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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 70 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन 

70वें तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| मिसरों को दो रंगों में चिन्हित किया गया है, लाल अर्थात बहर से खारिज मिसरे और हरे अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|

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Nilesh Shevgaonkar


बहुत मुमकिन है मर कर ही मुहब्बत का असर जाए
धुआँ हो जिस्म जब मेरा, तेरी ख़ुशबू बिख़र जाए.
.
ख़ुदाया ऐसी बीनाई निग़ाहों को अता फ़रमा,
मुझे तू ही दिखाई दे जहाँ तक ये नज़र जाए.
.
मैं अक्सर आईने से इसलिए भी दूर रहता हूँ,
कहीं ऐसा न हो वो देख कर मुझ को सिहर जाए.
.
ख़ुदा की जुस्तजू में नापते थे पर्बत-ओ-सहरा,
“जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए”
.
सफ़र की धूप में पलकों का साया जो मयस्सर है,
इसी लम्हे, ख़ुदाया काश! ये दुनिया ठहर जाए.
.
बुराई के क़बीले को यूँ ही इक साथ रहने दो,
दुआ माँगो भले लोगों की हर बस्ती बिख़र जाए.
.
तेरा इंसान धरती को बहुत बदरंग करता है,
बुला ले सब को ऐ मौला!! कि फ़िर दुनिया संवर जाए.

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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"

नज़र जिस पे तुम्हारी हो वो ऐसे ही संवर जाये।
अग़र तुम फेर लो आँखें, तो कोई भी बिखर जाये।।

ये नदियाँ झील सागर सब, तुम्हारे ही तो मन्दिर हैं।
पता है ग़र न पानी हो, तो जीवन पल में मर जाये।।

सुलगती है हवा जलती, हुई सी सब दिशायें हैं।
सुनो तुम मुस्कुराओ तो, ज़रा सब कुछ निखर जाये।।

मनस पर है कलुष छाया, घिरा अपमर्द से अंतस।
जिसे हो ज़ुस्तजू अपनी, वो बेचारा किधर जाये।

चहकते औ फुदकते इन, परिंदों की तरफ देखो।
निगाहों से न ग़ायब हो, कोई पंछी न डर जाये।।

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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)

मोहब्बत में कोई दीवाना ऐसा काम कर जाए
किसी की याद को लेकर जिए वो और मर जाए

जरा देखो तो आंखें खोल कर तुम उसकी कुदरत को
दिखाई सब तुम्हें देगा जहां तक ये नजर जाए

सितारे चांद सूरज सब के सब गर्दिश में रहते हैं
न जाने क्या हो दुनिया का अगर एक पल ठहर जाए

मेरे मालिक गुजारिश है मेरी भी अर्ज़ सुन ले तू
कोई इलज़ाम उनका हो तो बस वो मेरे सर जाए

मैं वह पत्थर हूं जिस पे सारी दुनिया नाज़ करती है
मैं वह शीशा नहीं हूं जो कभी टूटे बिखर जाए

हमें तुमसे भी उल्फत है हमें उनसे भी उल्फत है
बड़ी मुश्किल में है आखिर ये दीवाना किधर जाए

जफ़ाओं पर तेरी सदके मैं जाऊं रुठने वाले
अदाओं पर तेरी क्यों कर न ये दीवाना मर जाये

जिसे मंजिल की ख्वाहिश है वही मंजिल को पाएगा
"जिसे है जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए"

ये राहें इश्क है जीना इसी का नाम है 'गुलशन'
अगर ये जिंदगी अपनी इसी सूरत ग़ुज़र जाए

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HAFIZ MASOOD MAHMUDABADI

वफा की राह में हद से जो दीवाना गुज़र जाए
जफा के शहर में हर फर्द का नश्शा उतर जाए

खुदा के कहर से इन्सां अगर दुनिया में डर जाए
हर एक लम्हा यकीनन जिंदगानी का सवंर जाए

