For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-68 (विषय: संकटकाल)

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-68
विषय: "संकटकाल"
अवधि : 29-11-2020 से 30-11-2020
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
.
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 2401

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जिंदा स्मारक

"आपका स्वागत है एक नई सुबह नए जिंदादिल शहर में आर जे अर्जुन के साथ। कई लोग मेरे आस-पास मॉर्निंग वॉक को निकले हैं ताकि शुद्ध हवा अपने फेफड़ों में भर सकें।"
"ओह! मैडम जी एक सवाल...आपके शहर में यादगार क्या है?"
"एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताज-उल-मस्जिद"
"सरजी ...सर..जी इस शहर की खूबसूरती का राज?"
"इट्स वन ऑफ इंडियाज ग्रीनेस्ट सिटीज।"
"ओह! दादा ... आपकी आंखों को क्या हुआ? ... खैर! आप देख तो नही सकते लेकिन आप हमें बता जरूर सकते हैं कि आपके शहर की न भूलने वाली बात क्या है ?"
"भोपाल गैस त्रासदी"

(मौलिक व अप्रकाशित)

आदाब। हार्दिक बधाई आदरणीय अनिल मकारिया जी गोष्ठी का आग़ाज़ बढ़िया उम्दा व विचारोत्तेजक रचना से करने हेतु।

वाह..बहुत सुन्दर लघुकथा । हर व्यक्ति का अपना नजरिया होता है उसके भुक्तभोग के अनुसार..

उस त्रासदी के घाव अभी तक नहीं भरे हैं। एक गंभीर विषय पर सृजन के लिये बधाई आपको आदरणीय अनिल जी

इंसान लोग
------------
' आंटी के घर काम करने जाती है तू?' काम वाली बाई से सुरभि टीचर ने पूछा।
' नहीं मैडम।आंटी ने मना किया था।बोली थीं कि कहेंगी आने के लिए।' सन्नो बाई बोली।
' अच्छा।और तेरे पैसे?'
' वो तो उनके यहां कभी फंसे नहीं।मिल जाते हैं। और आपकी पढ़ाई के पैसे?'
' दस बारह दिन ही तो पढ़ा सकी थी।दशहरा के बाद आने  के लिए पूछा,तो आंटी वही बोली थीं,जो तुझसे बोलीं। पंद्रह दिन के पैसे मेरे खाते में जमा हो जाएंगे।' सुरभि बोली।
' हां,भले लोग हैं।इंसान भी। रोग - बीमारी में हम सबको दूर रहने को कहा उन लोगों ने। बहुत लोग तो बताते ही नहीं। लोगों में घुले मिले चलते हैं। बीमारी फैले,तो फैले।'
' सही कहा तूने , सन्नो। हम डूबे,तो तुम भी डूबो, ऐसा सोचने वाले ज्यादा लोग हो गए हैं।' सुरभि बोली।
' इसीलिए कहती हूं दीदी कि और कोई काम छूटे,तो छूटे,पर उनका काम नहीं छोड़ूंगी। जब काम बंद था, तब भी कुछ मदद उन लोगों ने कि थी।'
' हां री,आजकल वैसे इंसान कम ही मिलते हैं,जो संकट के समय मददगार हों और अपनी तकलीफ से दूसरों को बचायें।' सुरभि की आवाज नम हो गई थी।

" मौलिक व अप्रकाशित"

सादर नमस्कार। बढ़िया सकारात्मक रचना। लेकिन  पिछली रचनाओं जैसी की प्रतीक्षा रहती है।

आपका दिली आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।

सकारात्मक रचना। हार्दिक बधाई। पर जैसा कि आदरणीय उस्मानी जी ने कहा है, आपवाला तेवर थोड़ा मिसिंग है। 

आदरणीया प्रतिभा जी,आपका दिली आभार।मेरी लघुकथाएं आपका ध्यान आकृष्ट करती हैं,यह मेरा सौभाग्य है।

  लघु- कथा

 

