आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक आभार डॉ रवि प्रभाकर जी. वर्तनी की त्रुटियों के लिए मेरे इलावा बदतमीजी कर रहा कीबोर्ड भी जिम्मेवार है. संकलन आने के बाद सुधारने का वादा करता हूँ.
हार्दिक आभार भाई सुनील वर्मा जी
गजब का सृजन है सर, बातों-बातों में बहुत बड़ी बात कह दी और सर केवल स्त्री ही क्यों यह सन्देश तो सभी के लिए है कि //अपनों के लिए कुछ करने को गुलामी नहीं सुख कहते हैं// मुझे तो यह आम वाक्य नहीं बल्कि जीवन का एक मूलमन्त्र सा प्रतीत हुआ| सादर नमन आपको|
आपकी प्रशंसा किसी पुरस्कार से कम नहीं भाई चंद्रेश कुमार छ्तलानी जी, हौसला अफजाई हेतु हार्दिक आभार.
मोहतरम आली जनाब समर कबीर साहिब. हकीकत तो ये है कि मुझे इस दफा रचना पोस्ट ही नहीं करनी थी, क्योंकि अति व्यस्त होनेके कारण कथा को फिनिशिंग टच नहीं दे पाया था. मगर रवि भाई बार बार फोन करने कह रहे थे कि लघुकथा पोस्ट करें. मैंने उन्हें बताया भी कि अभी स्पेलिंग्स चेक करने बाकी है, बहरहाल डरते डरते मैंने पोस्ट कर ही दी. और सितम देखें कि वर्तनी पर रवि भाई ही मेरी खिंचाई कर गए. बहरहाल आपकी प्रशंसा ने मुझे उबार लिया, बहुत बहुत इस ज़र्रानवाज़ी के लिए आदरणीय.
रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार जानकी जी.
हार्दिक आभार नयना ताई जी, मुझे यह पैराग्राफ भूमिका बांधता कतई नहीं लगा. आपने जग्गू का परिचय क्यों हटाया इसके बारे में तो आप ही बहतर बता सकती हैं. वैसे किसी भी आवश्यक पंक्ति/विवरण को अनावश्यक या भूमिका कैसे कहा जा सकता है?
सही कहा सर !!
तूने गृहस्थी नहीं बसाई न ! इसीलिए तू नहीं समझ सकती ।
वो सुख !
बहुत अच्छी लघु कथा ।
हार्दिक आभार आ० अन्नपूर्णा जी.
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