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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-69 विषय: "किसान"

आदरणीय साथियो,
सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-69 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-69
विषय: "किसान"
अवधि : 30-12-2020 से 31-11-2020
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फ़ॉन्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है।
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाए रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाएँ इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद ग़ायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आसपास ही मँडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया क़तई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा ग़लत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिसपर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फ़ोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बहुत बढ़िया लघुकथा।

आदाब। बहुत-बहुत शुक्रिया। नववर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय तेजवीर सिंह जी।

आदाब। रचना पर समय देकर उसके मर्म पर टिप्पणी कर मुझे प्रोत्साहित करने हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया। नववर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय

 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी

'पंच परमेश्वर'

"यह क्या है बबलू.. यहाँ पर मंदिर बन रहा है..?" विक्की ने पूछा।
"हाँ! वक्त का न्याय है।" बबलू ने कहा।

"अगर आप घर में से अपना हिस्सा छोड़ दें तो हम खेत में से अपना हिस्सा छोड़ देंगे।" बबलू ने विक्की से कहा था।
लगभग अस्सी-इक्यासी साल पुराना मिट्टी का घर मिट्टी में मिल रहा था। दो भाइयों के सम्मिलात घर के आँगन में दीवाल उठे भी लगभग सत्तर-बहत्तर साल हो गए होंगे। तभी ज़मीन-ज़ायदाद भी बँटा होगा। ना जाने उस ज़माने में किस हिसाब से बँटवारा हुआ था कि बड़े भाई के हिस्से में दो बड़े-बड़े खेतों के बीच दस फीट की डगर सी भूमि छोटे भाई के हिस्से में आयी थी। जो अब चौथी पीढ़ी के युवाओं को चिढ़ाती सी लगने लगी थी। बबलू छोटे भाई का परपोता और विक्की बड़े भाई का परपोता थे..। बबलू गाँव में ही रहता था और विक्की महानगर में नौकरी करता था।

'ठीक है तुम्हें जैसा उचित लगे।' विक्की ने कहा था।

घर से मिली भूमि के बराबर खेत के पिछले हिस्से की भूमि बबलू ने विक्की को दिया। आगे से भूमि नहीं मिलने के कारण एक कसक थी विक्की के मन में , जो आज दूर हो गयी।

(मौलिक और अप्रकाशित)

आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीया विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया सकारात्मक रचना। हार्दिक बधाई। बेहतरी  हेतु अभी इस पर और काम किया जा सकता है मेरे विचार से। 

हार्दिक बधाई आदरणीय vibha rani shrivastava जी।बहुत बढ़िया लघुकथा।

गुटरगूँ - लघुकथा –

दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर किसान आंदोलन के चलते अनगिनत ट्रैक्टर ट्रॉलियों का जमावड़ा हो रखा था| उन्हीं में से एक ट्रैक्टर ट्रॉली की छत पर एक कबूतर का जोड़ा बैठा था | कबूतर कबूतरी को रिझाने के लिये बार बार गुटरगूँ की रट लगाए हुए था | उसकी इस हरक़त से तंग आ चुकी कबूतरी झल्ला पड़ी,”क्या परेशानी है तुझे? चुपचाप नहीं बैठा जाता।“

“तू इतना भाव क्यों खाती है? कितनी गुनगुनी धूप खिली है, आज तीन दिन बाद। थोड़ा पास आजा प्यार मोहब्बत की बात करते हैं।“

“शर्म नहीं आती तुझे।ये कोई प्यार मुहब्बत का वक्त है?”

“क्यों वक्त में क्या खराबी दिख रही है तुझे?”

“जिन किसानों की ट्रॉलियों पर तू उछल कूद मचा रहा है, जिनका दिया हुआ रोजाना राशन खा रहा है, उनके दुख दर्द का तुझे कुछ अंदाज़ा भी है ?”

“ये समस्या तो खुद इनकी मोल ली हुई है।“

“अच्छा, तुझे मज़ाक सूझ रही है। ये लोग पिछले एक महीने से इस ठिठुरती ठंड में खुले आसमान के नीचे पड़े हैं। सत्तर

अस्सी साल के बुजुर्ग, छोटे छोटे दूध पीते बच्चे और बूढ़ी औरतें इतनी सर्दी में कैसे तड़प रहे हैं | कुछ पता भी है? हर दिन एक ना एक मौत हो रही है।मुझसे तो इनका दुख देखा नहीं जाता। और यह सरकार इनकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है।“

“हम लोग पक्षी होकर इस सरकार की नीति और नीयत को पहचान गये लेकिन ये लोग इंसान होकर भी इस सरकार की मंशा छह साल में भी नहीं समझ सके।“

“कौनसी मंशा ?”

“यही कि यह पूंजीपतियों की सरकार है |आम आदमी के लिये इस सरकार के दरवाजे खटखटाना, दीवार से सिर फ़ोड़ने के समान है|”

 

मौलिक,अप्रकाशित एवम अप्रसारित।

सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बिम्ब 'कबूतरों' के कथनोपकथन में बढ़िया विचारोत्तेजक रचना हेतु हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब। गुटरगूँ ही तो हो पा रही है, बस।

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी समसामयिक कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

हार्दिक आभार आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी।

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