    कल मानव और विभा की शादी के दस वर्ष पूरे हो रहे थे। सो इस बार की मैरिज एनीवर्सरी विशेष थी। दाम्पत्य जीवन में कोई अभाव      प्रकटतः तो विभा को नहीं था। दो बच्चे, बेटी मानसी और बेटा विशेष प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे थे। विभा एम, ए. बी. एड. थी, मिजाज़ से    हाउस वाइफ थी। सारा दिन चौका बर्तन, सफाई, बच्चों की सुख-सविधा में कोई कमी न रहे इसमें निकल जाता था । हाँ मानव से ज़रूर    उसे शिकायत थी। मानव एक कस्बे के महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे। उनका ज्यादातर समय अध्ययन और अध्यापन में ही      निकल जाता और बचता तो दोनों बच्चों के होम-वर्क कराने में निकल जाता था। रविवार की छुट्टी विभिन्न परियोजनाओं में उनके          काॅलेज को विश्व विद्यालय अथवा यू. जी. सी. से सभी ग्रान्ट्स  मिल सके, प्रोजेक्ट तैयार करने मे लग जाता था । कभी भाग्य से थोड़ा    अवकाश भी मिलता तो प्राचार्य यह पूछने के लिए आ धमकते कि अमुक प्रोजेक्ट पूरा हो गया अथवा नही । कभी- कभी तो स्टूडैन्ट्स      अपनी व्यक्तिगत समस्याएं लेकर आ पहुँचते तो और दिक्कत हो जाती।
   " मानव के पास बस उस के लिए ही समय नहीं था, विभा सोच रही थी, " और, अब जनाब कई हजार रुपये शादी की दसवीं वर्ष-गाँठ        की    औपचारिकता पर फूँकने जा रहे थे। छी...ऐसे आडम्बर पर..." ,.उसे घिन आने लगी थी। सोचते-सोचते कब विभा की आँख लग        गयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह जब उसने आँखें खोली तो मानव उसे झिंझोड़ रहे थे।" अरे उठोगी नहीं क्या, आठ बज चुके है। तुम्हें      तो पता है कितनी तैयारिया करनी है, कितने काम करने को हैं।" विभा का असन्तोष गुस्सा बनकर फूट निकला,
  शादी की वर्ष-गाँठ के लिए इतनी चिन्ता और जिसे दस साल पहले गाँठ बाँधकर लाए थे, उस से भी कभी पूछा, विभा कैसी हो, तुम          उदास क्यों रहती हो। बस वक्त-ज़रूरत बाँहों में भरा और भोग लिया। हरम की दासी हूँ, तुम्हारी या रखैल बताओ तो जरा।"
  मानव को काटो तो खून नही...... पहली बार आज उसे अहसास हुआ । उससे अब तक बहुत बड़ी चूक हो रही थी। उसने आगे बढ़कर        विभा को बाँहों में समेट लिया, " आइ लव यू मोस्ट, माई डियर !"
  अब विभा की आँखों से गंगा-जमुना एक साथ बह रहीं थी।

   मौलिक एवं अप्रकाशित

< Previous Po

सादर नमस्कार आदरणीय चेतन प्रकाश जी। गंभीर मुद्दे उठाती बढ़िया रचना। कृपया इस बात पर.ग़ौर कीजिएगा कि यह शैली व विवरण अनुसार लघु कहानी है। लघुकथा नहीं। इस हेतु कृपया इस वेबपत्रिका की लघुकथा कक्षा व आलेख पढ़ लीजिएगा।

मोहतरम भाई, Sheikh Shahzad Usmani साहब, प्रस्तुति आपको अच्छी लगी, इसके निए आपका वहुत शुक्रिया ! लघु - कथा अथवा लघु कहानी पर चर्चा, दोस्त, ऐसी है, जैसे प्याज पर पहली दो पर्तें । सो, भाई, जुनून, कहे या पागलपन स्रोत और लक्षण समान है। वैसे भी अन्य लघु-कथाओं से मेरी इस लघु- कथा की निष्पक्ष तुलना करेंगे तो पाएंगे कि मेरी प्रस्तुति का वितान अपेक्षाकृत क़म ही नहीं, प्रस्तुत लघु - कथा गठन की दृष्टि से अपेक्षाकृत बेहतर है।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आया सफर कब मंजिलों से याद आया।१। देखा जाये तो…"
20 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई शिज्जू शकूर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। गिरह भी खूब हुई है। हार्दिक बधाई।"
57 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया याद तो उन्हें भी आया और शायर को भी लेकिन…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया इस शेर की दूसरी पंक्ति में…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"कहाँ कुछ मंज़िलों से याद आया सफ़र बस रास्तों से याद आया. मतले की कठिनाई का अच्छा निर्वाह हुआ।…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई चेतन जी , सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "टपकती छत हमें तो याद आयी"…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उदाहरण ग़ज़ल के मतले को देखें मुझे इन छतरियों से याद आयातुम्हें कुछ बारिशों से याद आया। स्पष्ट दिख…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"सहमत"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गुणीजनो के सुझावों से यह और निखर गयी है। हार्दिक…"
3 hours ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service