Tags:
Replies are closed for this discussion.
प्रति प्रश्न (प्रत्युत्तर विषयाधारित )
.
इतनी रात में अपने आफिस में अपने सामनेँ खड़े अक्स को देख वह चौंक उठा |
“तुम्हे अंदर किसनें आनें दिया ...?" वह जोरों से चीख उठा | वह अक्स मुस्कुरा रहा था | वह क्रोध से बिलबिला उठा | “बोलतें क्यों नहीं कौन हो तुम...?? वह जोर से चीखा |
“मुझे नहीं पहचानते..? उस अक्स की आवाज गूंजी |
“नहीं..!!” उसने अपने चश्मे के कांच साफ़ करते हुए अनजान बनते हुए उत्तर दिया ,पर अब उसे घबराहट होनें लगी थी | तभी अचानक वह अक्स एक रोती-बिलखती लड़की में तब्दील हो गया |
“अरे तुम तो वही लड़की हो न ! जिसके साथ एम्.एल.ए साहब नें जबरदस्ती...|” वह कुर्सी के हत्थे का सहारा लेते हुए खड़ा होने लगा | अब वह अक्स एक बूढी औरत में तब्दील हो गया था , उसे देख उसे मशहूर बिल्डर नेकचन्द के कहे शब्द याद आ गए “वकील साहब ! अगर उस बुढ़िया की जमीन मुझे मिल गयी तो मैं तुम्हे रुपयों में तोल दूँगा |“ सोच-सोच कर वह अब हाँफने लगा था | डर के मारे उसने आँखे बन्द कर ली पर जब उससे न रहा गया, तो उसनें फिर आँखे खोली | सामनेँ खड़ा वह अक्स अब हूबहू उसके स्वर्गीय बेटे की तरह दिख रहा था ,जिसे उस जैसे ही एक बड़े वकील ने अपने धारदार तर्कों से ,निर्दोष होते हुए भी दोषी साबित कर दिया था और हताश बेटे ने आत्महत्या कर ली थी | उसकी आँखों से आँसूं बह निकले |
उस अक्स की आवाज़ एक बार फिर गूँजी .. “क्या अब भी मुझे नही पहचाना ..?
“हाँ हाँ.. जानता हूँ ..तुम मेरे ज़मीर होssss ..!”
पूरी ताकत से चीखते हुए उसनें दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया और फूट-फूट कर रोने लगा |
मौलिक व् अप्रकाशित
हाँ , वो जमीर ही है। जमीर का जागना बेहद दुखद होता है। उसका अक्स जब पूर्व किये गुनाहों का प्रत्युत्तर देता हैं तो इंसान न जीता है न ही मरता है। अच्छा है जमीर का सोये रहना। वैसे भी इस मशीनी युग में जमीर का आस्तित्व बचा भी है ?? बहुत ही गंभीर विषय पर आपकी प्रस्तुति हुई है हमेशा की तरह आदरणीय सुधीर जी। बधाई स्वीकार करे।
आद .. कान्ता जी ! आपकी कही बात से तनिक असहमत हूँ | मशीनी युग में आज भी इंसान की सम्वेदनाए जीवित है.| हाँ स्वरूप जरुर बदल गया है | बहरहाल कथा पर आपकी उपस्थिति एवं उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार
जब तक बुरे से बुरे आदमी का भी ज़मीर जिंदा होता है , वापसी की उम्मीद होती है , बहुत सशक्त लघु कथा है आपकी आदरणीय सुधीर जी ,बधाई स्वीकार करें
हार्दिक आभार आ. प्रतिभा पाण्डेय जी
भाई सुधीर द्विवेदी जी, आपकी इस लघुकथा ने बहुत प्रभावित किया है I रूप बदल बदल कर आ रही अपनी ज़मीर से साक्षात्कार करते हुए व्यक्ति की मनोदशा का बाकमाल चित्रण किया है I
हार्दिक आभार एवं नमन श्री
पूर्व में किये गए गुनाहों के अक्स ही जमीर को जागने में कभी कभी कामयाब होते हैं बहुत अच्छे से घटनाओं के बदलते ताने बाने से इस गंभीर भाव को कथानक में समाहित किया है बहुत ही प्रभाव शाली लघु कथा हुई दिल से बधाई लीजिये आ० सुधीर जी |
कथा आपको अच्छी लगी , मन प्रसन्न हो उठा | गुनीजनों की सराहना सदैव उर्जा का संचार करती है | तहेदिल से आभार आ. राजेश कुमारी जी | सादर
वाह वाह क्या खूब कथा हुई है भैया... इंसान दुनिया से भाग सकता है परन्तु अपने ज़मीर से नहीं... अपने कर्म का आइना मनुष्य को उसकी असली सूरत दिखा ही देता है... कमाल ही कर दिए हो भैया ... बहुत बधाई और असंख्य शुभकामनाएँ...
बिलकुल सही कहा | जन्म से लेकर मरण तक यही जमीर कदम-कदम पर आगाह करता है पर हाय रे मनुष्य... हौसलाअफजाई के लिए हार्दिक आभार आ. दीदी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |