर समय चाह रही है। आदरणीय तिलकराज जी…"
40 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"ग़ज़ल - 2122 2122 2122 212 वक्त बदला तो उसे स्वीकार भी करते रहे जिन्दगी में प्यार का व्यवहार भी करते…"
45 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"राष्ट्र-निष्ठा के प्रकट उद्गार भी करते रहे सारे नेता मिल के भ्रष्टाचार भी करते रहे वो बहाने के लिए…"
52 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"भाई शिज्जू जी, आपकी प्रस्तुति कमाल की सोच लेकर सामने आयी है.  जैसे,  धर्म-संकट से बचाना…"
59 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय तिलकराज भाईजी, आपने जिस विस्तार से प्रत्येक मिसरा पर धान दिया है वह मंच की गरिमा के अनुरूप…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति पर जिस उदारता और आत्मीयता से आदरणीय तिलकराज सर ने समय दिया…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. शिज्जू भाई कवि का काम कविता करना है ..जिन ग्रंथों में यह कथा वर्णित है वे भी कविताएँ ही…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. ऋचा जी,मतले के ऊला में लाचार भी करते रहे.. ठीक नहीं है लाचार होता है , किया नहीं…"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service