For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतिवेदन साहित्य-संध्या ओबीओ लखनऊ-चैप्टर, मार्च 2021 ई० प्रस्तोता :: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

 स्थान- 537A /005, महाराजा अग्रसेन नगर, सीतापुर रोड. लखनऊ                                                                दिनांक – 21 मार्च 2021 ई०                                                             मुख्य अतिथि – श्री कुँवर कुसुमेश          दिवस- रविवार                                                                              संचालक – श्री आलोक रावत ‘आहत लखनवी’  समय – 3 बजे अपराह्न                                                                    अध्यक्ष – डॉ. अशोक शर्मा

सयोजक डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव द्वारा आयोजित इस काव्य संध्या के प्रथम चरण में भक्तिकाल के प्रतिनिधि कवियों में से एक अब्दुर्रहीम खानखाना द्वारा रचे गए ‘मदनाष्टक’ नामक कविता से चयनित तीन छंदों पर परिचर्चा हुई I इसका प्रतिवेदन अलग से जारी किया जा रहा है I दूसरे चरण में काव्य पाठ से पूर्व संचालक के आह्वान पर गोपाल जी ने माँ सरस्वती की स्मृति में ‘उपालंभ वंदना’ के दो छंद सुनाये, उनमे से एक निम्नप्रकार है –

देखो मातु, शारदा है आपकी विचित्र अति

मेरी लेखनी का अंग-भंग कर देती है ।

चिन्तना में डूबता हूँ आत्मलीन होके जब

शुण्ड को हिला के मुझे तंग कर देती है ।

काटती हठीली बात-बात पर मेरी बात

देती नये तर्क मुझे दंग कर देती है ।

किन्तु यही वसुधा के कीट कवियो की सारी

काव्य’-सर्जना को रस-रंग कर देती है ।

माँ के स्मरण के बाद काव्य पाठ हेतु पहला आमन्त्रण नवागन्तुक कवि श्री ब्रज किशोर शुक्ल ‘ब्रज’ के निमित्त हुआ I ब्रज जी ने हास्य विनोद की कुछ रचनाएँ सुनाईं किन्तु उनके द्वारा पढ़ी गयी रचना ‘मुस्कराइए कि आप लखनऊ में हैं‘ का भरपूर स्वागत हुआ I

मुस्कराइए कि आप लखनऊ में हैं

मिटाइये दिलों से दूरियों को आप कि आप लखनऊ में हैं II

कहिये चौक की देशी चाट कि आप लखनऊ में हैं II

देखिये हनुमान सेतु के ठाठ कि आप लखनऊ में हैं II

उनके द्वारा पठित एक अन्य कविता का पद्यांश यहाँ प्रस्तुत है -

राम तो पा गए भवन क्यों न पाए आप ?

राम तो चर्चित हुए किन्तु सोये क्यूं हैं आप ?

राम मन्दिर का स्थान अयोध्या नगरी था

हनुमत सेवा का नहीं दिखता है न कोई प्रताप II

अगली बारी थी सौम्य कवयित्री सुश्री आभा खरे की I इन्होंने एक ग़ज़ल तरन्नुम में और एक तहद में सुनाई I उनके द्वारा पढ़ी गयी ग़ज़ल का एक अंश इस प्रकार है –

मोहब्बत खेल ऐसा है जिसे जीता नहीं करते I

मिले गर दर्द जो यारों उसे बाँटा नहीं करते II

छुपा लो आँख में बीते हुए सारे फसानों को I

सरे महफिल यहाँ खुद पर कभी रोया नहीं करते II

आभा जी के द्वारा पढ़ी गयी समकालीन कविता, जो उनकी प्रिय विधा भी है उसका एक मिजाज कुछ इस तरह नुमाया हुआ - न जाने पेड़ ने उससे क्या कहा होगा ?

बंद पत्ता टप से से टपका

और धरा से मिल गया .

हास्य के पर्याय बन चुके श्री मृगांक श्रीवास्तव ने अपनी कई रचनाएं सुनाकर बड़ा ही समृद्ध मनोरंजन कर सबको आप्यायित किया I उनकी रचना-बानगी इस प्रकार है -

देश में गज़ब किसान धरना है, कथित किसान सड़कें जकड़े हैं I

देश के दुश्मन दौलत, समर्थन और संसाधन पेले पड़े हैं I

दिक्कत बस इतनी है एक कुछ देने और अगला कुछ लेने की जिद पर है I

कई दौर की वार्ताएं किसलिए जब अगले क़ानून वापसी पर ही अड़े हैं I

डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने अपने दो गीत सुनाए I पहले गीत का शीर्षक था विश्वास i इसका एकांश यहाँ प्रस्तुत है -

मैं कहता हॅू इस धरती पर कितने ही केशव राम हुये ।

मुनि, यती, सिद्ध, योद्धा, ज्ञानी कितने योगी अभिराम हुये ।

पर कोई भी इस जग का दुख क्या सदा सर्वथा धो पाया ?