परेशानी की हालत में खुदा को याद करते हो
अगर हर वक्त रखो याद तो किस्मत संवर जाए

बुराई छोड़कर आ जाए सच्चाई की राहों पर
अगर किरदार से अपने कोई इन्सां सुधर जाए

तअस्सुब नफरतें खुदगर्जियां हरसू जमाने में
जिसे हो जुस्तुजू अपनी वो बेचारा किधर जाए

कफ़न को बांधकर सर पर चला है जानिबे सरहद
मज़ा जब है वतन की राह में जब अपना सर जाये

धनी है बात का वो शख्स ऐसा हो नहीं सकता
जो वादा करके ऐ मसऊद वादे से मुकर जाए

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Tasdiq Ahmed Khan

जहाँ से भी मेरा महबूब बेपर्दा गुज़र जाए ।
मेरा दावा है फ़ौरन ही वहां दुनिया ठहर जाए ।

यहाँ से वो निकल कर जाए तो अब किसके घर जाए ।
मुझे डर है कहीं दीवाना कूचे में न मर जाए ।

किया मजबूर जब दिल ने भरोसा कर लिया उस पर
मगर डर भी है वादे से न वो अपने मुकर जाए ।

परेशां किस लिए है तू चला तीरे नज़र मुझ पर
ग़रज़ क्या इस से दिल जाए या फिर मेरा जिगर जाए ।

मेरी आँखों में पोशीदा ग़मों को किसने देखा है
हमेशा मुस्कराते लब पे ही सबकी नज़र जाए ।

कभी मिलने पे पाबन्दी ख़यालों पर कभी पहरा
जिसे हो जुस्तुजू अपनी वो बेचारा किधर जाए ।

सुना है यह तजुर्बा है मुहब्बत करने वालों का
लबों से जो न हो पाए नज़र वो काम कर जाए ।

यही है ख़ौफ़ शादी में चला तो जाऊं मैं उनकी
कहीं चेहरा न उनका देख के मुझको उतर जाए ।

न जब तक फ़ैसला हर कोई सुनले उनका कानों से
गुज़ारिश है कोई भी छोड़ के उनका न दर जाए ।

गया मुल्के अदम को जो मिले उससे कोई कैसे
वहां जाए न ख़त कोई न ही कोई ख़बर जाए ।

वो कहता है यही तस्दीक़ मंज़र जिसने देखा है
उधर मेला सा लग जाए नज़र उनकी जिधर जाए ।

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गिरिराज भंडारी

कहो ख़ामोश आईनों को उन तक ये ख़बर जाये
अगर हों दाग़ चहरे पर तो क्यूँ दरपन सुधर जाये

कभी चौखट न लांघे याद रखना बात कमरे की
जो घर से बात निकली तो, न जाने फिर किधर जाये

जो लम्हा शादमाँ निकले उसे भर लो निगाहों में
अगर ग़मगीन हो लम्हा तो कह उससे, ग़ुज़र जाये

मैं सीने में हवा भर, पूरे दम से, फूँक ही दूँगा
रुकूँ मैं क्यूँ ? चढ़ा तूफ़ाँ उतरता है, उतर जाये

तू रोना सीख ले, तो दर्द के क़िस्से बहुत से हैं
धुले अश्क़ों से तो शायद तेरा नग़्मा निखर जाये

ख़मोशी की सदा अलफ़ाज़ से भी तेज़ होती है
वो समझेंगे मेरी हालत अगर मुझ पर नज़र जाये

हरिक सच, अपने क़दमों के निशाँ कुछ छोड़ देता है
हबीब अपना सचाई से मुकरता है , मुकर जाये

अगर तय है बिखर कर बीज वृक्षों में बदलते हैं
दुआ करता हूँ मैं, मेरी वफ़ा टूटे, बिखर जाये

किसी की चाह हो दिल में तो रस्ते भी बुलाते हैं
जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाये

