आदरणीय साथिओ,
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शशी बहूत सशक्त लघुकथा रची है तुमने. कई बार इस तरह की समस्याओ से जुझते हुए स्त्री शर्म और संस्कार वश कुछ बोल नही पाती. एक युवा बेटी का पिता कैसे निशंक होकर सो सकता है. बधाई आपको इस रचना के लिए
समाज में व्याप्त एक कटु सत्य को आपने कथा का विषय बनाया है जिसके लिए आप को बधाई आदरणीया शशि बंसल जी ...पर इस का इलाज भी महिलाओं /लड़कियों को अंततः खुद ही करना है ..कोई पिता ,कोई भाई या कोई पति नहीं कर सकता
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