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ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार का एक वर्ष का सफ़र : कैसा रहा आपका अनुभव..

साथियों !

सबसे पहले मैं आप सभी को बहुत बहुत बधाई देना चाहता हूँ आपका अपना OBO परिवार एक वर्ष का सफ़र सफलता पूर्वक तय कर लिया है, इस परिवार के साथ आपका अनुभव कैसा रहा यह आप यहाँ लिख सकते है ताकि हमें भी जानकारी प्राप्त हो सके कि क्या चाहते है हमारे प्रिय सदस्य |

इस वर्ष हेतु योजना तैयार करने में आपके अनुभव और टिप्पणी सहायक सिद्ध हो सकते है, OBO प्रबंधन समूह सदैव आपके विचारों का स्वागत करता रहा है और आगे भी करता रहेगा |

 

आपका अपना ही

एडमिन

ओपन बुक्स ऑनलाइन

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सर, ओ बी ओ की प्रथम वर्षगाँठ पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ, मेरे पास तारीफ़ के शब्द भी नही हैं  जिससे अपने ज़ज़्बात पेश कर सकूँ, मुझे 22 अक्टूबर.2010 को ओ बी ओ  की सदस्यता मिली, मेरी पुस्तक कतरों का समंदर हिन्दी-ग़ज़ल को मुफ़्त प्रथम विज्ञापित कर साहित्य मंच प्रदान करने के लिए मैं  आजीवन आभारी हूँ और रहूँगा, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार में मुझे जो प्यार और दुलार मिला, ऐसा मेरी ज़िंदगी में कहीं नहीं मिला, OBO की जय |
पुनिया साहिब, आपका प्यार और समर्पण जिस तरह OBO को प्राप्त हो रहा है हमलोग उत्साहित है | धन्यवाद आपका |
कुछ करने की भावना मन में था और उस समय कुछ कर गुजरने की चाहत थी गणेश जी प्रीतम बिजय भाई हम सब मिल कर आगे बढे और आज वाह क्या बात हैं एक साल कमाल हो गया , योगराज भैया साहित्य संभाले और चार चाँद लग गया ,
गुरु जी आज OBO जो कुछ भी है उसमे आपका भी बहुत योगदान है |
OBO ki is pehli varshgaanth par bahot badhaaiyaan, ummeed hai ke aap isi tarah ke aayojan bhavishya men bhi karte rahenge
आदरणीया मुमताज़ जी , यदि सदस्यों का भरपुर सहयोग मिलता रहा तो भविष्य में बहुत सारे आयोजन होते रहेंगे |अभी OBO पर नया आयोजन "चित्र से काव्य तक" चल रहा है |

प्रथम वर्षगाँठ पर मेरी अनेकानेक शुभकामनाएँ.

मुझे गर्व है कि नेट पर उपलब्ध इस अद्वितीय पत्रिका से जुड़ा हूँ, जो पाठकों के लिये मात्र मानसिक रंजन के सामान उपलब्ध नहीं कराती बल्कि पाठकों के मानसिक परिष्कार हेतु सतत प्रयत्नशील है. साहित्यिक पत्रिकाओं के जीवन में व्यतीत एक वर्ष बहुत नहीं होता किन्तु उसके प्रवाह की शैली उसके उज्ज्वल भविष्य के प्रति आश्वस्त करती है. 

एडमिन और सम्पादकीय विभाग के सभी सदस्यों का योगराजभाई के नेतृत्त्व में दायित्त्व-निर्वहन समस्त रचनाकारों और पाठकों के विश्वास को निरंतर बहुगुणित करे इसी शुभकामनाओं के साथ मेरा सादर प्रणाम.

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
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