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शिज्जु "शकूर"

कोई तन्हाई की हद से न इतना भी गुज़र जाये
कि अपनी शक़्ल देखे आइने में और डर जाये

लहर जैसे कोई साहिल से टकराये उतर जाये
मुझे छूकर तेरी यादों की ख़ुश्बू यूँ बिखर जाये

हमेशा भागता क्यों दिखता है इंसान सड़कों पर
ज़रा देखे तो औरों को वो इक पल तो ठहर जाये

ख़यालों को ज़रा पर खोलने दो खुल के उड़ने दो
नहीं दुनिया फ़क़त उतनी जहाँ तक ये नज़र जाये

वो जिस फन्दे में जकड़ा है उसे तो़ड़े नहीं तो फिर
कहो उससे किसी पत्थर से टकराये बिखर जाये

कहाँ तक कोई डूबे खुद को पाने के लिये, बोलो
‘जिसे है जुस्तुजू अपनी वो बेचारा किधर जाये’

जहाँ देखो वहाँ पर भुखमरी, लाचारी, घोटाले
कहो आँखें कहाँ खोले ये बचपन अब किधर जाये

कोई मतलब से उठकर सोचता दिखता नहीं है आज
यही मतलब परस्ती गंध फैलाये जिधर जाये

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Samar kabeer

कहीं ऐसा न हो तल्क़ीन तेरी बे असर जाये
मुसीबत सहते सहते सब्र का पैमाना भर जाये

नसीहत वक़्त से पहले मियाँ बैसूद होती है
ज़रा उसके ग़ुरूर-ए-हुस्न का नश्शा उतर जाये

हमें तो सर ज़मीन-ए-हिन्द अपनी जाँ से प्यारी है
ज़लील-ओ-ख़्वार होता है जो इसको छोड़ कर जाये

हवाओं में,घटाओं में,बहारों में,नज़ारों में
नहीं तेरे सिवा कोई जहाँ तक भी नज़र जाये

अभी वाक़िफ़ नहीं तू इस हक़ीक़त से मिरे भाई
बड़ी तकलीफ़ होती है अगर सपना बिखर जाये

ग़मों की आँच भी उन तक न पहुँचे ऐ मिरे मौला
क़यामत जो गुज़रनी है मिरे दिल पर गुज़र जाये

जनाब-ए-शैख़ सब समझा चुके,अब ये भी बतला दो
"जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बैचारा किधर जाये"

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Sheikh Shahzad Usmani


अगर सच बोलने की तू हिमाक़त आज कर जाए,
कभी डर-डर के मर तू या नसीहत से सुधर जाए।

दशायें इन ग़रीबों की, समझ सकता अगर कोई,
करे जब घोर भ्रष्टाचार, शरमाकर ठहर जाए।

उगायें पेड़-पौधे काश हर त्योहार पर दिल से,
हमें सब दे रही धरती, कभी ख़ुद भी संवर जाए।

न मंदिर में, न मस्जिद में, न गिरजाघर कभी जाता,
"जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए।"

लगे हो मुल्क़ की ख़िदमत, हिफ़ाज़त में भरोसे पर,
न डरना मौत से हरग़िज़, शहादत की ख़बर जाए।

अकेले चल पड़े हो तुम, जतन से जानिबे मंज़िल,
न मुड़कर देखना पीछे, भले ही घर बिखर जाए।

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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

बड़ी मुश्किल में है ये दिल इधर जाये उधर जाये
उसे कोई ये समझा दे गनीमत है सुधर जाए

नजारा चाँद तारों का बहुत है कर लिया बेशक
नजर उनकी जो हो जाये मेरी दुनिया संवर जाये

कहो उनसे फुहारों में जरा सा भीग लें सावन
खुदा ने जो उन्हें बख्शा वो दौलत भी निखर जाए

छुडाना था अगर दामन तो आहिस्ता छुडाते तुम
मगर ऐसा भी क्या जाना किसी का घर बिखर जाये

