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लघुकथा के तीन आयोजन हुए है और मुझे केवल तीन लघुकथाएं आज भी याद है बसेसर सिंह वाली, बांके बिहारी वाली और बाबा व बरगद वाली..... सादर
आदरणीय मिथिलेश भाई, जाने ’सुधाकर गुप्ता’ इस पंगत में स्थान पायें या नहीं. लेकिन मैं एक तार्किक विद्यार्थी हूँ जो अन्य साहित्यिक-विधाओं की तरह इस विशिष्ट गद्य विधा के भी कई विन्दुओं को सीखना-समझना चाहता है.
’सुधाकर गुप्ता’ तो पंगत में सम्मिलित हो जायेंगे. आपके पीछे पीछे ये अभ्यासी भी है सर, //जो अन्य साहित्यिक-विधाओं की तरह इस विशिष्ट गद्य विधा के भी कई विन्दुओं को सीखना-समझना चाहता है.//
अलबत्ता मेरा 'ट्रोफी वाला बेटा' पंगत से पहले ही भगा दिया गया. सादर
//लघुकथा के तीन आयोजन हुए है और मुझे केवल तीन लघुकथाएं आज भी याद है//
इस टिप्पणी ने बहुत देर तक रोके रही, कई पहलु पर मंथन करता रहा साथ ही खुश भी हूँ और दुखी भी, खुश इस बात को लेकर कि केवल आदरणीय सौरभ भईया ही वैसे सौभाग्यशाली लघुकथाकार है जिनकी प्रस्तुतियां आपके मन मष्तिष्क में जगह बना सकीं और दुःख इस बात को लेकर कि इन तीन आयोजनों में निश्चित ही एकाध लघुकथाएं ऐसी रहीं होंगी जो याद रखने योग्य होंगी.
सादर.
वैसे बागी जी सिर्फ़ किसी कथा / बात का याद रह जाना उसके अच्छे या खराब होने की कसौटी नहीं होता। :)
ऐसे बयानों से गुरेज़ करें भाई मिथिलेश जी। यह मंच और माहौल की सेहत के लिए ठीक नहीं है।
आदरणीय योगराज सर व आदरणीय बागी सर, अपनी वाचालता के लिए क्षमा चाहता हूँ .... संभवतः बात सही ढंग से संप्रेषित नहीं कर पाया. निवेदन है कि मैं मंच के लिए समर्पित हूँ. अतिउत्साह में त्रुटी हुई है.
मंच का सम्मान और माहौल की समरसता सदैव ही मेरे लिए प्राथमिक है. भविष्य में ख़याल रखूंगा. सादर
आदरणीय मिथिलेश भाई, ऐसा सुनना किसी रचनाकार को अच्छा तो लगता है, विशेषकर उसे जो हाल-फिलहाल में इस विधा पर कलम आज़माई शुरु किया है. लेकिन शास्त्रीय तथा नैतिक रूप से भी ऐसा कहना उचित नहीं है. कारण कि अन्य प्रयासकर्ताओं के मन में पारस्परिक पार्शियलिटी या एकमत होने का भाव व्यापेगा जो कि कत्तई नहीं है.
दूसरे, भाव प्रधान प्रस्तुतियाँ प्रभावी होती ही हैं, लेकिन इस गुण के पीछे उनके विन्यास के क्रम में कई बातें छूटी हुई भी दिख सकती हैं. जिनका न पकड़ा जाना एक रचनाकार के तौर पर मुझे ही कमज़ोर करेगा.
तीसरे, इस तरह के वक्तव्यों से कई रचनाकारों के मन में कुछ ऐसा भी होने लगता है जो मेरे जैसे नये अभ्यासियों के प्रति विकार के भाव पैदा कर दे और मेरी रचनाओं पर चलताऊ दृष्टि फेंकते हुए निकलने लगें.
शुभ-शुभ
आपने सही कहा आ. सौरभ सर, एक आयोजन में ऐसी टिप्पणी उचित नहीं है. क्षमा चाहता हूँ और इस बात को यहीं विराम देते हुए आयोजन की अन्य रचनाओं से जुड़ता हूँ. अभी बहुत ही रचनाओं को पढना और प्रतिक्रिया देना शेष है. सादर
भाई मिथिलेश वामनकर जी
प्रणाम.
आप ने कथनी और करनी में अंतर के कथानक पर बहुत ही कसी हुई और जबरदस्त लघुकथा लिखी है. यह अन्दर तक कसक पैदा कराती है. बधाई आप को .
आदरणीय ओमप्रकाश जी आपको लघुकथा पसंद आई, जानकार आश्वस्त हुआ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
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