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क्या मीडिया की नकारात्मक सोच व्यापारिक आवश्कता है?

हमारा मीडिया, पिछले कुछ दिनों को छोड़कर, नकारात्मक भूमिका में ही दिखता रहा है. समाज में बहुत कुछ अच्छा भी हो रहा है पर उसके लिए पांच मिनट भी नहीं देते या पांच पंक्तियाँ भी नहीं लिखते ये लोग. वहीँ सनसनीखेज वारदातों के लिए बाकायदा प्रोग्राम दिखाते हैं. क्या यह इनकी व्यापारिक बाध्यता है? कामनवेल्थ की तैयारियों में इन्हें टूटी छत दिखी, गंदे बाथ रूम दिखे पर ये भव्यता नहीं दिखी जो चित्रों में दिख रही है.
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आदरणीय शेषधर तिवारी जी, सबसे पहले तो मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ जो यह मुद्दा ओपन बुक्स ऑनलाइन के ओपन मंच से आपने उठाया है,
कहा जाता है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है, पर यदि सत्य पूछा जाय तो राष्ट्र मंडल खेलो को लेकर मीडिया कि भूमिका बहुत ही नकरात्मक रही है, जिस तरह से तैयारी कि खामियों को लेकर हो हल्ला मीडिया वालों ने उठाया था, विदेशी मेहमानों का डर जाना स्वाभाविक था, कुछ दिनों पहले एक न्यूज़ चैनल पर स्टेडियम के बाहर फेका गया कूड़ा करकट और उसके पास घुमते कुत्ते को जिस अंदाज मे दिखाया जा रहा था जैसे बहुत ही सनसनी खेज कोई मुद्दा हो, जबकि निर्माण के बाद कूड़ा, साफ़ सफाई एक प्रक्रिया है जो अंत मे सम्पादित किया जाता है, आज खेल गाँव की तारीफ़ विदेशी मेहमान भी कर रहे है |
ऐसा नहीं है कि मीडिया की नकरात्मक सोच व्यावसायिक आवश्यकता है पर सबसे तेज कहलाने के चक्कर मे मीडिया वाले अपने कर्त्तव्य को भूलते जा रहे हैं |
राष्ट्र मंडल खेलों का रंग रंग और भव्य उदघाटन नकारात्मक सोच वालों के मुंह पर करारा तमाचा हैं |
तिवारी जी वाकई में यह नहीं होना चाहिए मीडिया में ,की हर चीजो को साफ़-साफ़ रखे.कहा जाता है की मीडिया देश की सबसे बड़ी सरकार है और स्वतंत्र भी ,लेकिन इस स्वतंत्रता का गलत फायदा नही उठाना चाहिए मीडिया को मैं यह भी मानता हु.लेकिन क्या आप मुझे यह बताएँगे की अगर मीडिया राष्ट्रमंडल khel की आँखों की किरकिरी नहीं बनी होती तो आजतक जितने भी घोटाले ,गड़बडिया,और सड़क धसने की जो घटनाये अब तक उजागर हुई है वो हमारे और आपके सामने आई होती .रही बात गंदे बाथरूम दिखाने की तो मेरे समझ से वो भी ठीक है ,क्योकि वो गन्दा बाथरूम अगर मीडिया के द्वारा नहीं दिखाया जाता तो सायद अबतक वो गन्दा ही रहता ,और यदि वो साफ़ हुआ तो हमें मीडिया को धन्यवाद् देना चाहिए ,क्योकि उसका सारा श्रेय उस टी.बी चैनल वालो को ही जाती है.आप और हम अपने देश के स्य्स्यतेम से भली भाती परिचित है .मान्यवर , जैसे जैसे रह्स्त्रमंडल खेल का तारीख नज़दीक आते गया वैसे वैसे एक से एक खामिया पैदा होती गयी.कभी इस इलाका का सड़क धस गया तो कभी उस इलाका का सड़क धस गया ,लेकिन इसके बावजूद भी हमारी केंद्र सरकार अनभिज्ञ रही और दिल्ली सरकार तो पहले से ही दूर रही है .जब बात भारत के प्रतिष्ठा को खरोच लगने तक पहुच गयी तब आनन् फानन में माननीय प्रधानमंत्री ने दिलचस्पी लिया ,तो क्या इसमें मीडिया की भूमिका अहम् और सराहनीय नहीं है ?ऐसी बात नहीं है की भारत सरकार को एक या २ महीने पहले इस बात का पता लगा हो की भारत में राष्ट्रमंडल खेल आयोजित होने वाला है जिसकी वजह से अभी तक तैयारिया पूरी नहीं हुई.
अगर इस पुरे मसले को देखा जाये तो परिणाम यही निकलता है की अगर मीडिया रस्ज्त्रमंडल खेल के आँखों की किरकिरी नहीं बनी होती तो सायद ही इतनी तैयारीया पूरी होई होती .हम सब जानते है की इस खेल में कितने घोटाले हुए है ,लेकिन इन सब के बावजूद .........मीडिया मनो जैसे डंडे लेकर घोटालेबाजों के पीछे कड़ी हो और कह रही है की "ये पूरा नहीं हुआ ,ये बाकि है पूरा करो" क्योकि मसला हमारे देश के छवि का है .



रत्नेश रमण पाठक

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