मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।
मंजिल हर सोपान की, केवल है अवसान ।।
छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।
पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।।
छोटे से परिवार में, दो -दो हैं औलाद ।
उसमें भी होते नहीं, आपस में संवाद ।।
पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।
प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।।
कत्ल प्रेम में आजकल, अब होते हैं आम ।
नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।
धोखा ही धोखा मिले, प्रेम पाश में आज ।
आडम्बर में प्रेम के, लूटें दैहिक लाज ।
प्रेम नाम पर आजकल, मुश्किल है विश्वास ।
जीवित इसकी आड़ में, होती तन की प्यास ।।
सुशील सरना / 19-8-25
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई है.
कई दोहे फिर भी थोड़ा और समय चाहते हैं.
मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान । ......... जीवन के सोपान को पहचानना कैसे या क्यों मुश्किल है इसे ही दूसरे पद में होना था.
मंजिल हर सोपान की, केवल है अवसान ।। ... .. लेकिन आपने दूसरे पद में एकदम से कथ्य ही बदल दिया.
छोटी-छोटी बात पर, होने लगे तलाक ।
पल में टूटें आजकल, रिश्ते सारे पाक ।। ......... भाव के हिसाब से यह दोहा सार्थक है.
छोटे से परिवार में, दो -दो हैं औलाद । .......... छोटे हैं परिवार अब, अकसर दो औलाद
उसमें भी होते नहीं, आपस में संवाद ।। .... ..... किंतु सदस्यों में नहीं, होते हैं संवाद
पति-पत्नी के प्रेम का, अजब हुआ है हाल ।
प्रेम जाल में गैर के, दोनों हुए हलाल ।। ........ .. सत्य वचन .. आजकी पीढ़ी के कई दंपत्तियों से सम्बन्धित समाचार वाकई डरा देते हैं
कत्ल प्रेम में आजकल, अब होते हैं आम ........ आजकल और अब एक साथ ? आजकल का अर्थ ही अब है. या अब माने आजकल
नाता जोड़ें गैर से, फिर होते बदनाम ।।
धोखा ही धोखा मिले, प्रेम पाश में आज । ........ जी ..
आडम्बर में प्रेम के, लूटें दैहिक लाज ।
प्रेम नाम पर आजकल, मुश्किल है विश्वास । .... आज प्रेम-सम्बन्ध पर, होता कम विश्वास
जीवित इसकी आड़ में, होती तन की प्यास ।। ... मधुर भाव की आड़ में, हावी तन की प्यास
मैंने कुछ दोहों फर पुनर्प्रयास किया है.
आप चाहें तो इन पर और बेहतर काम कर इन्हें और भी सुगढ़ और तार्किक विन्यास दे सकते हैं.
शुभ-शुभ
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई
आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव से सन्तुष्ट हूँ सर । सादर नमन
अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।
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