किये हमने बहुत वादे सभी वादे निभाए भी
कहूँ वादे वफ़ा कैसे जो हर वादा मुकर जाए

भटकना था बहुत भटके गए मक्का मदीना भी
जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाये

बड़ी जिल्लत उठाने पर ये शामे जिन्दगी आयी
बहुत है हो चुका ‘गोपाल’ से कह दो कि घर जाये

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laxman dhami

अगर इक मुस्कुराहट से किसी का काम सर जाए
दुआ आँखों का हर आँसू कहीं दिल में ठहर जाए।1।

बहुत बरबाद करते हैं ये मजहब जाति के झगड़े
जतन ऐसा करो कोई कि दुनियाँ फिर सँवर जाए।2।

अगर कंकड़ न हाथों में हरारत पाँव में रक्खो
कि ठहरी झील में यारो मचल अब हर लहर जाए।3।

न मन में बात ये रख कर बचाना आस मरते की
किसी की शाम की खातिर हमारी क्यों सहर जाए।4।

तमाशा सिर्फ जोकर का हुई है यार फनकारी
कोई जलवा नहीं ऐसा जो अब दिल में उतर जाए।5।

जहाँ की प्यास वाले तो फलक में उड़ गये यारो
‘जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए’।6।

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जयनित कुमार मेहता


जिसे जाना हो, बेशक कंक्रीटों के नगर जाए
पर अपनी ख़ाकसारी,नेक-नीयत छोड़ कर जाए

तरक़्क़ी की बयार इस ओर से भी जो गुज़र जाए
बड़े अरसे से भूखे 'बाबुओं' का पेट भर जाए

ये जबसे 'फेक-बुक', ईमेल आए, व्हाट्सेप आया
वो अकुलाहट कहाँ दिखती है अब "कैसे ख़बर जाए?"

समझिये ज़िंदगी मेरी किसी झरने का पानी है
गँवारा है नहीं इसको ये,पल-भर भी ठहर जाए

बुलावे आ रहे हैं पत्थरों के शह्र से लेकिन
लिए शीशे का दिल कोई भला कैसे उधर जाए

तमन्ना हो सितारों की,तो नभ से तोड़ लाएगा
"जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए"

न जाने कौन-सी सम्मोहिनी-जादू है उसके पास
हवा तक भूल जाती है दिशाएँ, वो जिधर जाए

वो सारे मान बैठे क़ामयाबी को नसीब उसका
उगे जो पाँव पर छाले,वहाँ किसकी नज़र जाए

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नादिर ख़ान


कभी तो बात ऐसी हो, जो हर दिल में उतर जाये
ये कडुवाहट निकल जाये तो बिगड़ी भी संवर जाये

शिकायत का पुलिंदा है मेरे अंदर तेरे अंदर
सहेगा बोझ कैसे दिल कहीं ये भी न मर जाये

न कर प्यारे मुझे तू तोड़ने की इस कदर कोशिश
कहीं ऐसा न हो मैं सब्र कर लूँ तू बिखर जाये

कहीं बंज़र ज़मीनें हैं कहीं सूखी हुयी नदियाँ
यही आलम नज़र आये जहाँ तक भी नज़र जाये

बहुत चाहा तुम्हें हमने बहुत माँगा तुम्हें रब से
मगर शर्तों पे जीने से मेरा सपना न मर जाये

मेरी फितरत बदलने की बड़ी कोशिश तू करता है
अगर खुद को बदल ले तू तेरी किस्मत संवर जाये

इधर देखूँ उधर देखूँ जिधर देखूँ वहीं तू है
दवा कोई मुझे दे दो नशा मेरा उतर जाये

फिरे हूँ मारा मारा मैं, मुझे तौफीक दे या रब
जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाये

