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आदरणीया नीता कसार जी, लघुकथा के प्रयास पर सकारात्मक प्रतिक्रिया और सराहना के लिए हार्दिक आभारी हूँ. सादर...
आदरणीय मदनलाल श्रीमाली जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभारी हूँ. सादर...
आदरणीया ज्योत्स्ना कपिल जी, सही कहा आपने... लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभारी हूँ. सादर...
दोहरी मानसिकता से ग्रस्त लोगों का यही व्यवहार होता है फिर बच्चे वही सीख कर वैसा ही करते हैं तो हम बच्चों को दोष देते हैं विषय भले ही पुराना हो किन्तु लघु कथा का प्रस्तुति करण अच्छा है बहुत- बहुत बधाई मिथिलेश भैया .फीता काटने में तो हर बार बाजी मार लेते हो इसके लिए भी बधाई .
आदरणीया राजेश दीदी, सही कहा आपने.... लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभारी हूँ. इस बार धीमे इंटरनेट कनेक्शन के कारण फीता काटने पर संदेह था लेकिन बस हो गया.... आपकी आत्मीय प्रतिक्रियाओं से सदैव रचनाकर्म को बल मिलता है .... सादर नमन
भाषण में कुछ और - कृत्य कुछ और| यही बुनियाद कहीं न कहीं अधिकतर व्यक्ति अपने बच्चों को दे रहे हैं| पंच लाइन वास्तव में गजब की है आदरणीय मिथिलेश जी |
आदरणीय चंद्रेश जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभारी हूँ. सादर
"कथनी और करनी में फर्क"
सच कहूँ तो प्रस्तुत लघुकथा की तीन पक्तियाँ पढ़ते ही मैं समझ गया था कि लेखक क्या लिखने वाला है, यह विषय अब इतना घीस पिट गया है कि प्रभावित नहीं करता.
यदि स्पष्ट कहूँ तो मुझे प्रस्तुत लघुकथा बेहद हलकी लगी.
सादर.
आदरणीय बागी सर, आपने सही इस विषय पर बहुत लिखा जा चुका है इसलिए यह प्रभावित नहीं करता है. इस हलकी प्रस्तुती के लिए क्षमा चाहता हूँ. आगे प्रयास करूँगा कि कुछ अच्छा लिख सकूं. यद्यपि इस विधा में अभ्यास के क्रम में लिखी गई लघुकथा है. इस पर पुनः प्रयास किया है, निवेदित है-
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“सत्य और परोपकार मतलब ट्रुथ एंड चैरिटी”
“वो तो मैं जानता हूँ पापा... मुझे हिंदी में स्पीच देनी है.”
“अच्छा ..... हमेशा सत्य बोलना चाहिए. झूट बोलना पाप है. गांधीजी हमेशा सत्य बोलते थे. सत्य की हमेशा जीत होती है....”.
“और परोपकार पापा ?”
“परोपकार, मतलब दूसरों पर उपकार करना. परोपकार सबसे बड़ा धर्मं है. असहाय लोगो का सदैव सहयोग करना चाहिए. यही परोपकार है.......”
अगले दिन स्पीच में फर्स्ट प्राइज़ की ट्रॉफी लेकर, बेटा स्कूल से घर आया तो देखा पापा बेडरूम की अलमारी से नोटों की गड्डियाँ ब्रीफकेस में रख रहे थे. तभी कॉलबेल बजी और पत्नी ने आकर फुसफुसाया- “किशन भैया आये है. कह रहे है कि मीना अभी भी कोमा में है.”
सुनते ही ब्रीफकेस बंद किया और ड्राइंग रूम पहुँच गए. ट्रॉफी लिए बेटा भी ड्राइंग रूम के दरवाजे के आड़ में खड़ा रहा.
“किशन अभी तो मैं ऑफीस जा रहा हूँ जरुरी मीटिंग है. पूरे पैसो का इंतजाम होते ही तुम्हे फोन करता हूँ. अस्पताल जाओ अभी तुम ... और हाँ ये कुछ पैसो का इंतजाम किया है.ये ले जाओ."
और ब्रीफकेस किशन को थमा दिया.
बेटे ने पल भर अपनी चमकती ट्रॉफी को देखा तो उसे लगा ये पापा के गाल है और उसने ट्रॉफी को चूम लिया.
कथा को सकरात्मक मोड़ देने का प्रयास सराहनीय है आदरणीय मिथिलेश जी.
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