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बुनियाद
मुरादाबाद के टूर से लौटे पति के होल्डाल को खोलते ही श्रृद्धा चिहुंक उठी i उसे चादर में लिपटे चूड़ियों के टुकड़े दिखाई दिए i एक पल को वह सन्नाटे में आ गयी i कुछ सोचकर वह पति के पास गयी और सहज भाव से बोली –‘इस बार किस होटल में रुके थे ?’
‘होटल में नहीं, इस बार मैं अपने कक्षा-मित्र के घर पर ठहरा था, क्यों ?’
‘अच्छा वह जिसकी अभी शादी नहीं हुयी ?’
‘अरे नहीं, इड़ा भाभी के यहाँ रुका था I तुम तो जानती हो I’
श्रृद्धा को लगा उसके प्रेम की बुनियाद धसक रही है i विश्वास टूट रहा है I
‘अरे सुनो यार------, बड़ा गजब हो गया i मैं तुम्हारे लिए मुरादाबादी चूडिया लाया था मगर शायद वह होल्डाल में बंध गईं, कही टूट न गयी हों ?’
श्रृद्धा मानो आकाश से नीचे गिरी i फिर, एक विश्वास भरी मुस्कान उसके होठों पर तैर गयी I
(मौलिक व् अप्रकाशित )
रचना "लेफ्ट एलाईन्ड" पोस्ट करने में आपको कोई कठिनाई आती है क्या आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ?
आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है हार्दिक बधाई
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