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आदरणीय सौरभ जी धन्यवाद की जगह आशीर्वाद दीजिए. आभारी रहूँगा.
स्वार्थ से सजे रिश्तों के प्रश्न अधिकतर अनुत्तरित रह जाते हैं अथवा उनके उत्तर की प्रतीक्षा किसी को नहीं होती, केवल अपनी बात कहनी होती है| अपनी पत्नी को धोखा देकर किसी अन्य के साथ जो उसके साथ दो वर्ष तक रह कर भी किसी अन्य के साथ....स्वार्थ प्रदत्त रिश्तों का अंत ऐसा ही होता है... सच को दर्शाती इस रचना हेतु मेरी तरफ से बधाई स्वीकार करें आदरणीय ओमप्रकाश जी सर| शीर्षक पर और सोचा जा सकता है, हालाँकि प्रत्युत्तर भी मुझे इस सन्दर्भ में उचित लग रहा है कि समय ने उसे जवाब में वही दिया जो उसने अपनी पत्नी को दिया था| सादर,
आदरणीय चंद्रेश जी आप की टिप्पणी देर से मिली, पर मिली लाजवाब. पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया. शीर्षक दूसरा हो सकता था , मगर आयोजन के हिसाब से उपयुक्त लगा इसलिए रख दिया. भविष्य में इसे बदला भी जा सकता है. आप की इस सह्रदयता के लिए दिल से आभार.
बहुत खूब आ.ओमप्रकाश जी, लिव इन रिलेशनशिप फैशन हो गया है, पर इसके दुश्परिणाम भी देखने को मिलते हैं ,जो इतने समय साथ रहकर भी एक दूसरे के नहीं हुए ऐसे रिश्ते को निभाना बेवकूफी ही है। बधाई अच्छी रचना के लिए
आदरणीया नीरज शर्मा जी आप की इस स्नेहिल टिप्पणी के लिए मेरा आभार .
आ सीमा सिंह जी जूठन पर आप ने बहुत ही शानदार लिखा है.
आभार ओम प्रकाश जी
आचार्य चतुर सेन की याद दिलाना तो कॉम्प्लीमेंट हो गया मेरे लिए माला जी... बहुत धन्यवाद..
वाह बहुत सुंदर कथा चित्रण
आभार पंकज जी..
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