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कभी-कभी मन की दमित कुंठा बेहद भयानक रूप अख्तियार कर लेती है | मानव-मन के एक और पक्ष का यथार्थ चित्रण किया है आपने आद . सीमा सिंह दीदी |
सच में दमित भावनाएँ पतन इंसान को कितना गिरा दे कहा नहीं जा सकता... पतन की कोई सीमा नहीं होती... आभार सुधीर भैया कथा पर उपस्थित होने का ...
मुझे जरुर दिखाना नेहा... चाहो तो यही कमेंट्स मे पोस्ट कर देना या फिर बाद में भेज देना... मैं अवश्य देखना चाहूंगी...
आपकी सशक्त लेखनी का एक और तोहफा ,बधाई इस रचना पर आपको सीमा जी
आभार आपके स्नेह का प्रतिभा जी...
अंतिम पंक्ति अर्थात पञ्च लाइन सच में पंच्च का असर दिखाती है जो बहुत कुछ कह जाती है किसी के स्वाभिमान को कभी ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए सामने वाले के दिल में कब ज्वालामुखी जन्म लेने लगे पता भी नहीं चलेगा |बहुत अच्छी लगी ये लघु कथा सीमा जी आपको बहुत- बहुत बधाई.
बहुत धन्यवाद आ० राजेश दीदी... आपकी प्रशंसा बहुत ऊर्जा देती है..
हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी, बहुत अच्छी लघुकथा हुई है!एक अनाथ को परिवार में किस तरह तिरस्कार झेलना पडता है, इस विषय को चरितार्थ करती सुन्दर रचना!
धन्यवाद तेजवीर जी आपको कथा पसंद आई...
आभार जानकी जी...
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