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rajesh kumari


तेरी फ़ुर्कत में टूटा दिल न जाने कब बिखर जाए
मुहब्बत में तेरी प्यासा कहीं घुट- घुट न मर जाए

तगाफ़ुल से अगर यूँ ही इसे करते रहे खाली
मुक़द्दस उन्स का प्याला शरारों से न भर जाए

सभी कहते तेरे गम में हुआ बर्बाद दीवाना
तख़य्युल में तुझे देखूँ जिधर मेरी नजर जाए

भरा तेज़ाब इस में है फ़सुर्दा हो रहे हैं गुल
इन आँखों के बगीचों में न ये पानी ठहर जाए

खुदा हो ये गलत फ़हमी कि वो नाराज़ है मुझसे
करे इकरार उल्फ़त का मुकद्दर फिर सँवर जाए

फ़लक तक रास्ता होता जहाँ दो रूह मिल जाती 

जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए

कजा आई मुझे वो ले गई चुपचाप कब कैसे
कसम खाओ मेरे यारों न उसतक ये खबर जाए

मुझे है फिक्र उसकी इस जहाँ को छोड़ने पर भी
खबर पाकर कहीं मेरी न हद से वो गुजर जाए

उसे बस रास आ जाए नया साहिल मेरा अब क्या
नहीं मैं चाहता उस तक मेरे गम की लहर जाए

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Anuj

वो मारे कोह पर तेशा कि सहरा में बिखर जाए
जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए

यूँ तो हर दो कदम पर हैं यहाँ अब मैकदे लेकिन
वो मस्ती है कहाँ जो रूह में गहरे उतर जाए

यहाँ तो छोड़ दे साक़ी अदब और क़ायदे की बात
पिया जिसने यहाँ वो मै को छलकने किधर जाए

यूँ ही गुमनाम क्या जीना यूँ ही गुमनाम क्या मरना
वही इंसान है जो कोई अच्छा काम कर जाए

लहू की मेरे कीमत कुछ नहीं है ऐ मेरे गुलशन
लहू से सींच कर जो तेरी रंगत कुछ निखर जाए

__________________________________________________________________________________

Ahmad Hasan


मुबारक वलवला जिस शख़्स के जी में उतर जाए ।
उसे तौफ़ीक़ हो ऐसी, नुमायां काम कर जाए ।

सराबों में हो गुम ,सहरा में फिरते फिरते मर जाए ।
बता ऐ जुस्तुजू ए यार दीवाना किधर जाए ।

इधर जाए ,उधर जाए ,नज़र जाए, जिधर जाए ।
जिसे हो जुस्तुजू अपनी वो बेचारा किधर जाए ।

ज़रा सोचो दिले आशिक़ पे उस दम क्या गुज़रती है
कि दिलबर आए ,बैठे ,कुछ न बोले ,उठ्ठे घर जाए ।

ज़हे उस चाँद से मुखड़े पे नर्म आँचल का आ जाना
लगे है यूँ कि जूं शफ़्फ़ाफ़ बादल में क़मर जाए ।

रुखे रोशन पे अफ्शां की चमक ऐसे बिखरती है
शुआए शम्स जूं हीरे से टकराकर बिखर जाए ।

चराग़े सुब्ह है ,बस सांस आती और जाती है
भला कैसे ये अहमद के मसीहा तक ख़बर जाए ।

________________________________________________________________________________

सतविन्द्र कुमार


खड़े होकर रहे हैं सोच ऐसे ही किधर जाए
कि मिलता है सभी को छल बिना सोचे जिधर जाए।

सभी मशरुफ दिखाई दें खज़ाने की इबादत में
"जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए"।

गलत है अब गलत कहना गलत को ही सुनो भाई
गलत का ही सभी पर बस अभी फैला असर जाए।

मिटा दे जो दिलों से सब बसी हैं जो ये नफ़रत सी
नहीं ऐसे फ़रिश्ते पर किसी की भी नजर जाए।

