आप सब रोयेंगे एक दिन
समझ आते ही / अपनी-अपनी समझ परजहाँ पत्थर में भगवान बसते हैं
वहाँ मुझे मुर्दा , बेजान समझते हैं
मैं समझता हूँ सब कुछ
मुझे बेजान साबित करने में किस किस का हाथ है
किस किस की भलाई छिपी है
षड़यंत्र किसका है
सजा देना मेरा काम नहीं है
लेकिन बता दूँ मैं , आज
सबकी जानकारी के लिये , मन छुब्ध है मेरा
जब तुम सब मेरे पलड़ों में एक तरफ भार रखते हो
तो दूसरी तरफ केवल सामान ही नहीं रखते
साथ मे रखते हो अपना ईमान
और , मैं सामान तौलता भी नहीं
मैं तो तौलता हूँ तुम्हारा ईमान
और मैं जानता हूँ ,
किसका ईमान कितने पानी में है
इसीलिये कहता हूँ
जब वक़्त समझायेगा मेरी जीवंतता
सब रोयेंगे
अपनी अपनी नासमझी पर ॥
*************************************सब धर्मों का सार है, सत्य बड़ा अनमोल,
सब धर्मो के पंथ को, एक तुला पर तोल |
मानव का जीवन सदा, होता है अनमोल,
कोई भौतिक संपदा, उसे न पाए तोल |
माँ ममता के प्रेम का, मोल बड़ा अनमोल
दुनिया भर की संपदा, करे न पूरा तोल |
धरती नीरव जल बिना, समझो इसका मोल,
पानी खर्चों तोल कर, बून्द बून्द अनमोल |
बिन तोले ही बिक रहा, देखों तत्व विराट,
कचरा भी बिकता यहाँ, जग की ऐसी हाट |
पलड़ा भारी देखकर, दो न किसी को वोट,
उसको कभी न वोट दो, जिसके मन में खोट |
लिए तराजू न्याय का, आँखों पर पट बन्ध,
झूठें ले गंगाजली, खा जाते सोगंध |
बिना ज्ञान के आदमी, तोले डंडी मार,
तुलन पत्र से बेखबर,कर न सके उद्धार
कुण्डलिया छंद
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युवती हो अथवा युवक, एक तराजू तोल
कालान्तर में देख लों, रहा बराबर मोल |
रहा बराबर मोल, त्याग तो युवती करती
अनजाने घर जाय, वही पर आखिर मरती
लक्षमण आज दहेज़,तुला पर युवती तुलती
कटते पंख उडान, न भर पाती वह युवती ||
श्री सत्यनारायण सिंह जी
मूक होकर तौलता नित, द्रव्य का जो भार|
नाम से उसको तराजू, जानता संसार|
धर्म न्यायिक कर्म जिसका, धैर्य करता लुब्ध|
न्याय देवी कर सुशोभित, देख जग है मुग्ध|१|
.
शुचि तुला हो ज्ञान की औ, दिव्य पलड़े कर्म|
धैर्य रुपी दंडिका पर, संतुलित हो धर्म|
ईश में विश्वास का जब, संग हो शुभ बाट|
प्रेम करुणा का लगे तब, विश्व सुन्दर हाट|२|
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श्री रमेश कुमार चौहान जी
दोहा गीत
ये अंधा कानून है,
कहतें हैं सब लोग ।
न्यायालय तो ढूंढती, साक्षी करने न्याय ।
आंच लगे हैं सांच को, हॅसता है अन्याय ।।
धनी गुणी तो खेलते, निर्धन रहते भोग । ये....
तुला लिये जो हाथ में, लेती समता तौल ।
आंखों पर पट्टी बंधी, बन समदर्शी कौल ।।
कहां यहां पर है दिखे, ऐसा कोई योग । ये...
दोषी बाहर घूमते, कैद पड़े निर्दोष ।
ऐसा अपना तंत्र है, किसको देवें दोष ।।
ना जाने इस तंत्र को, लगा कौन सा रोग । ये...
कब से सुनते आ रहे, बोल काक मुंडे़र।
होते देरी न्याय में, होते ना अंधेर ।।
यदा कदा भी ना दिखे, पर ऐसा संयोग । ये...
न्याय तंत्र चूके भला, नही चूकता न्याय ।
पाते वो सब दण्ड़ हैं, करते जो अन्याय ।।
न्याय तुला यमराज का, लेते तौल दरोग । ये... (दराेग-असत्य कथन//झूठ)
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जय हो, आदरणीय योगराज भाईजी.. !
तब तो मेरे लिए दो बातें होंगी. या, तो ये आपके ’निर्देशों’ की बिना पर ’सुधर’ कर अपनी रचनाधर्मिता का पेंदा पा चुकी होगी. या, भैया-दीदी-चाचा-मामा करती हुई अपना समय खराब करती रहेगी.
वैसे, पहले वाले ऑप्शन पर मुझे जाने क्यों भयंकर संदेह है.. लेकिन, यहभी है, कि मुझे असीम प्रसन्नता होगी, यदि मेरा यह ’भयंकर संदेह’ निर्मूल हुआ .... ;-)))
आ. योगराज जी सादर
कार्यालयी व्यस्तता के कारण आयोजन के अंतिम चरण में सिरकत करने का अवसर मिला जिसके चलते रचनाओं को पढने एवं उनपर सुधीजनों की प्राप्त महत्वपूर्ण उपयोगी टिप्पणियों को पढने एवं लाभार्जन से वंचित रहा उनका यथावकाश पठन और मनन करूंगा. समस्त रचनाओं को संकलित कर उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन त्वरित उपलब्ध कराने हेतु तथा आयोजन के सफल संचलन हेतु हार्दिक बधाई.
