आदरणीय साथिओ,
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बहुत सुंदर लघुकथा हुई है भाई विनय कुमार जी। लघुकथा की प्रस्तुति और उसके अंत का अंत इंटरेस्ट बने रहना ही कथा की सफलता है ..... रौशनी का चरित्र बहुत ही सुन्दरता से उभर कर आया है और प्रभावी बना है, मेरीओर से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये विनय जी
बहुत बहुत आभार आ वीरजी
कैरियर ( परिणाम शीर्षक के अंतर्गत लघुकथा)
कभी स्कूल से कभी कोचिंग से फोन आता कि आज भी अक्षत नही आया।बारहवीं जैसी जीवन को दिशा देने वाली क्लास को भी वह गम्भीरता से नही ले रहा था।स्वाति बेटे की हरकत से परेशान थी।क्या करे ? कैसे समझाए बेटे को ? इन्ही प्रश्नों में उलझी बिफर पड़ी अक्षत पर :
" क्यों कर रहे हो ऐसा ? आखिर चाहते क्या हो तुम ? "
" नही मन करता पढ़ने का "
" क्या करोगे अपने जीवन के लिये ?"
" जो करना चाहता था , आपने करने नही दिया। आगे का मुझे पता नही। "
" मतलब क्या हैं तुम्हारा ? सबकुछ तो कर रही हूँ तुम्हारे मन के अनुरूप। तुम्हारी पढ़ाई और उज्जवल भविष्य के लिए ही हम यहाँ रह रहे हैं।"
" नही माँ आप अगर मेरे लिये करती तो मैं क्रिकेट के मैदान पर होता।"
बेटे के शब्द उसे तीर की तरह बेध गए वह अश्रुओं में तैरती अतीत में विचरण करने लगी।जब बेटे ने क्रिकेट प्लेयर बनने का प्रस्ताव उसके समक्ष रखा था। पति गम्भीर बिमारी से सांसो के लिए और वह भरे जहां में अपने अकेलेपन से लडती जीत गई थी। अगले ही पल अतीत के निर्णय से वर्तमान में आये विपरीत परिणाम को मात देने के लिए कमर कसते हुए कहा :
" बेटा , इच्छाएं अनंत हैं जिनकी पूर्ति सम्भव नही। फिर कोई जरूरी तो नही की शौक को ही कैरियर बनाया जाय। "
''जहां चाह, वहां राह" का प्रतिरोध करती सोच और भेड़चाल पर रौशनी डालती बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया अर्चना त्रिपाठी साहिबा।
क्षमा करें मित्र आ. शेख शहजाद उस्मानी जी, ' जहां चाह वहाँ राह ' की मैं भी समर्थक हूँ लेकिन कभी कभी अभिभावक या माता पिता चाहते हुए कुछ नही कर पाते।यह उनकी कोई जिद नही बेबसी होती हैं।यह बात और हैं कि दुनिया को उनकी विवशता भेड़चाल लगे फिर ' जाकी ना फटी बिवाई ऊ का जाने पीर पराई '
ऐसा कई बार होता है कि माता पिता की कुछ ऐसी परिस्थितिजन्य मजबूरियां होती हैं कि चाहते हुए भी बच्चो के लिए उनका मनचाहा निर्णय नहीं ले पाते हैं और बच्चों को लगता है की उनके लिए कुछ नही किया गया। कितना अच्छा होता अगर बच्चे भी कुछ संवेदनशीलता दिखाएँ और समझें कि यह उनके माता-पिता की कोई जिद नही बल्कि बेबसी है। अच्छी लघु कथा के लिए बधाई।
रचना के सकारात्मक पक्ष पर दृष्टि डालने और जिस विषय को मैं उठाना चाहती थी उसी मर्म को आपने भी छुआ। उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया देने के लिए आपका हार्दिक आभार आ.नीलम उपाध्याय जी।
बहुत ही बेहतरीन और विषयानुकूल लघुकथा । हार्दिक बधाई आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी ।
आपका हार्दिक धन्यवाद आ. मो. आरिफ जी
माँ बाप बच्चों के लिए अपने हिसाब से बेहतर ही सोचते हैं, बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर. कुछ मजबूरियां भी होती हैं उनके आगे, बधाई इस रचना के लिए आ अर्चना त्रिपाठी जी
हार्दिक आभार आपका आ . विनय कुमार जी
अच्छी लघुकथा हुई है अर्चना त्रिपाठी जी, बधाई प्रेषित है।
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