यही है बस दुआ दिल से अब प्यारे वतन में भी
बुराई के सभी मंजर कि बस टूटे बिखर जाए।।

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अजीत शर्मा 'आकाश'

जो कर दें सचबयानी हम तो हर चेहरा उतर जाए ।
अगर टुकड़े दिखायी दें तो कुत्ता दौड़कर जाए ।

हमेशा ये ही तो बस कोशिशें रहती हैं तूफ़ां की
ज़माने की क़रीने से सजी हर शै बिखर जाए ।

सताने पर तुली है ज़िन्दगी इस दौर में इतना
कहीं ज़िन्दा बने रहने की ख़्वाहिश ही न मर जाए ।

बताना तो ज़रा सूरज भला क्या तेरा बिगड़ेगा
अगर कुछ रौशनी आँगन में मेरे भी बिखर जाए ।

मुहब्बत होती थी पहले मगर अब तो तिजारत है
ज़रूरी है कि अब हर एक दीवाना सुधर जाए ।

भले दुश्वार कितनी भी हो, मंज़िल तो मिलेगी ही
मगर ये शर्त है दीवानगी हद से गुज़र जाए ।

ज़रा ऐ ज़िन्दगी इस प्रश्न का उत्तर तो देती जा
[[जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए]]

_________________________________________________________________________________

sagar anand

मेरी आंखों के आंगन में, कोई दरिया उतर जाये
मेरी पलकों के शीशे में, कोई सूरत सॅंवर जाये

मुहब्बत की तिजारत में, नफ़ा नुकसान क्या सोचूं
मुहब्बत है तो दुनिया है, यही मौसम उधर जाये

वही चेहरा, वही लज्जत, वही खुशबू तबस्सुम की
जिसे हो जुस्तजू तेरी, वो बेचारा किधर जाये

जहां रिश्ता हो पत्थर सा, वहां थमना ठहरना क्या
जहां रिश्तों में जुंबिश हो, वहीं रिश्ता ठहर जाये

ख़बर की खुशनुमाई तो, मिजाजे-मुश्क जैसा है
जहां ख़ामोश हैं ख़बरें, वहां तक भी ख़बर जाये

तेरा जाना अगर लाज़िम, न रोकेंगे तुम्हें लेकिन
तुम्हें देखूं, तुम्हें देखूं जहां तक ये नजर जाये

तुम्हारे प्यार में ‘सागर‘, बहुत मदहोश रहते हैं
अजी अब होश का आलम, जहां जाये जिधर जाये

__________________________________________________________________________________

मोहन बेगोवाल


न हो तेरी नजर में तो बता कैसे संवर जाए।
ये डर उसको सताता है न राहों में बिखर जाए।

चलो हम भी मिले उनको कोई ऐसा बहाना कर,
ख्यालों में सही पर जिंदगी भर तक असर जाए।

कहाँ रहता हमारे दिल तलाशें भी कहाँ उसको,
रहा जो दूर आँखों से उसे भी तो खबर जाए।

इसी दुनिया कि हम तो हैं हमारा भी कोई होगा,
“जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए।

करे जब हम तैयारी इस जहाँ को छोड़ जाने की,
रहे ये सिलसिला तब याद या फिर साथ मर जाए।

__________________________________________________________________________________

दिनेश कुमार


मिले किरदार जैसा भी, निभा उसको, गुज़र जाए
कहानी सिर्फ़ इतनी है, बशर आए, बशर जाए

लो मैं अपना सफ़ीना खुद भँवर को सौंप देता हूँ
तमाशा देखने वाले से कह दो....अपने घर जाए

जो अपने बाज़ुओं को वक़्त पर पतवार कर लेगा
भला उस नाख़ुदा से कोई तूफ़ाँ क्यों न डर जाए

निदामत में ...बहा आँसू ....मैं दरिया भी बना डालूँ
बशर्ते बोझ पापों का बस इतने से उतर जाए

