For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" स्वर्ण जयंती अंक-50

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-50 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, यह हमारे परिवार के लिए एक एतिहासिक क्षण ही कि यह गोष्टी अपनी स्वर्ण जयंती मानाने जा रही हैI अत: यह अंक विषयमुक्त रखा गया है अर्थात हमारे रचनाकार अपने मनपसंद विषयों पर अपनी दो (एक दिन में केवल एक) मौलिक और अप्रकाशित लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैंI तो प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" स्वर्ण जयंती अंक-50
विषय : इस बार विषयमुक्त अर्थात आप किसी भी विषय पर अपनी लघुकथा प्रस्तुत कर सकते हैं .
अवधि : 30-05-2019  से 31-05-2019 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी दो लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैं। (एक दिन में केवल एक)
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 10807

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

ट्रॉली की समस्या

 

सालों पहले पूछा गया सवाल आज सच बनकर उसकी ज़िन्दगी के सामने खड़ा था। "रेलवे ट्रैक पर एक अनियन्त्रित ट्रॉली तेज़ गति से आ रही है। जिस ट्रैक पर ट्रॉली आ रही है उस पर पाँच व्यक्ति इस प्रकार बंधे हैं कि हिल भी नहीं सकते। आप वहीं लीवर के पास खड़े हैं। अगर आप लीवर खींच देंगे तो ट्रॉली दूसरे ट्रैक पर चली जाएगी। पर समस्या यह है कि उस दूसरे ट्रैक पर भी एक व्यक्ति बंधा है। आप क्या करेंगे? बिना कुछ किये पाँच लोगों को मर जाने देंगे या लीवर खींच कर एक की जगह पाँच को बचाएँगे?" सवाल ख़त्म होते ही सबसे पहले उसने उत्तर दिया, "वैरी सिम्पल प्रोफेसर! मैं एक की जगह पाँच को बचाऊँगा।" आज वही छात्र पटरियों के बीच लीवर के पास खड़ा था और ट्रॉली सचमुच उसकी तरफ़ आ रही थी। उसे जल्द ही कोई फ़ैसला लेना था।

एक साँस में शराब की बची हुई बोतल ख़त्म करने के बाद उसने उस पटरी की तरफ़ देखा जहाँ पाँच लोग बंधे थे। उन्हें देखते ही वो चौंक गया। उनमें से एक उसकी प्रेमिका थी। उसने फिर से वही दोहराया, "मुझ शादीशुदा औरत से प्यार करके तुम्हें क्या मिलेगा? किसी अच्छी लड़की को ढूँढो और उससे शादी कर लो। दो लोगों के मिलने से अगर सौ लोगों को तकलीफ़ पहुँचे तो ऐसे मिलने से न मिलना बेहतर।" और उसने फिर से वही सोचा, 'बलि हमेशा प्यार करने वाले की ही क्यों ली जाती है?'

उसने दूसरी वाली पटरी की तरफ़ देखा। वहाँ पर उसकी माँ बंधी थी। उसे यकीन नहीं हुआ। 'ये कैसे हो सकता है? माँ तो मर चुकी है।' पर उसका चौंकना अभी और बाकी था। माँ के पास ही उसके पिता जी बैठे थे जो माँ की रस्सियाँ खोलने का अथक प्रयास कर रहे थे। 'पर पिताजी ने तो ख़ुदकुशी कर ली थी?'

उसका सर चकरा गया। उसने फिर से दूसरी वाली पटरी की तरफ़ देखा। वहाँ उसका दोस्त खड़ा था। वो हमेशा की तरह चिल्लाया, "तेरी माँ तेरा हाल देखकर सदमे से मर गयी और तेरे पिता ने इस ग़म से फाँसी लगा ली कि तू एक शादीशुदा औरत से प्यार करता है। पर उसने क्या किया? एक बार तेरा हाल तक न पूछा? उसके घरवालों को तुम दोनों के बारे में पता क्या चल गया उसने डर के मारे तुझसे रिश्ता ही ख़त्म कर लिया?" उसने दोनों हाथ अपने कानों पर रख लिए पर फिर भी उसकी आवाज़ आती रही। "तू बेवक़ूफ़ है और वो ख़ुदगर्ज़। उसे मालूम था कि तुझ फटेहाल के साथ उसे बदनामी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। इसीलिए उसने अपने पति और बच्चों को चुना, तुझे नहीं। अभी तो तू सिर्फ़ पागल हुआ है अगर तू मर भी जाए तो उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा।"

