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आदरणीया नेहा जी बिलकुल ठीक हो सकती है. आपने कार्यशाला में रचना प्रस्तुत की है इस पर चर्चा के बाद आप संशोधित रचना कमेन्ट रूप में पोस्ट कर सकती हैं जिस पर चर्चा होगी और संकलन के बाद संशोधन हेतु निवेदन भी कर सकती है.
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आदरणीया नेहा जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. बहुत बढ़िया कथानक है, संवाद भी प्रभावकारी है. किन्तु कहीं कुछ मिसिंग है. उस मिसिंग की जोड़ना होगा. लघुकथा सोचने पर तो विवश कर रही है मगर सोचना क्या है यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है. आतंकवाद पर सोचना है तो क्यों सोचना है ये मिसिंग है. सादर
आदरणीया नेहाजी
अगर आतंकवादी घटना में मृत्यु हुई है तो बात सही है , इसमें कौन मरा कितने मरे यह सब बाद में पता लगता है। लेकिन हमारे देश की बुनियाद तो बहुत मज़बूत और हजारों / लाखों बरस पुरानी है , बुजुर्ग किस युग की बात कह रहे थे। कभी जातीय झग़ड़े में जरूर ऐसी बात हो जाती है कि मासूम या निरपराध मारे जाते हैं लेकिन इस देश की बुनियाद में दीमक लगना . ........ ?
वैसे विषय को लेकर सुंदर प्रयास हुआ है , हार्दिक बधाई
सुन्दर लघुकथा, बहुत बहुत बधाई नेहा जी।
प्रस्तुत लघु-कथा पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय नेहा अग्रवाल जी !
आदरणीय नेहा अग्रवाल जी, आपकी कथा पढ़ी कुछ समझ नहीं पाया परन्तु आदरणीय योगराज सर की टिप्पणी के प्रत्युत्तर में आपकी टिप्पणी पढ़ी तो कथा स्पष्ट हुई । लघुकथा में जब कभी भी स्पष्टीकरण देकर कथा स्पष्ट की जाए तो वह लघुकथा असफल मानी जाती है। बेशक आपका प्रयास बहुत बढ़ीया था परन्तु यदि पड़ौसी देश के बारे में कोई संकेत कर दिया जाता तो आपकी कथा बहुत प्रभावशाली बनती । सादर ।
कमजोर कथानक के साथ कही गयी लघुकथा अभी बहुत मेहनत चाह रही है, इस सहभागिता हेतु बधाई आदरणीया नेहा अग्रवाल जी.
बात स्पष्ट नहीं हो रही है आदरणीया नेहा जी। किन्तु प्रयास शानदार है। दाद कुबूल कीजिए।
विषय को परिभाषित करती अच्छी लघुकथा , बधाई स्वीकारें आदरणीया नेहा अग्रवाल जी..
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