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दो गज़ ज़मीं भी ना मिली ............................

रंगों की दुनिया के जादूगर मकबूल फ़िदा हुसैन के निधन की खबर सुनकर लोग हतप्रभ रह गए. उनके जाने से कला -जगत बेनूर हो गया.यह कितनी बड़ी बिडम्बना है कि आधुनिक चित्रकला की विधा में पूरी दुनिया में भारत का परचम बुलंद करने वाला महान फ़नकार गैर मुल्क़ की ज़मीं में दफ़न हो गया.यहाँ अनायास बहादुरशाह ज़फर की पंक्तियाँ याद आ जाती है---- कितना है बदनसीब ज़फर दफ़न के लिए. दो गज़ ज़मीं भी ना मिली कूये यार में.
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वाह रे हमारी उदारता और वाह रे हमारी यादास्त, कितनी जल्द हम अपना अपमान भूल जाते है, हिन्दुओं बल्कि यह कहे कि भारतीयों के आस्था ( भारत में तो सभी धर्म के लोग एक दुसरे के धर्म में आस्था रखते है ) के प्रतिक माँ सरस्वती और माँ दुर्गा के नग्न पेंटिंग बनाने वाले एक कुंठित चित्रकार को महिमामंडित करने का दौर चल पड़ा है | जिसको देखो वही गुण गाये जा रहा है, मुझे समझ में नहीं आ रहा कि क्या मृत्यु महान बनने हेतु योग्यता है ? कल को कसाब भी मर जायेगा तो हम लोग उसको भी महान बना देंगे | 

जब न्यालय ने उनके ऊपर वारंट जारी किया तो, भारतीय न्याय व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुए पलायन हो गए, ऐसे भगोड़े को महान बनाने पर सभी लोग तुले हुए है |

कुछ फेस बुक पर भी इस तरह कि चर्चाये चल रही है जहाँ मैंने लिखा है और मेरे लिखने के बाद कथित महान बानाने वालों कि लेखनी को लगाम लग गया है |

 

१.

(पहले तो मेरी टिप्पणी को हटा दिया गया पर जब मैंने लिखा कि ...................किसी के अभिव्यक्ति को दबाने का कोई मतलब नहीं है , यदि आप चर्चा नहीं चाह रहे थे तो सार्वजानिक रूप से नहीं लिखना चाहिए था | मैं पुनः अपनी बात को रखना चाहता हूँ , यदि पुनः हटाया गया तो मैं अलग से एक चर्चा आपके पोस्ट का सन्दर्भ देते हुए अपने वाल से चलाऊंगा .....)

 

एक कुंठित कलाकार के निधन पर श्रन्धांजलि, यह जरूरी नहीं की मरने वाले की केवल तारीफ़ ही किया जाय, करोड़ो लोगो के आस्था की प्रतिक माँ सरस्वती और माँ दुर्गा की नंगी तश्वीर बनाने वाले कलाकार को इतना महिमामंडित भी करने की कोई जरूरत नहीं है, जो लोग यह समझते है कि नग्नता के चित्रण से कला स्खलित नहीं होती वो उस दुर्गा माँ और सरस्वती माँ के नग्न चित्र में अपनी माँ का केवल चेहरा देखे | एहसास हो जायेगा | यह वही महान कलाकार है जो भारत कि क़ानून को ठेंगा दिखा कोर्ट के आदेश को दुत्कारते हुए विदेश भाग गए थे | जरूरी नहीं कि सभी मरने वाले को महिमामंडित ही किया जाय |

 

२.

बंधुओं, जिस प्रकार विभिन्न रंग बिरंगी किसी पेंटिंग पर केवल एक काला रंग उड़ेल दिया जाय तो वह पेंटिंग बेकार हो जाती है, उसी प्रकार करोड़ों हिन्दुओं के आस्था के प्रतिक देवी देवताओं की नंगी पेंटिंग बना कर हुसैन साहिब अपने मुख पर खुद कालिख पोते थे, रही बात उन पेंटिंगो को देखने कि तो महाशय नेट पर सब उपलब्ध है एक बार गूगल बाबा से याचना कीजिये वो विवदास्पद पेंटिंग्स आपके सामने होंगी, किसी कि मृत्यु उसको महान बनाने कि योग्यता नहीं होती | हुसैन को कोई भागने पर मजबूर नहीं किया था बल्कि वो माननीय न्यालय के आदेश को ठेंगा दिखा कर और भारतीय न्याय व्यवस्था में अविश्वास दिखाते हुए भारत से पलायन किये, और भारत कि धरती कुछ और अपवित्र होने से बच गई, जिन बंधुओं को उन नंगी पेंटिंग्स में कोई बुराई नहीं दिखती वो अपना मेल आई डी मुझे उपलब्ध करावे, मैं उनको एक दो हुसैन साहिब कि पेंटिंग कि तश्वीर भेज दूंगा, और वो साहब अपनी माँ बहन बेटी का चेहरा माँ सरस्वती और दुर्गा की चेहरे की जगह लगा कर देख लेंगे, यदि खून नहीं खौला तो वो यह मान लेंगे की उनकी आत्मा और हिंदुत्व मर चूका है |
वाणी प्रकाशन के लोग सचमुच भाग्यशाली है जो उनको माता सरस्वती की इतनी अच्छी पेंटिंग (नंगी वाली नहीं) मिली |
(मेरे कमेंट्स के बाद कुछ लोग मेरे विचार से सहमत होते हुए खुल कर लिखना शुरू किया)

