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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-26 (विषय:सबक़)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" पिछले महीने अपनी रजत जयंती मना चुकी हैI गत 25 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-26  
विषय: "सबक़"
अवधि : 30-05-2017 से 31-05-2017 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक हिंदी लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैं
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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aआदरनीय रवि प्रभाकर जी बहुत दिनों बाद आप की टिप्पणी प्राप्त कर ख़ुशी हुई. शुक्रिया आप का आप की अमूल्य प्रतिक्रिया के लिए.

बहुत कठिन है डगर .. ..

दादी माॅं को मृत्युशैया पर देख परिवार के सभी सदस्य उनके चारों ओर एकत्रित हो गए। और वे, उन सबसे यह पूछने में व्यस्त थी कि ‘‘आज क्या पकाया गया है, घर के सभी कमरों को ठीक ढंग से धोया गया है कि नहीं, सभी ने स्नान कर लिया या नहीं।‘ 

सदस्यों ने निवेदन किया कि, ‘‘ माॅं काम की चिन्ता मत करो, सब होता जा रहा है, तुम तो हरि हरि बोलो‘‘

उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया और बोलीं, ‘‘ अरे ! गायों को चारा डाला है या नहीं ‘‘ ।

सभी सदस्य चाहते थे कि उनकी मुक्ति हो, इसलिए वे उन्हें बार बार समझा रहे थे, 

‘‘ माॅं ! घर के सभी कामकाज सही समय पर उचित ढंग से किये जा रहे हैं तुम्हें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, तुम तो केवल हरि हरि बोलो ।‘‘

दादी ने इसे फिर से अनसुना कर दिया और पूछने लगी, ‘‘ अरे ! कुत्ते को कुछ खिलाया या भूखा ही बैठा है ?‘‘

सदस्यों ने उनसे हरि हरि बोलने के लिए फिर से प्रार्थना की। इस बार वह झल्लाते हुए बोली, 

‘‘ सब लोग यहाॅं से बाहर जाओ ! क्या मैं मर रही हॅूं ? एक ही नाम बार बार कहने की रट लगाए हो ? ए छोटी बहु ! आॅंगन में जाकर देख कपड़े सूख गए होंगे, उठा ला। ‘‘

बाहर आकर दादी माॅं के छोटे बेटे ने अपने बड़े भाई से पूछा, 

‘‘भैया ! माॅं को यह क्या हो गया है ? हरि हरि बोलने में उन्हें कठिनाई क्यों हो रही है ?‘‘ वह बोले,

‘‘ मन के द्वारा शुरु से जैसे कार्यों, आदतों और विचारों का अभ्यास किया जाता है अन्त में भी वही विचार घेरे रहते हैं , इन्हें बदल पाना बहुत कठिन होता है।‘‘ 

.

मौलिक एवं अप्रकाशित

‘‘ मन के द्वारा शुरु से जैसे कार्यों, आदतों और विचारों का अभ्यास किया जाता है अन्त में भी वही विचार घेरे रहते हैं , इन्हें बदल पाना बहुत कठिन होता है।‘‘ .... उम्दा सन्देश देती हुई शानदार लघुकथा आदरणीय डॉ TR  सुकुल जी . बधाई स्वीकार करे इस लघुकथा के लिए. 

आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी। 

सबक़ और सीख का अर्थ एक ही हैं भाई सुनील वर्मा जी. लेकिन बड़े भाई  द्वारा कहे गए शब्द सबक़ अथवा सीख से ज्यादा स्पष्टीकरण देते हुए लग रहे हैं.     

आदरणीय योगराज जी ! यदि कथा में छोटे भाई की उत्कंठा को शान्त करने के लिए बड़े भाई द्वारा दिया गया उत्तर स्पष्टीकरण माना जाय तो वह उन सभी पात्रों सहित पाठकों के लिए सबक़ या सीख भी देता है। इस प्रकार कोई इसे सीख, कोई सबक़ , कोई शिक्षा और अन्य विद्वान इस पर कुछ अन्य प्रकार सोच विचार करेंगे जो कि कथा के प्रसुप्त भावों का प्रक्षेप ही कहा जायेगा। क्या यह आपके एक लेख के उसी वाक्य के अनुरूप ही नहीं होगा जिसमे आपने लिखा है कि " जो इतने प्रश्न-चिन्ह छोड़ जाए की पाठक एक से अधिक उत्तर ढूँढने पर मजबूर हो जाए। " सादर।

जी हाँ आदरणीय सुनील जी ! इसे आदरसूचक ही मानिए। यदि आपने "पंक्चुएशन " पर ध्यान दिया होता तो यह भ्रम उत्पन्न नहीं होता।सादर

आदरणीय सुकुल जी आदाब,बहुत ही जिज्ञासा का संचार करती कथा ।बेहतरीन कथानक,अच्छे संवाद और संदेश भी । ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें ।

आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी।

बढ़िया सन्देश देती हुई आपकी इस कथा पर हार्दिक बधाई आ डॉ टी आर शुकल जी |

आभार आदरणीया कल्पना जी।

एक उम्दा संदेश लिए बढ़िया कथा आदरणीय Dr.TR suluk ji.

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