आदरणीय साथिओ,
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बहुत बढ़िया रचना विषय पर, बस पैसों से ही मतलब है सबको, चाहे अपने माँ बाप हों या और लोग| बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए
"दो कप"-
अंगडाई लेते हुए व भी किचन में चला आया था। हुर्रे!! आज तो छुट्टी है. वह भी तो बडी मन ही मन खुश हो ली थी। फिर दोनो इधर- उधर की बातें करने लगे थे।
" चलो! आज संग में एक-एक कप कॉफ़ी हो जाए वर्ना रोज तो...."
"हा! हा! क्यों नहीं " उसने भी तो ईठलाते हुए दूध उबालने रख कर दिया था कि तभी डोर बेल घनघनाई थी।
"सर! है क्या घर में " ---इधर कॉफ़ी भी तैयार थी
"आइए -आइए एक-एक कप..."
"नहीं-नहीं!, ...अच्छा चलो आधा कप चाय चल जाएगी।" आने वाले ने कहा था
उसने दो कप चाय बनाकर भेज दी थी। उन्होंने भी मेहमान के साथ चाय पी ली थी. .
आगंतुक के चले जाते ही उनका ध्यान भी " अरे! ये कप... ओह अभी तो उनके साथ..."
वो चुपचाप उठकर जाने लगी तो तभी उसका हाथ पकड़ कर उन्होंने कहा "तुम कितनी स्वीट हो, मेहनती भी "I love..."
वो अभी "हूँ" कहती ही कि मोबाइल की घंटी बज उठी। थोडा ही तो बचा था "you" तक पहुँचना और फिर" अभी आता हूँ" कहकर वह निकल गया था।
माँ-बाबूजी, बच्चों को खाना देते उसने अपने अंदर के काले बादलों को सिल्वर लाईन से ढँक दिया था। क्या सच में आज छुट्टी थी. वैसे भी अब उसने उमंगना तो छोड ही दिया था।
आँख खुली उसकी उसने अपने आप को टेबल पर ही अपने हाथों की तह के बीच सोता पाया था।
"अरे! आप कब आए। कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।" वो अपराध बोढ से भर उठी थी।
"अरे सुनो! जब में घर में आया , जी.एस. टी सेमीनर के तुम्हारे महत्वपूर्ण पेपर्स पूरे घर मे नृत्य कर रहे थे। समेट कर रख दिए है उस थैली में। सच में बडी बेपरवाह हो तुम ।"
उसके एहसान का बोझ लेकर वह उठी ही थी कि उसकी नजर डाइनिंग टेबल पर अटक गई.
काफी के दो कप "कोस्टर" ओढे मुँह बंद किए हुए अभी भी इंतजार में थे.
मौलिक व अप्रकाशित
जीवन में कुछ लम्हे ऐसे होते हैं कि एक बार ग़ुम हो जाएँ तो दोबारा नहीं मिलते. इस ख़याल पर बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने आ. नयना जी. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. कुछ बातों पर ध्यान दीजिएगा :
1. टंकण त्रुटि (हा! हा!)
2. वाक्य रचना (वह भी तो बडी मन ही मन खुश हो ली थी।)
3. अनावश्यक शब्द (समेट कर रख दिए है उस थैली में।) "समेट कर रख दिए हैं।"
4. शब्दों की प्रासंगिकता (जी.एस.टी.)
5. अंग्रेजी शब्दों को रोमन लिपि में लिखना.
सादर.
थोडा ही तो बचा था "you" तक पहुँचना और फिर" अभी आता हूँ" कहकर वह निकल गया था।// क्या बात है .... दैनिक जीवन की भागम भाग जैसे आम विषय को आप की कलम ने ख़ास बना दिया बधाई आदरणीया नयना जी
अच्छी लघुकथा है नयना ताई, लेकिन लगता है कि बहुत ही जल्दबाज़ी में लिखी हुई है I भाई महेंद्र कुमार इशारा दे भी चुके है, उनपर काम करेंगी तो कथा और भी चमक उठेगीI बहरहाल, हार्दिक बधाई स्वीकारेंI
बढ़िया विषय उठाया है आपने, रोजमर्रा के जीवन से| बहुत बहुत बधाई आपको
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