वाह गणेश जी वाह क्या लिखा है ..... बहुत ही अच्छा और क्रांतिकारी लेख है आपके विचारो से ना सिर्फ़ मैं सहमत हूँ बल्कि हिन्दुस्तान का हर जागरूक नागरिक होगा .... यक़ीनन किसी को भी ये हक नही है की वो हमारी आस्था विश्वास और संस्कारो पर व्यंग करे .... हम हिंदू भले ही कितने भी उदार हो पर अगर इस बात को भुला कर हम अपनी उदारता बघारने लगे तो लानत है हमारे हिंदुत्व पर और हमारे आत्मसम्मान पर
धन्यवाद, आदरणीय धीरज जी, आपने मेरी बातों का समर्थन किया |

'yun kisi ko.. shikast e zaar na mile,

waqt ki aisi kisi ko maar na mile,

is se badi to jism ki behurmati ho kya,

ke jism ko mere watan ki khaak na mile,

....alvida M.F. Hussain .. Ke tumne akhri aur tumhare

dushmano ne chain ki saans li.....alvida

इंसान की कृतियाँ ही दोस्त और दुश्मन पैदा करती है, एक तरफ मो. रफ़ी, नादिरा, सुरैया,शमशाद बेगम, मुनवर राणा,  शाहरुख़ खान, सलमान खान, आमिर खान, इरफ़ान पठान और भी बहुत सारे नाम है जो अपने अपने क्षेत्र के हुनरमंद है उनके तो दुश्मन कोई नहीं है, सोचने वाली बात है कि क्या कारण है कि हुसैन साहब ही दुश्मन बन बैठे और न्यालय का अपमान करते हुए विदेश भाग गए |

इंसान की कृतियाँ ही दोस्त और दुश्मन पैदा करती है, ekdam sahi kaha aapne ganesh bhai jee
bahut khoob imran bhai !

खुदा मकबूल साहब की रूह को जन्‍न्‍त अता करे।

पहली बार उन्‍हें पेंटिंग बनाते देखा, नज़र कहीं दूर अनन्‍त में और ब्रश कैनवास पर। जो उनके जे़ह्न में पेंटिंग बनाते समय चल रहा होता था अगर वही पेंटिंग देखने वालों के ज़ेह्न मे चलता होता तो शायद उनकी कुछ पेंटिंग्‍स विवादित नहीं होतीं और उन्‍हें दो ग़ज़ ज़मीन कू-ए-यार में ही नसीब होती।

unhe sirf ek kalakar ki haisiyet se na puakre.   woh ek insaan the jinhone apni bahut sari hade paar ki this aur doosron ko jeene ki nahi rahenbhi dikhee thi.   aur yeh jo shor machaye behthe the ki woh mumbai wapas na aaye, ab kyon unko do gaz zameen offer kar rahe hain.  tah ki doosri riot mein us zameen ko insult kar saken?  kab sikhen ge hum jeena, insaan ke tarah?  sirf hndu mussalman ki tarah nahi?
डेनमार्क से कुछ पेंटिंग्स फिजां में तैरी और सगरे विद्वत-जगत में बलवा और जाने क्या-क्या हो गया.
.
सारी उदारता और बड़ी-बड़ी बातें दूसरों के कन्धों पर चढ़ कर चूल हिला-हिला कर ही होती है. ऐसा कुछ भाइयों ने सीखा है. यही तथाकथित बड़प्पन है. और, नसीहत तो वो की खुदा भी इल्म सीखे अपनी गुजारिशों से पहले.  
.

गणेश भाईजी, उस साइट पर मैं भी गया था. कुछ बातें कीं. कुछ कहा. कुछ ही देर में मेरे सारे पोस्ट डिलीट हो गए. 

तो ये है तथाकथित उदारवादियों की उन्नत डेमोक्रेसी. लानत है उस संस्कार को जो एक समुदाय-विशेष की भावनाओं से खिलवाड़ करता है. अपना भारत और अपने देशवासी वैसे  ही होते जैसा कुछ महान, बुद्धिमान लोग बताते-समझाते नहीं थकते, तो हम भारतवासी इन संस्कारियों को अपने बीच देख भी पाते क्या..? बाद-बाकी कुछ कहना इस पेज के इतर हैं. आपके पोस्ट के लिए शुक्रिया. भारत के बेटों ने वैसे प्राचीन कालों से कइयों को झेला है.. आज के ये कुछ संस्कारी और सही.

भाई एकबात और, इन तथाकथित संस्कारियों के लिए अमीर खुसरो, रसखान, रहीम से लेकर मो. हमीद, अब्दुल कलाम जैसों की याद इसी शिद्दत से क्यों नहीं आती, जिस शिद्दत से मकबूल भाई याद आते हैं? क्योंकि, इन बेटों ने मादरे-वतन की बात उसी लहजे में की है जिस लहजे में इस ज़मीन की आत्मा सांसें लेती है..!!?? या तो, औरंगजेब भाई याद आते हैं? या, तिमुर-गज़नी-नादिर भाइयों की घिनौनी कारगुजारियाँ याद आती हैं? .. 

.

जरुर कहीं है गड़-बड़, समझे?

ऊपर  ना    जो   भीतर, समझे??   ....

सौरभ भईया, वाणी प्रकाशन के पोस्ट पर आपने भी कमेन्ट किया था और मैंने भी, जब वो लोग अपने को घिरता हुआ पाए तो वो एक एक कर आपकी हमारी और कई और साथियों की टिप्पणियों को हटा दिया है | ये दकियानूसी विचार धारा के लोग है जो किसी भी मुद्दे पर यापक चर्चा होने ही नहीं देते |

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