For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" डायमण्ड जुबली अंक

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
 
पिछले 74 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-75 (डायमण्ड जुबली अंक)

विषय - "किसान"

आयोजन की अवधि- 13 जनवरी 2017, दिन शुक्रवार से 14 जनवरी 2017दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल

नज़्म

हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, उचित यही होगा कि एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं में रचनाएँ प्रस्तुत हों.    

  • रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  • रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  • सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.


आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 13 जनवरी 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर 
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 15504

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,दोहों की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

कभी काटता है फसल, कभी त्यागता जान |

कोई नहीं किसान की , हालत से अनजान ||

आदरणीय  समर कबीर साहब सादर नमस्कार, सुंदर दोहे रचे हैं आपने. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. अंतिम दो दोहे शानदार हुए हैं. पहला दोहा मुझे कुछ कमजोर लगा.  "होती रहे किसान को, कदम-कदम जब मात" // इस पद के विषम चरण को दो तरह से लिख सकते हैं, "मिलती रहे किसान को" या "होती रहे किसान की". सादर.

जनाब अशोक रक्ताले साहिब आदाब,दोहों की सराहना और उनपर अपना मत साझा करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
पहला दोहा आपको शायद "दहक़ान"शब्द की वजह से कमज़ोर लगा है,'दहक़ान'का अर्थ भी किसान ही होता है,या इसमें क्या कमी आप महसूस कर रहे हैं मुझसे ज़रूर साझा करें ताकि में इस कमज़ोरी को दूर कर सकूं ।
'होती रहे किसान को,क़दम क़दम जा मात'इस पंक्ति में मुझे तो ऐसी कोई कमी नहीं लगती कि विषम चरण को बदलने की सोचूँ, आप ऐसा क्यों कहा रहे हैं ? कृपा कर खुल कर कहें,मुझे खुशी होगी,और मुझे इसका दोष पता चल जायेगा ?

जी !  पहले दोहे में "दहक़ान" शब्द नहीं 'इक-इक' थोड़ा खटक रहा है. कुछ दोहाकार तो दोहे में 'इक' शब्द का प्रयोग ही उचित नहीं मानते. 'मात' स्त्री. शब्द है और इसका अर्थ है 'हार' इसलिए" जब  किसान "की" मात/हार होती रहे"  कहना ही उपयुक्त लगता है. इसीलिए यह सुझाव दिया है. सादर.

आपके मार्गदर्शन के लिये दिल से धन्यवाद ।
पहले दोहे में 'इक इक'शब्द पर आपका ऐतिराज़ है, जो आपके नज़दीक सही भी है, आप और मंच के सभी सदस्य इस बात से वाक़िफ़ हैं कि मैं अपनी गलती फ़ौरन मान लेता हूँ,लेकिन ग़लती हो तब,अन्यथा नहीं ।
दोहे उर्दू भाषा में भी रचे जाते हैं और हिन्दी में भी,हालाँकि ये विधा संस्कृत भाषा की है । हम यहाँ अरूज़ की बात नहीं करेंगे,हम बात करेंगे शब्दों के प्रयोग पर,जब दोहा उर्दू में लिखा जाता है तो उर्दू भाषा के उन तमाम शब्दों का इस्तेमाल उसमें यक़ीनन किया जायेगा,और किया जाता है,यही सब हिन्दी भाषा में भी होता है,और एक ये कि दोनों भी भाषाओँ के ताल मेल के साथ दोहा लिखा जाये,मेरे दोनों क़ाबिल-ए-ऐतिराज़ दोहों के साथ भी यही मुआमला है,'इक इक'शब्द का इस्तेमाल धड़ल्ले से उर्दू शाइरी में होता है,मैं आपकी तरह शुद्ध हिन्दी भाषा में दोहे नहीं रच सकता,और जब नहीं रच सकता,तो आपको मेरी रचना पढ़ते समय ये याद रखेंगे तब यक़ीनन इन दोहों की भी तारीफ़ ज़रूर करेंगे ।
'होती रहे किसान को,क़दम क़दम जब मात'
इस पंक्ति में कहीं से भी उच्चारण,वर्तनी,व्याकरण,या स्त्रीलिंग,पुल्लिंग जैसा भी कोई मुआमला नहीं है,बस आप इसे समझना नहीं चाहते,और अगर मैं ऐसी ग़लती करता हूँ तो यक़ीनन में अभी फिर से पहली कक्षा का ही विद्यार्थी हुआ न ?
उम्मीद है बात पूरी तरह स्पष्ट हो गई होगी ।मेरी रचना पर जितने भी सदस्य शामिल हैं,मैं उनसे भी निवेदन करूँगा कि वह भी मेरी ये प्रतिक्रया अवश्य पढ़ें,धन्यवाद ।।

//हालाँकि ये विधा संस्कृत भाषा की है //

जी नहीं, आदरणीय समर साहब, दोहा छन्द संस्कृत से निस्सृत या कोई वैदिक छंद नहीं है. यह अप्रभंश (अवहट्ट) भाषा की पैदाइश है. यह ज़रूर है कि दोहा का मूल अनुष्टुप जैसे वैदिक छन्द हैं.लेकिन यह बहुत दूर का संबंध है. इस विन्दु पर आपके माध्यम से कुछ तथ्य रखना चाहूँगा, ताकि मंच को तनिक लाभ हो.

