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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-54 (विषय: स्त्री)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-54 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-54
विषय: स्त्री
अवधि : 29-09-2019  से 30-9-2019 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं। 
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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आदाब। विषयांतर्गत नारी पीड़ाओं और नारी-संवेदनशीलता को उभारती विसंगती। हार्दिक बधाई आदरणीया बबीता गुप्ता जी। टंकण के बाद सम्पादन नहीं किया गया है।

एक प्रयास सादर अवलोकनार्थ :


'स्त्री : साहस का प्रतीक'


अपनी अफ़सरी की आड़ में विवेक अपनी विनम्र व सहनशील पत्नी सुलक्षणा पर अत्याचार कर खरीखोटी सुनाता था। दोष सिर्फ इतना कि वह कम पढ़ी-लिखी थी।

विवेक की माँ, बेटे के खिलाफ कुछ बोलती, तो उल्टा चढ़ बैठता, क्योंकि वह अपने कुसंस्कारित पिता को ही देख बड़ा हुआ था।


लेकिन आज वो हद की सब सीमाएं लांघ गया था। आज तो उसने उसके चरित्र पर ही लांछन लगा दिया। उसकी कुत्सित मानसिकता पर माँँ अपने बेटे पर, हाथ में जो आया, उससे प्रहार कर दुर्गा सी दहाड़ने लगी। चुप्पी,जो उसकी शालीनता और गरिमामय व्यक्तित्व की झूठी शान थी क्योंंकि बहू के प्रति कुकृत्य को देख उसका मन भी तो चीत्कार करता था, उसकी सांसेंं घुटती थींं। पर आज पीड़ित बहू को न्याय दिलाने के प्रति उसकी आत्मा उद्वेलित हो उठी और अपने पति और बेटे को धकेलते हुये बहू का हाथ पकड़ पुलिस थाने की और चल पड़ी। अपने आप से कहे जा रही थी,"हम महिलाएं सहती ही नही हैं, बल्कि सोचती भी हैं!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी।बेहतरीन लघुकथा।

सुन्दर कथा  हार्दिक बधाई आदरणीय बबीता जी

तुलना

******

"तुम्हारे इकतारे में से आती श्याम धुन, और कंठ की मधुरता बता रही है कि तुम अवश्य ही मीरा हो।"

"और तुम्हारे नैनों में बसी बाल कृष्ण की छवि को देखकर कोई सहज ही बता सकता है कि तुम राधा हो।"

"तुम धन्य हो मीरा जो तुमने कृष्ण के दिव्य स्वरूप के बारे में जाना, तुमने उनको भगवान के रूप में प्राप्त किया। जबकि मैं उनके भोले बाल किशोर रूप तक ही सीमित रह गई। पता नहीं लोग मीरा-कृष्ण क्यों नहीं बोलते। सब राधे कृष्ण ही क्यों बोलते हैं।"

"क्योंकि तुम्हारा प्रेम निश्छल था, तुम कान्हा संग मथुरा जा सकते थी ना। क्यों नहीं गई?"


"कैसे चली जाती मीरा। जिस पिता और परिवार ने इतना प्यार दिया, जिन्होंने मुझे पलकों पर बिठाया, क्या उन्हें अपमानित होने के लिए छोड़ जाती। मेरे तो हृदय में है कान्हा और मेरे उनके साथ चले जाने से जाने कितनी राधा अपने कृष्ण से कभी मिल ही ना पाती। एक गोपी अपने स्वार्थ के लिए प्रेम को कलंकित कैसे कर जाती। तुम भाग्यशाली थी कि तुमने राजपरिवार में जन्म लिया और राजकुमारी बनकर अपने मन का कर सकी।"

"पर अंतर क्या आया। सब मेरे कृष्णप्रेम से जलते थे। मुझे सती करना चाहा। विष देकर मारना चाहा। मुझे भक्ति तक न करने दी। राजपाट त्याग कर मैं गली गली घूमी। क्योंकि मुझे स्त्री को मुक्ति होने का, समाज को प्रेम का संदेश देना था। मुझे तुम जैसी राधाओं के लिए लड़ना था। मुझे समाज के लिए उदाहरण बनना था। वरना भक्ति तो मैं अकेले एकांत में कर सकती थी।"

"तो द्वापर से कलयुग क्या बदला मीरा? नारी तो बस सम्मान या अपमान का पदार्थ ही बनकर रह गई ना। तब भी, अब भी।"

"हां राधा, हर राधा को- हर मीरा को सम्मान से जीने देने के लिए मीरा और राधा को ही खड़ा होना होगा। और साथ ही हर कृष्ण को आगे आना होगा जो उसके विष को अमृत कर दे। उसके विरह को मिलन कर दे।"

"हां.... हां, यह होना ही होगा। समाज को बदलना ही होगा। समाज को राधा और मीरा दोनों को अपनाना होगा। उनकी तुलना छोड़कर भक्ति और प्रेम का अंतर समझना होगा। मीरा और राधा का अंतर समझना होगा।"

(मौलिक व अप्रकाशित)

हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता जी।बेहतरीन लघुकथा।

बहुत-बहुत आभार आदरणीय तेजवीर जी

आदाब। महत्वपूर्ण प्रेरक पात्रों को बाख़ूबी वर्तमान व भविष्य से जोड़ कर बेहतरीन कथनोपकथन सहित सकारात्मक विचारोत्तेजक आह्वान करती रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय अजय गुप्ता साहिब। आदर्श आग्रह/आह्वान (विवरण)  के कारण तनिक लेखकीय दखल सा लगा, लेकिन हो.सकता है कि मेरा ऐसा लगना ग़लत हो। सादर।

//"तो द्वापर से (लेकर ) (इस) कलयुग (तक) क्या बदला मीरा? नारी तो बस सम्मान या अपमान का पदार्थ ही बनकर रह गई ना। तब भी, अब भी।"//

आदरणीय अजय गुप्ता जी, यदि रचना को यहाँ पर सम्पन्न किया जाये, तो ? 

 शुक्रिया उस्मानी साहब आपका सुझाव बेहतर है विचार अवश्य करूंगा

कृष्ण के संदर्भ मे राधा और मीरा का अन्तर और समाज के दृष्टीकोण को केन्द्र मे रख प्रभावशाली रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय अजय जी।

 शुक्रिया आदरणीय प्रतिभा पांडे जी

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