आदरणीय साथिओ,
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मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब,
आदाब!
यकीन मानें आपके इस सवाल से रूह ख़ुश हो गई, ऐसा अहम सवाल कोई रोशन दिमाग अदीब ही पूछ सकता था. मैं बहुत ही ख़ुलूस-ओ-एहतराम के साथ अर्ज़ करना चाहूँगा कि नाचीज़ की इस लघुकथा में कालखंड दोष नहीं है. उसकी वजह ये है कि ये एक ख़त है जिसमे बेशक अलग अलग काल अंशों पर बात की गई हो लेकिन यह ख़त एक इकहरे कालखण्ड की नुमाइंदगी करता है. दूसरी बात, अगर देखा जाए तो जिन वाक्यात का ज़िक्र इस ख़त में है वह पहले ही घटित हो चुके हैं, यानि ख़त की हरेक बात/घटना का ब्यान अतीतावलोकन (फ्लैशबैक) तकनीक से किया गया है. इसलिए लघुकथा कालखंड दोष से बरी मानी जानी चाहिए. सादर.
रचना को मान देने हेतु आपका हार्दिक आभार आ० मेघा राठी जी.
आदरनीय भाई साहब , पत्रशैली में लिखी गई बहुत ही बढ़िया लघुकथा पढ़ने को मिली .इस हेतु आप को बहुतबहुत बधाई. आप ने एक नए ढंग से वाकिफ करा दिया.
इस हौसला अफजाई का हार्दिक आभार आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय भाई जी.
कहीं न कहीं हक़ीक़त के बिलकुल करीब है यह लघुकथा, पता नहीं कितने बबलू इन्हीं परिष्ठियों में दाऊद बन जाते हैं| एक आम नागरिक जिसका इन सब चीजों से कोई सरोकार नहीं होता लेकिन किसी जाति या धर्म विशेष में अपने जन्म के चलते ऐसी परिस्थितियों से दो चार होना पड़ता है, उसकी पीड़ा को बखूबी उभारा है आपने इस रचना में| बहुत बहुत बधाई इस सटीक लघुकथा के लिए आ योगराज सर
रचना के मर्म तक पहुंचकर उसे इतना मान बख्शने के लिए ह्रदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ भाई विनय कुमार सिंह जी.
हार्दिक आभार भाई सुरेन्द्र इंसान जी
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