वस्तुतः दोहा छन्द का वैधानिक स्वरूप बड़ा ही व्यापक तथा समावेशी रहा है. वैदिक छन्दों में अत्यंत प्रचलित अनुष्टुप छन्द से प्रभावित द्विपदियों में दोग्धकम्  ---दोग्धि चित्तमिति दोग्धकम्, अर्थात, श्रोता के चित्त का दोहन करने वाला—  ही वस्तुतः दोहक, दूहा, दोहरा, दोहऊ, दुवह से होता हुआ, आज के दोहा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ है. आगे विन्यास पर काम हुआ और दोहा छन्द के दोनों पदों (पंक्तियों) में प्रत्येक पद को दो चरणों और १३-११ की यति में निबद्ध करने की मान्यता स्थापित हुई. वर्ना दोहा के पहले की द्विपदियों में ऐसी कोई मान्यता या बाध्यता नहीं थी.  

इसीके साथ आगे छन्द की विशिष्ट लय (गेयता) सिद्ध हुई. गेयता के नियत हो जाने से दोहा को विधान के तौर पर विशिष्ट मर्यादा मिल गयी. अर्थात, भक्ति-रीति काल तक आते-आते इस छन्द को स्पष्ट तौर पर नियमों से बाँध दिया गया. इसी कारण प्रारम्भ में रचे गये लोक-दोहक के रूप में उपलब्ध अधिकांश दोहों में शैल्पिक सौष्ठव नहीं दिखता, किन्तु, वैचारिक गुरुत्व एवं भावनात्मक गाम्भीर्य से ये लोक-दोहक सम्यक समृद्ध दिखते हैं. ये लोक-दोहक दोहा के ही पूर्व रूप की तरह माने जाने चाहिए. आगे, कथ्य से निस्सृत होता गांभीर्य ही दोहा छन्द की गरिमा तथा प्रसिद्धि का कारण बना.

आगे छन्दकारों ने दोहा के स्थापित हो चुके विधानों का अक्षरशः अनुसरण किया. प्राकृत में गाथा या उर्दू में शेर की तरह अप्रभंश के बाद हिन्दी भाषा में दोहा अत्यंत सहज छन्द के रूप में प्रचलित हुआ. दोहा की व्यापकता और प्रसिद्धि को इसी तथ्य से समझा सकता है, कि प्राकृत पाली से होते हुए अप्रभ्रंश और बाद में हिन्दी भाषा में दोहा छन्द के नियमबद्ध वैधानिक स्वरूप का स्वागत सहजता से तो हुआ ही, इसीके समानान्तर इस छन्द को बहर-व्याकरण के आधार पर भी साधने का प्रयास चलता रहा. दोहा का यह प्रारूप गंगा-जमुनी संस्कृति को संतुष्ट करने के क्रम में उदार स्वीकृति पाता रहा है. अर्थात, दोहों की वैधानिक शास्त्रीयता के साथ-साथ दोहों पर सूफ़ियों के माध्यम से उर्दू काव्य की मान्यताओं का भी प्रभाव पड़ा है. 

सादर

मुझे एक साहिब ने बताया था कि यह संस्कृत की विधा है,आपने इस विषय पर इतनी महत्वपूर्ण जानकारियाँ मुझसे और मंच से साझा की,इसके लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

ससंदर्भ बातें की हैं मैंने आदरणीय समर साहब. अतः शक की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए.

वैसे कुछ ’विद्वान’ लोग हर बात में संस्कृत या फ़ारसी का नाम ले कर अपने कहे का वज़न बढ़ा देते हैं. आपका पाला आदरणीय ऐसे ही किसी विद्वान से पड़ गया होगा. 

हा हा हा हा.. 

मैं जानता हूँ हुज़ूर,आपकी बात को मैं पत्थर की लकीर समझता हूँ,इससे ज़ियादा क्या कहूँ ।

हय हय हय ! .. :-)))

जय हो... 

//'होती रहे किसान को,क़दम क़दम जब मात'
इस पंक्ति में कहीं से भी उच्चारण,वर्तनी,व्याकरण,या स्त्रीलिंग,पुल्लिंग जैसा भी कोई मुआमला नहीं है,बस आप इसे समझना नहीं चाहते,//.................आदरणीय समर कबीर साहब यदि आप ऐसा मानते हैं तो यह बात मन को दुखी करती है. क्योंकि आपने इस पंक्ति या पद के व्याकरण पर कोई सपष्टीकरण नहीं दिया है जिससे मैं इसे सही मान सकूँ.

//और अगर मैं ऐसी ग़लती करता हूँ तो यक़ीनन में अभी फिर से पहली कक्षा का ही विद्यार्थी हुआ न ?// .........आपके इस कथन से प्रतीत होता है आपको मेरे सुझाव से ठेस पहुंची है. मैं आपसे दिल से इस बात के लिए क्षमा चाहता हूँ. सादर.

ये तो एक चर्चा है ,इस में दिल को ठेस लगने जैसी कोई बात ही नहीं।

'होती रही किसान को,क़दम क़दम जब मात'

'होती रहे' यानी 'मात' का सिलसिला निरंतर जारी है,'होती रही' मे बात माज़ी की तरफ़ चली जाती है,कहते हैं न ,'राजेश ने रमेश को मात देदी'और 'मुझे मात होती रहे,आप यही चाहते हैं'और इसी प्रकार के कई जुमले हैं जो 'होती रहे'को सही साबित कर सकते हैं,क्या ये स्पष्टीकरण चल जायेगा मुहतरं या कुछ और मिसालें तलाश करूँ ?

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
3 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service