आदरणीय साथिओ,
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//पत्नी ने होंठ भींच रखे थे// - पात्र द्वारा अनकहा और //स्टील का ग्लास टन्न करके चीख उठा// रचना में अनकहा| विषय और शिल्प की दृष्टि से बहुत अच्छी लघुकथा कही है आदरणीया प्रतिभा जी| सादर हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|
हार्दिक आभार आदरणीय चंद्रेश जी , कथा पर उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक जी
आपको कथा अच्छी लगी.. हार्दिक आभार प्रिय सीमा जी
हार्दिक आभार आदरणीया शशि बंसल जी
आदरणीय प्रतिभा जी कथा तो जाे है सो है परन्तु लघुकथा का शीर्षक सोने पे सुहागा । 'गुरुवे नम:' में जो तीक्ष्ण व्यंग्य है जो कटाक्ष है वह बहुत सूक्ष्म परन्तु अंदर तक झंकझकोरने में पूरी तरह सक्षम है । लघुकथा के अंत में स्टील के गिलास को ठोकर मारना और टन्न की चीख दव्ारा जो प्रतीकात्मक दृश्य सृजित किया गया है व अद्भुत है । कोटिश कोटिश शुभकामनाएं ।
एक तरफ विद्यार्थियों अभिभावकों को लूटने वाले कोचिंग सेंटर फल फूल रहे हैं वहीँ दूसरी तरफ शिक्षण के प्रति समर्पित शिक्षक बदहाली झेल रहे हैं I, आपने रचना के इस मर्म का अनुमोदन किया आपका हार्दिक आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी
वाह, बहुत शानदार रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत कुछ कह गयी न कहते हुए भी| बहुत बहुत बधाई आपको आ
सार गर्भित लघु हेतु बधाई आपको , आ0 प्रतिभा पांडे जी ।
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