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चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-५ का लेखा जोखा (सम्पादकीय रपट)

आदरणीय साथियो,
सादर वन्दे !

ओबीओ के मंच से चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-५ का आयोजन दिनांक १८ अगस्त २०११ से २० अगस्त २०११ तक किया गया, जिसका संचालन पिछली प्रतियोगिताओं की तरह इस बार भी युवा साहित्यकार श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी ने किया ! इस बार रचनाधर्मियों को सरहद पर तैनात वीर सैनिकों को राखी बाँधती बहनों का एक चित्र देकर उस पर  कलम-आजमाई करने का निमंत्रण दिया गया था ! इस बार पूरे तीन दिन साहित्यकारों और साहित्य प्रेमियों ने जिस हर्षोल्लास से इस आयोजन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, उसने ओबीओ पर आयोजित होने वाले अन्य आयोजनों की ही भांति यहाँ भी रौनक लगाए रखी !  ३ दिनों में ८२० प्रविष्टियाँ पाना इस आयोजन की सफलता की कहानी खुद ब्यान कर रहा है ! 

 

इस बार के आयोजन में गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु ३ दिन में केवल ३.पोस्ट की सीमा तय कर दी गई थी ! प्रतियोगिता  का शुभारम्भ गीतकार श्री सतीश मापतपुरी जी के एक खूबसूरत गीत से हुआ ! फिर उसके बाद तो गीत, नवगीत, अतुकांत कविता, तुकांत कविता, कुंडली, घनाक्षरी, हाइकु तथा "एकादशी"  का जो सिलसिला शुरू हुआ वह पूरे तीन दिनों तक पूरे जोश-ओ-खरोश के साथ चलता रहा ! दिए गए चित्र  के हर पहलू पर रचनाकरों ने आपने फन के जौहर दिखाए ! वीर सैनिकों को राखी बाँध रही अंजान बहनों के इस दृश्य पर सभी रचनाकारों ने आपने आपने ढंग से कहने की कोशिश की ! जहाँ राखी और भाई बहन के पारम्परिक स्नेह की बात हुई, वहीं इसके मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर भी बात हुई !  
 
इस प्रतियोगिता में "प्रतियोगिता हेतु" ओर" प्रतियोगिता से अलग" श्रेणियों में जो रचनाकार/रचनाएँ सम्मिलित हुईं  उनका लेखा-जोखा कुछ इस प्रकार है : 
  
१. श्री सतीश मापतपुरी जी (१ रचना) 
२.. श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी ( रचनाएँ)
३. श्री रवि कुमार गुरु जी, (२ रचनाएँ) 
४..श्री संजय मिश्र हबीब जी (२ रचनाएँ)
५.. श्री अतेन्द्र कुमार रवि जी  (२ रचनाएँ)
६. श्री इमरान खान जी  (२ रचनाएँ)
७.. श्री लाल बिहारी लाल जी (१ रचना)

८. श्री आशुतोष पांडे जी (२ रचनाएँ)

९.
श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी (२ रचनाएँ)
१०. श्रीमती वंदना गुप्ता जी (१ रचना)
११. श्री बृज भूषण चौबे जी (१ रचना)
१२. श्री आलोक सीतापुरी जी (२ रचनाएँ)
१३. श्री धर्मेन्द्र शर्मा जी  (१ रचना)
१४. श्री मुईन शम्सी जी (१ रचना)
१५. श्री दुष्यंत सेवक जी  (१ रचना)
 
 
१५  लेखकों की लगभग २ दर्जन स्तरीय रचनाये, और कुल मिला कर ८२०  एंट्रीज़ - यानि प्रत्येक रचना को औसतन ३४ से भी ज्यादा टिप्पणियाँ इस आयोजन में प्राप्त हुईं जोकि बहुत वन्दनीय है ! मुझे इस बात का सब से ज्यादा संतोष है कि इस बार रचनाओं पर दिल खोल कर टिप्पणियाँ दी गईं !  इस दिशा में सर्वश्री धर्मेन्द्र शर्मा जी, श्री आशीष यादव जी, श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी, श्री सतीश मापतपुरी जी, श्री प्रीतम तिवारी जी, धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, गणेश बागी जी, संजय मिश्र हबीब जी, प्रीतम तिवारी जी, आशुतोष पाण्डेय जी, श्रीमती वंदना गुप्ता जी, श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी, एवं इन सब से ऊपर आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी का योगदान अतुल्य रहा ! जिस प्रकार एक मिशन समझ कर इन्होने मेहनत की है मैं उनको सादर नमन करता हूँ !  जहाँ श्री संजय मिश्र हबीब जी और श्री आशुतोष पाण्डेय जी का पूरी तन्मयता से ओबीओ के साथ जुड़ना भी इस आयोजन की एक उपलब्धि रही वहीँ हमारे एक पुराने साथी श्री दुष्यंत सेवक का पुन: नमूदार होकर सक्रिय होना भी बायस-ए-मसर्रत रहा !    


हर बार की तरह इस बार भी कोरी वाह-वाही से ऊपर उठ कर बात हुई ! जहाँ अधिकाँश रचनाओं की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई वहीँ कमजोर रचनाओं और भाषा-व्याकरण की त्रुटियों को लेकर भी खुल कर बात हुई ! अक्सर रचनाकार आलोचना से विचलित होते देखे गए हैं, लेकिन इसे ओबीओ की सकारात्मक ऊर्जा और मंच का तिलिस्म ही कहेंगे कि जिन रचनाओं की कमियों को इंगित किया गया उनके रचनाकारों ने आलोचना को खुले माथे स्वीकार किया ! मेरे मतानुसार यह एक बहुत ही सकारात्मक लक्षण है जोकि ओबीओ के "सीखने और सिखाने" के उद्देश्य की बखूबी तर्जुमानी कर रहा है !

कुल मिला कर यह आयोजन आशा से कहीं बढ़कर बेहद सफल रहा ! सभी रचनाओं पर लगभग हरेक साहित्य रसिक ने ने अपनी बहुमूल्य टिप्पणी देकर लेखकों का हौसला बढाया !  ओबीओ के कुछ वरिष्ठ सदस्यों की अनुपस्थिति हालाँकि अंत तक सभी को खलती रही ! बहरहाल, मैं इस आयोजन में सम्मिलित सभी रचनाधर्मियों का हृदय से धन्यवाद करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि  आप सब का सहयोग एवं स्नेह हमें यथावत प्राप्त होता रहेगा ! मैं अंत में इस प्रतियोगिता के संचालक श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी एवं ओबीओ के संस्थापक श्री गणेश बागी जी को इस सफल आयोजन पर बधाई देता हूँ !  जय ओबीओ ! सादर !


योगराज प्रभाकर

(प्रधान सम्पादक)

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वाकई अगर किसी विद्यार्थी को रपट लिखनी न आती हो तो वो योगराज जी की रपट पढ़कर सीख सकता है कि रपट कैसे लिखी जाती है। इतनी जल्दी इतनी सुंदर रपट के लिए प्रधान संपादक जी को कोटिशः साधुवाद।

धर्मेन्द्र जी, इस रपट में हम सभी रपटते हुये दिख रहे हैं...यानि जिक्र है हम सबका इस रपट में :) जिसके लिये योगराज जी को कोटि-कोटि नमन.

आपको भी कोटिश: नमन शन्नो जी - सॉरी "आदरणीया" शन्नो जी !

आपकी ज़र्रानवाज़ी का तह-ए-दिल से शुक्रिया धर्मेन्द्र भाई !

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