आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी। बहुत खूबसूरत लघुकथायें।दोनों रचनायें चकित कर देने वाली हैं।आपकी मेहनत साफ़ झलक रही है।
आदरणीय महेंद्र कुमार जी गज़ब . आप ने वह तोडती पत्थर , शानदार लघुकथा लिखी है. बधाई इस उम्दा लघुकथा के लिए.
अहा आदरणीय महेंद्र कुमार जी क्या बात है दोनों ही कथाओं का जवाब नहीं | वाह | गज़ब का लेखन हुआ है आपको जिसके लिए मेरी तरफ से ढेरों बधाई स्वीकारें
“समझदारी”
“सुबह ऑफिस जाते समय ही बोला था कि मेरे सारे कपड़े आज आयरन हो जाने चाहिए ऑफिस से मैं वापस लौट भी आया ... सारे के सारे कपड़े ज्यूँ के त्यूँ ही रखे हुए हैं दिन भर करती क्या हो जो अठारह-बीस कपड़े तक आयरन नहीं हो सके...” धनेश अपनी पत्नी सिया पर चिल्ला पड़ा
“कुछ घंटे तक बिजली नहीं थी , कुछ देर के लिए मैं बाहर चली गयी थी”
“बाहर! बाहर कहाँ गयी थी तुम! शाम में ही न कुछ देर के लिए सब्जी-दूध लाने गयी होगी”
“सब्जी-दूध लौटते समय ली थी”
“लौटते समय! कहाँ से लौटते समय?
“एयरपोर्ट गई थी, कुछ देर के लिए”
“एअरपोर्ट! एअरपोर्ट क्यों जाना पड़ा और गयी तो किसके साथ?
“अकेले गई थी ... शहीद को श्रद्धांजली देने”
“और कोई क्यों नहीं गया ? एअरपोर्ट पर आया शहीद तुम्हारे रिश्ते में था क्या”?
“कोई और क्यों नहीं गया मैं नहीं जानती, जहाँ तक रिश्ते की बात है... शहीदों के कारण ही हम सभी सुरक्षित रहते आये हैं, और जहाँ तक मैं समझती हूँ देश का नाता खून के नाते से कहीं उपर है, जो अमिट और अमर है”
पत्नी की सोच-समझ पर आज पति नतमस्तक हो चुका था और फिर एक शब्द बोल नहीं सका...
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