प्रस्तुति में निम्नवत संशोधन निवेदित है
शुचि तुला हो ज्ञान की औ, दिव्य पलड़े कर्म|
सादर धन्यवाद
यथा निवेदित - तथा प्रस्थापित
सादर आभार आदरणीय
आदरणीय योगराजभाईसाहब,
को नहिं जानत है जग में ’प्रभु’ संकटमोचन नाम तिहारो !
नेट तो एक प्रारम्भ से बवाल पर बवाल कर रहा था. ग्यारह बजते-बजते बवाऽऽऽऽल करता हुआ पंचतत्त्व को प्राप्त हो ही गया प्रतीत हुआ. लेकिन अभी फिर हुबहुबाया है. और दिख रहा है, कि वल्लाह ! क्या कमाल हुआ है !!
इस संकलन के लिए हृदयतल से, आदरणीय, हार्दिक बधाई.
आपका यह प्रयास आपके प्रति बड़ी कालजयी पंक्ति की याद दिला रहा है - ’उसने कहा था..’ ... :-)))
आपने मान रख लिया, प्रभो ! बार-बार सिर झुका रहा हूँ.
सादर
हुज़ूर हुज़ूर हुज़ूर !!!! ओबीओ मंच की महिमा अपरम्पार है, यहाँ के दिलवाले तो दूल्हे के बगैर ही दुल्हनिया ले आया करते हैं कई दफा। :)))
वाक़ई सर "उसने कहा था … " वाला ही क़िस्सा था। डॉ प्राची जी अस्वस्थ थीं और उन्होंने मुझे इस काम के लिए डेप्यूट किया था, तो कोताही कैसे कर जाता महाप्रभु ? मेरा पीसी ओ.टी से स्वस्थ होकर बाहर आया तो यह काम संभव हुआ, वर्ना दुल्हनिया लाने की ज़िम्मेवारी आपके या बागी "चाचा" के सुपुर्द करनी पड़ती। नेट बाबा हलाकि कल फुल्ल्ल मेहरबान थे, अलबत्ता कल छोटे भाई की शादी की सालगिरह पर दावत थी, खाए-अघाये हुए बहुत ही मुश्किल से नींद से दामन बचाकर रात १२ बजे आयोजन बंद किया और उस से २ मिनट पहले संकलन भी पोस्ट कर दिया। सादर।
अनुज के विवाह की सालगिरह की आत्मीय शुभकामनाएँ हमारी ओर से प्रेषित कर दें भाईजी. आपका पीसी ओटी से सकुशल स्वस्थ निकल आया इसके लिए आपको मुबारकबाद.
संकलनकार्य केलिए पुनः हार्दिक शुभकामनाएँ
आदरणीय योगराज भाई , सफल आयोजन और त्वरित संकलन के लिये मंच को और आपको हार्दिक बधाइयाँ , आपको साधुवाद ।
मेरी रचना में कुछ टंकण की गलती और सुधार प्रतिक्रिया मे आये थे , तदानुसार सुधार कर यहाँ फिर से दे रहा हूँ , मूल रचना से प्रतिस्थापित करने की कृपा करें । साद्रर निवेदित ।
अतुकांत रचना
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आप सब रोयेंगे एक दिनजहाँ पत्थर में भगवान बसते हैं
वहाँ मुझे मुर्दा , बेजान समझते हैं
मैं समझता हूँ सब कुछ
मुझे बेजान साबित करने में किस किस का हाथ है
किस किस की भलाई छिपी है
षड़यंत्र किसका है
सजा देना मेरा काम नहीं है
लेकिन बता दूँ मैं , आज
सबकी जानकारी के लिये , मन छुब्ध है मेरा
जब तुम सब मेरे पलड़ों में एक तरफ भार रखते हो
तो दूसरी तरफ केवल सामान ही नहीं रखते
साथ मे रखते हो अपना ईमान
और , मैं सामान तौलता भी नहीं
मैं तो तौलता हूँ तुम्हारा ईमान
और मैं जानता हूँ ,
किसका ईमान कितने पानी में है
इसीलिये कहता हूँ
जब वक़्त समझायेगा मेरी जीवंतता
सब रोयेंगे
अपनी अपनी नासमझी पर ॥
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यथा निवेदित - तथा प्रस्थापित
आ० कांता रॉय जी, अब्दुल्ला का यह बेगानापन बस कुछ ही दिनों की ही बात है। आप जिस तरह यहाँ रच-बस रही हैं, तो ओबीओ आपका और आप ओबीओ का एक अभिन्न हिस्सा बनने जा रही हैं। आपकी सक्रियता बेहद संतोष का विषय है। आपकी बधाई सर आँखों पर।
आदरणीय योगराजजी, इस त्वरित संकलन के लिये हार्दिक बधाई, मैं अपनी प्रस्तुति मेंं प्राप्त सुझाओं के आधार पर निम्नानुसार संशोधन की प्रार्थना करता हूं '
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