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क्या है उचित, प्रेम-विवाह या व्यवस्था-विवाह ?

आज हमारे आस-पास और समाज में यह बहुत ही गंभीर समस्या बनी हुई है और समय के परिवर्तन के साथ साथ यह समस्या और ही विकराल रूप धारण करते जा रही है.जिसका समुचित उदहारण "ऑनर किलिंग" है.
इस सवाल को इस मंच पर प्रस्तुत करने के पीछे मेरा एक ही उद्येश्य है,की इस सवाल का सही जवाब मिले.और मुझे उम्मीद भी है की ऐसा होगा क्योकि इस मंच पर ९० प्रतिशत सदस्य ऐसे है,जो काफी अनुभवी और समाज के हर तबके के लोगो के समस्या से वाकिफ है.और सबसे बड़ी बात यह है जिस उम्र के नवयुवको के लिए यह सवाल उलझा हुआ है,उस उम्र को भालीभाती यहाँ के लगभग सभी सदस्य पार कर चुके हैं.और इस मंच के सभी सदस्य अपने आप में एक मिसाल है ,इसलिए आप सबो से बेहतर जवाब और कोई नहीं दे सकता .
इसलिए इस मंच के सभी गणमान्य सदस्यों से मेरा हार्दिक अनुरोध है की.........की कृपया इस सवाल का जवाब अपने अनुरूप जरुर दे .अपने टिपण्णी से हमें अवगत कराये !




आपका छोटा भाई :-रत्नेश रमण पाठक

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love marriage is a combination of two hearts but arrange marriage is a combination of many hearts thats all thank you
भाई हिलाल अहमद हिलाल जी आपने अपनी प्रतिक्रिया दी उसके लिए धन्यवाद्.
आपने कहा प्रेम विवाह दो दिलो का मेल है जबकि व्यवस्था विवाह बहुत से दिलो का मेल होता है.जैसा की हम जानते है की शादी कोई दो-चार दिनों का बंधन नहीं है,यह एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जो पुरे जिंदगी की तो दूर, पुरे सात जन्मो तक साथ रहता है .तो अगर हम चाहे की हमारा जीवनसाथी कुछ ऐसा मिले जिसके साथ हम पूरा जिन्दगी खुसी पूर्वक निर्वाह कर सके ....तो क्या यह गलत है ?या क्या यह सही है की हम थोड़े पैसो या कुछ लोगो के ख़ुशी के लिए अपनी जिन्दगी को तबाह कर दे?
thanks a lot hilal bhai for ur views on this disccussion.
प्रेम विवाह या व्यवस्थित विवाह में चुनाव एक कठिन प्रश्न है ...बिना प्रेम विवाह भयावह है अतः व्यवस्थित विवाह में प्रेम तलाश कर अपना सुखद भविष्य सुनिश्चित करना अच्छा विकल्प है....प्रेम विवाह प्रायः अव्यवस्थित होते हैं और उनका आधार प्रायः शारीरिक आकर्षण होता है ये जोश में तय होते हैं अतः होश आने पर ये अपनी अंतिम साँस ले लेते हैं ...अतः यदि किसी कारणवश यदि प्रेम विवाह आवश्यक भी हो तो भी इसे व्यवस्थित विवाह के अंतर्गत समाज की उपेक्षा न करते हुए करना चाहिए..ये स्थायी उपाय होगा सफल दाम्पत्य का ...
jee dhanyawad dr saheb aapke vichar ke liye .......
रत्नेश जी ,मुद्दा गंभीर है ,सदस्यों से आग्रह है कि विचार भी इसके दृष्टिगत ही रखें|कई प्रश्न देश काल और स्थिति पर निर्भर होते हैं अतः कोई एक पक्ष उत्तर नहीं हो सकता |व्यक्ति को घर परिवार समाज को सामने रखकर निर्णय लेना चाहिए |हम समाज के अंग हैं और हमारा निर्णय हमारे पूर्वजों और आने वाली पीढ़ियों पर प्रभाव डालता है |सामाजिक व्यवस्थाएं सदियों से चली आ रही है और उनके होते कोई बड़ा विघटन नहीं हुआ अन्यथा अब के दौर में तो सुबह प्रेम विवाह और शाम तक मनमुटाव हो जाता है |विवाह समझ के स्तर पर बना सम्बन्ध है अहम को अलग रखकर निर्वाह करना होता है |और हर बालिग़ अपना भला बुरा समझ सकता है |
प्रेम विवाह दो दिलो को जोरता हैं मगर दो परिवार को तोरता हैं , जबकि सामाजिक विवाह दो दिलो को जोरने के साथ साथ दो परिवार को भी जोरता हैं , मगर अब ये सोचने का विषय हैं अब बच्चो को भी सोच को ध्यान देना होगा ,
अगर प्रेम विवाह से किसी अन्य को कष्ट नहीं है तब तो ये ठीक है| अगर माता-पिता इसके पक्ष में नहीं तो फिर किस बात का प्रेम विवाह? प्रेम विवाह मै तो उसी को कहूँगा जिसमे हमें सबका प्रेम मिले| अगर किसी एक का प्रेम मिले और सब हमसे नफरत करने लगे तो ये प्रेम विवाह सही नहीं| जहाँ तक हो सके प्रेम विवाह को व्यवस्थित तरीके से संपन्न किया जाय तो उचित है| आदि अनादि काल से लोग प्रेम विवाह कर रहे है| यह बुरा नहीं मानता मै, परन्तु उपरोक्त बातों का भी ध्यान रहे|

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"अगले आयोजन के लिए भी इसी छंद को सोचा गया है।  शुभातिशुभ"
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"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
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"आदरणीया प्रतिभाजी, आपकी संशोधित रचना भी तुकांतता के लिहाज से आपका ध्यानाकर्षण चाहता है, जिसे लेकर…"
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