गुण-अवगुण से मिल बना जीव क्या कभी शाश्वत हो पाया ?

यदि नही तो मेरा सत्य अटल पर तुमको समझाऊॅं कैसे ?

विश्वास तेरे मधु बैनो पर बोलो प्रिय मै लाऊॅ कैसे ?

इसके साथ ही उन्होंने एक बड़ा ही मार्मिक विदा गीत पढ़ा I यथा-

आओ अब से हम जीवन मे किंचित परिवर्तन कर लें ।

राग-द्वेष को छोड हृदय में करूणा का सागर भर लें ।

किसे पता किस बुद्ध–शुद्ध को बोधिसत्व हो जाना है ।

चार दिनों के बाद हमे भी इसी पंथ पर आना है I

श्री आलोक रावत ‘आहत लखनवी’ के अप्रतिम सञ्चालन से अभिभूत मुख्य अतिथि ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए अध्यक्ष महोदय की अनुमति से परवर्ती काव्य पाठ हेतु संचालक को आमंत्रित किया I आलोक जी ने अपना प्रिय गीत ‘तेरा लगदा रूप कमाल .. ‘ सुनाकर सबको आत्मविभोर कर दिया I उनके इस गीत की कुछ पंक्तियाँ निम्नवत हैं –

मन महका-महका रहता है I

तन दहका-दहका रहता है I

मदमस्त निगाहों से मिलकर

दिल बहका-बहका रह्ता है II

तुझे देख के है यते हाल बसंती चूनर में I

तेरा लगदा रूप कमाल बसंती चूनर में II

अब बारी थी मुख्य अतिथि श्री कुँवर कुसुमेश जी की I शहरे लखनऊ में ग़ज़ल के मर्मज्ञों में आपका नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है I शहर के कितने ही ग़ज़लकार आपकी शागिर्दी में रह चुके हैं I कुसुमेश जी ने दो गज़लें बातारंनुम सुनाईं , लेकिन उतने से लोग तृप्त नही हुए I अंततः सभी के विशेष अनुरोध पर उन्होंने एक रूमानी रवायती ग़ज़ल और सुनाई I उनके द्वारा पढ़ी गयी एक संजीदा ग़ज़ल के चंद शे’र इस प्रकार हैं –

समझता नहीं खुद के आगे किसी को I

ये क्या हो गया आजकल आद्म्री को II

यही एक है सिर्फ कारण पतन का

मगर कोसता आदमी जिदगी को II

अंत में अध्यक्ष महोदय का काव्य पाठ हुआ I उनका मानना था कि प्रायः गोष्ठी में उपस्थित शत-प्रतिशत लोग कविताएँ ध्यान से नही सुनते पर यह एक दुर्लभ अवसर था जब सबने एक दूसरे को अक्षरशः सुना I उन्होंने अपना पुराना किन्तु प्रसिद्ध गीत इस प्रकार पढ़ा –

कभी-कभी मुझको लगता है I

ईश्वर भी कविता पढ़ता है II

तीन बजे से प्रस्तावित यह कार्यक्रम साढ़े तीन बजे से शुरू होकर साढ़े सात बजे तक चला और किसी के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं I कुसुमेश जी ने तो यहाँ तक कहा ऐसी गोष्ठी तो बार-बार होनी चाहिए I अंततः सभी लोग हँसते मुस्कराते विदा हुए I मैं उन्हें अनिमेष जाते देखता रहा और मन में कुसुमेश जी के स्वर सरगोशी कर रहे थे- समझता नहीं खुद के आगे किसी को I ये क्या हो गया आजकल आद्म्री को II मेरे मन में भी कविता सुगबुगाने लगी -

सोता रहता है स्वाभिमान टुक सोने दो

छेड़ो मत उसको अभी अरे उकसाओ मत I

है पता मुझे हिंसक होता यह जीव नहीं

पर स्वप्नलीन होगा संज्ञा में लाओ मत II

            लेकर आती स्वत कुटिलता ध्वांत रूप है

           अहंकार जाने कब आकर है छा जाता I

          दर्पाचार स्वतः बढ़ता है धीरे-धीरे

          नींद त्याग कर स्वाभिमान तब सत्वर आता II

होता है जो द्वंद्व शांत थिर होकर देखो

पाप-शाप लड़कर दोनों को ही धोने दो I

सोता रहता है स्वाभिमान टुक सोने दो ( सद्य रचित ) [चौबीस मात्रिक अवतार जाति के छंद में (16, 8) की स्वतंत्र योजना]

(मौलिक/अप्रकाशित )

Views: 277

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
4 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय आजी भाई , ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें "
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service