रखे अंकुश हुकूमत पर, करे चोरों को बे-पर्दा
न हो तलवार से ऐसा, क़लम वो काम कर जाए

भरी महफ़िल में उनके झूट से पर्दा उठाना है
ख़ुदाया ऐन मौके पर मेरी हिम्मत न मर जाए

न कोई नक़्श-ए-पा दिखता, न कोई रहगुज़र दिखती
' जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए '

__________________________________________________________________________________

dilbag virk


इसी से क्या पता बदहाल दुनिया कुछ संवर जाए
दुआ करना सदा तुम, दूर तक इसका असर जाए ।

वफाओं के बिना कैसे उगे खेती मुहब्बत की
दिखे वीरानगी यारो, जहां तक भी नज़र जाए ।

न अंदर की ख़बर है, सब करें बस बात बाहर की
जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए ।

लड़ा हालात से जो, जीत उसको ही मिली हर बार
डराती ही रहे दुनिया उसे, जो शख्स डर जाए ।

बड़ा लम्बा सफ़र है ज़िन्दगी का, कब कटे यूं ही
मुहब्बत की ख़ुमारी चार ही दिन में उतर जाए ।

बड़ी उम्मीद से जब राह तकती हों कई आँखें
बताओ 'विर्क' कैसे कोई खाली हाथ घर जाए ।

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sunanda jha

जिसे तक़दीर ठुकरा दे कहो वो किस डगर जाए ।
मिलें रुसवाइयां ही फिर जहाँ में वो जिधर जाए ।

करे लाखों जतन खुद से नहीं वो जीत पाएगा ।
उलझकर द्वन्द्व में उसका बचा जीवन गुजर जाए ।

गमों को बांटने वाला ,हमेशा साथ है अपने ।
जिसे हो जुस्तजू अपनी वो बेचारा किधर जाए ।

न तोड़ो इस कदर दिल को ,नहीं फिर जोड़ना मुमकिन ।
समेटें किस तरह दिल को जमीं पर जो बिखर जाए ।

मिले जो जख्म अपनों से नहीं फिर ठीक होते है ।
लगाओ लाख मरहम भी नहीं उसका असर जाए ।

यही है आरजू मेरी पिला तब तक मुझे साकी ।
जहर बन खून में मेरे न जब तक मय उतर जाए ।

नहीं मिलता कभी मोती हजारों 'सीप' भी ढूंढो ।
गिरे इक बूँद स्वाती की बने मोती निखर जाए ।

__________________________________________________________________________________

Manoj kumar Ahsaas

तेरी बाँहों में दम निकलें तेरे क़दमों में मर जाये
बता ये आरज़ू लेकर ये दीवाना किधर जाये

मेरी तरसी निगाहों को तड़पता देखकर सोचो
जिसे हो ज़ुस्तज़ु तेरी वो बेचारा किधर जाये

ज़माना बेबसी चाहत सितमगर तेरी सौ बातें
मेरे अहसास ऎसे वक्त में कैसे संवर जाये

फ़साना आखिरी दम पर अभी तक कशमकश जारी
तेरे दिल में उतर जाये या फिर दिल से उतर जाये

न तेरी आँख में मैं हूँ न मेरी धड़कनों में तुम
बहुत चुपके से अब जीवन के बाक़ी दिन गुजर जाये

_________________________________________________________________________________

मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

 

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मोहतरम जनाब राणा साहिब , ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक ७० के संकलन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ----- ग़ज़ल के शेर नंबर ७  और १० के   ऊला मिसरे संशोधित करने की ज़हमत करें --

नंबर ७ --------हुनर यह सिर्फ हासिल है मुहब्बत करने वालों को

नंबर १० ------गया मुल्के अदम जो वह मिले भी किस तरह यारो                                                                        

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2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी, समयाभाव के चलते निदान न कर सकने का खेद है, लेकिन आदरणीय अमित जी ने बेहतर…"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. ