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जिस भी मुल्क की कथा है ये ,जरूर उसकी बुनियाद नफरत पर रखी गयी होगी वरना एक दस वर्ष का निरपराध यूं ना मारा जाता .
नफरत की बुनियाद पर प्यार के महल नहीं बन सकते ना----- इन भावपूर्ण पंक्तियों के लिए बधाई नेहा अग्रवाल जी
वर्चस्व की बुनियाद
"मुझसे से शादी करना चाहता है रे तू ... ? " - सिर से जलावन का गठ्ठर उतारते हुए निरमलिया आज पूछ ही बैठी मोहना से ।
"हाँ , तु मेरे मन को पसंद है । जो कहेगी मै सब करूँगा तेरे लिए ....। " -- मैली सी धोती से पसीना पोंछते हुए झेंप कर मोहना का मुंह शर्म से लाल हो उठा था ।
उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि निरमलिया सच में मान जायेगी ।
"मुझे तीन चीज़ तु दे सके जिंदगी भर के लिए तो मै शादी करूंगी तुझसे । "
"क्या ..क्या ...?"
"गैस चुल्हा , मोबाइल और गर्भनिरोधक । "
"ये सब क्या कह रही है रे निरमलिया ? "
"देख रे मोहना , मुझे चुल्हे में स्वंय को नहीं झोंकना सुबह से शाम तक, इसलिए गैस चुल्हा चाहिए .... मुझे सबसे बात करने को मोबाइल चाहिए और मुझे बच्चे जनने की मशीन नहीं बनना.... इसके लिए गर्भनिरोधक चाहिए । "
"बस इत्ती सी बात ..... देख मैने आज ही अरहर बेची है पच्चीस हजार की ... !
निरमलिया अपने आने वाले दाम्पत्य में अधिपत्य के वर्चस्व की बुनियाद डाल चुकी थी ।
.
मौलिक और अप्रकाशित
आ kanta roy जी
प्रणाम.
आप की लघुकथा ने मात्रसत्तात्मक परिवार की बुनियाद डाल दी . बहुत ही सुन्दर व कसी हुई लघुकथा आप को . बधाई.
जिस दिन महिलाओं में ऐसी ईच्छा-शक्ति जाग जायेगी और वह उसका सही समय पर इजहार कर सकेगी, परिवर्तन आना तय है ...हमें इसकी बुनियाद डालने की शुरुआत तो करनी होगी. नई शुरुआत की बुनियाद रखने के लिए आपका अभिनंदन आदरणीया कांता रॉय जी!
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