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आदरणीया मालाजी
आपको कथा पसंद आई मेरा प्रयास सफल हुआ। कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।
अलग अलग पहचान कभी कुछ कहीं कुछ पहचान उजागर होती है मानसिकता के आधार पर , परिस्तिथि के आधार पर | सुंदर लघुकथा हुई है आ. अखिलेश जी . सादर
सुन्दर और सशक्त रचना आदरणीय अखिलेश भाई जी ....हार्दिक बधाई!.
// कहते हुए तेज कदमों से लौटने लगा। फिर कुछ रुक कर- “ इस घर के लिए यह बोर्ड कितना सटीक है - ‘कुत्तों से सावधान’ ।”// की जगह पर इतना भी काफी है ..... " वैसे बाहर बोर्ड भी कितना सटीक लगा है - ‘कुत्तों से सावधान’ ।”
(मात्र एक सुझाव)
आदरणीय वीरेन्दर भाई
आपको कथा पसंद आई मेरा प्रयास सफल हुआ। कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार । आपका कहन भी सही है।
आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी लघुकथा का कथ्य वाकई रोचक है. संवाद भी आवश्यकतानुसार सीधे-सीधे हैं. यही आपकी लघुकथा के प्राण हैं. आपकी इस दृष्टि के लिए हार्दिक बधाई और अशेष शुभकामनाएँ
कथोपकथन के संदर्भ में यह अवश्य है कि प्रस्तुतीकरण और निर्वहन में शिल्पगत सुधार आवश्यक हैं. आप प्रकाशित हुई कथाओं-लघुकथाओं को ध्यान से देखें तो यह भी स्पष्ट हो जायेगा.
एक अच्छी एवं तथ्यपरक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई.
सादर
आदरणीय सौरभ भाईजी
आपको कथा पसंद आई मेरा प्रयास सफल हुआ। कथा को समय देने विस्तार से टिप्पणी और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।
प्रस्तुतीकरण और निर्वहन में शिल्पगत सुधार आवश्यक हैं............. इस कथा को ही अपनी अपेक्षा के अनुसार तराश दीजिए तो मुझे बहुत कुछ सीखने मिल जाएगा । छंदोत्सव में जब आप भाव शब्द व्याकरण और विधा के अनुसार संशोधन, सुझाव या टिप्पणी करते हैं तो सही क्या है तुरंत समझ में आ जाती है।
सादर
आदरणीय अखिलेश भाईजी, मेरा निवेदन यह है कि शिल्प का अर्थ मात्र वैधानिक अर्थ न लेकर प्रस्तुतीकरण के अर्थ में भी लिया जाना चाहिये. मेरा आशय यही है.
“क्या बकते हो, भिखारी होकर ज़बान लड़ाते हो।” ... [ तेज आवाज से कुछ पड़ोसी भी बाहर आ गए ]।
मालिक- “अरे वो भिखारी की औलाद अपनी औकात में रहो, ... यहाँ से तुरंत भागो वर्ना कुत्ते से कटवाऊँगा।”
अण्डरलाइन पंक्ति पर ध्यान दें कि इसे इस ढंग से लिखने की क्या आवश्यकता थी ?
कहने का अर्थ है कि हर विधा के अपने ढंग होते हैं, उनका अनुपालन हो तो न केवल रचना सुगढ़ दिखती है बल्कि संप्रेषणीयता भी बनी रहती है. मेरा यही निवेदन था आदरणीय.
सादर
आदरणीय सौरभ भाईजी
मालिक इसलिए लिखा कि बड़ी देर तक मालकिन ही बात कर रही थी। ........ वैसे ज़रूरत नहीं थी
और कोष्टक वाली बात इसलिए कि पड़ोसी भी देख सुन ले कि एक भिखारी भी उन सब के बारे में क्या राय रखता है।
यह मेरी तीसरी लघु कथा है अर्थात सीखने की शुरुवात है और बहुत कुछ सीखना बाकी है। >>>>>>>
सादर
आपने प्रस्तुति के क्रम में क्या किया है, इसे कहने की आवश्यकता नहीं है, आदरणीय अखिलेश भाईजी. उसे देख-समझ कर ही हम कुछ निवेदन कर रहे हैं. आपके प्रयासों के प्रति हम सभी नत-मस्तक हैं.
सादर
जहाँ रईस एक गरीब भिखारी की पहचान पूर्व अवधारित भावना के तहत कायम कर लेता हैं वहीँ गरीब भी उस रईस की पहचान सशक्त तत्थ्यों के आधार पर कायम करता है ..अंतिम पंक्ति तो लघु कथा की जान है बहुत बढ़िया वाह ....आ० अखिलेश जी ,बहुत- बहुत बधाई
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आदरणीय सुधीर भाई
आपको कथा पसंद आई मेरा प्रयास सफल हुआ। कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार । कहन सही है समय और परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति की पहचान होती है।