ट्रॉली बिलकुल पास आ चुकी थी और समय बेहद कम था। उसने अपना हाथ लीवर पर रख दिया। इससे पहले कि वो लीवर खींचता उसने आख़िरी बार माँ की तरफ़ देखा। इस बार उधर सिर्फ़ उसकी माँ ही नहीं बल्कि कुछ और लोग भी बंधे थे जिनकी शक्ल हू-ब-हू उसके जैसी थी। उसने दूसरी पटरी की तरफ़ देखा। उधर अब पाँच नहीं बल्कि पूरा ज़माना बंधा था। उसमें हर वो शख्स शामिल था जिसके कारण वो आज अकेला था चाहे वो उसकी प्रेमिका के घरवाले हों या उसके यार-रिश्तेदार।

समय लगभग ख़त्म हो चुका था। उसने अपना हाथ लीवर से हटा लिया और ट्रॉली उस तरफ़ बढ़ गयी जिधर पाँच लोग बंधे थे।

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

आगाज के लिए हार्दिक बधाई,  आ. महेंद्र कुमार जी ,दूसरों के लिए सदैव अपनी बलि तो नही दी जा सकती।सादर

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया अर्चना जी. हार्दिक आभार. सादर.

आदाब। ओपनबुक्सऑनलाइनडॉटकॉम पर लाइव लघुकथा गोष्ठी के दो दिवसीय स्वर्ण जयंती आयोजन में आपकी इस पहली बेहतरीन लघुकथाग्राफ़ी के साथ आपका हार्दिक स्वागत अभिनंदन जनाब महेंद्र कुमार साहिब। ग़ज़ब की प्रवाहमय तुलनात्मक बिम्बात्मक परिकल्पनायुक्त यथार्थपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई। जीवन का कड़वा सत्य बाख़ूबी शाब्दिक किया है। अंततः आज यही अंतिम निर्णय लेने होते हैं। सादर।

सादर आदाब आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और आत्मिक टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

// समय लगभग ख़त्म हो चुका था। उसने अपना हाथ लीवर से हटा लिया और ट्रॉली उस तरफ़ बढ़ गयी जिधर पाँच लोग बंधे थे। // 

बेहतरीन आदरणीय महेंद्र कुमार जी, मुझे नहीं लगता इससे बेहतर इस रचना को कोई अंत होता.... कल्पना की ऊँची उड़ान में वाकई आपका जवाब नहीं. आयोजन की पहली सुंदर और लाजवाब रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें भाई जी.  वैसे चलते-चलते मैं ये बता दूँ भाई जी कि रचना के शीर्षक से मैं संतुष्ट नहीं हूँ. न जाने क्यूँ मुझे लगता है कि इसका शीर्षक कुछ जिन्दगी के सवालों से जिन्दगी की कशमकश के बीच कहीं होता. सादर भाई जी.

कथा के अन्त को लेकर मैं थोड़ा संशय में था पर आपने मेरा डर दूर कर दिया. आपकी इस सार्थक टिप्पणी का हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत शुक्रिया.

//रचना के शीर्षक से मैं संतुष्ट नहीं हूँ. न जाने क्यूँ मुझे लगता है कि इसका शीर्षक कुछ जिन्दगी के सवालों से जिन्दगी की कशमकश के बीच कहीं होता.//

दरअसल "ट्रॉली की समस्या" (Trolley Problem) नीतिशास्त्र से सम्बन्धित एक 'थॉट एक्सपेरिमेंट' है और ये इसी नाम से प्रचलित है. यही कारण है कि मैंने इसे यथावत रहने दिया ताकि जो पाठक इससे परिचित नहीं है वो इसे सन्दर्भ के रूप में ग्रहण कर सकें. पर आप यदि सन्तुष्ट नहीं हैं तो मैं अवश्य ही इस पर विचार करूँगा. सादर.

शुक्रिया आपने मेरी टिप्पणी को मान दिया। 'ट्रॉली की समस्या' थ्योरी का जानकर अच्छा लगा।  इसके संदर्भ में ये शीर्षक उचित ही कहा जायेगा। हाँ शायद इसे न जानने वाले इसे रचना के साथ सही से नहीं जोड़ पाएंगे,  जैसे शायद मैं।  सादर भाई जी। 

थ्योरी का न जानते हुए भी आप रचना के मर्म तक पहुँच पाए यह आपका पाठकीय कौशल ही है. रचना पर आपकी टिप्पणी हमेशा ही हम लोगों का मार्गदर्शन करती है. आपके अमूल्य विचारों की हमेशा प्रतीक्षा रहती है. रचना पर आपके आगमन के लिए पुनः आभार. सादर.

जिंदगी की अजीब कश्मकश को दर्शाती कथा के लिये बधाई आद० महेन्द्र कुमार जी ।

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता जी. इस लघुकथा को लिखते वक़्त मुझे वाकई कश्मकश से गुज़रना पड़ा था. आपका हार्दिक आभार. सादर.

सिद्धांतों की परीक्षा परिस्थितियों को स्वयं जीकर ही होती है जीवन का सीधा  गणित ये ही है।   बढ़िया कथा। शुरू से अंत तक दिलचस्पी बानी रहती है।  हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र जी। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service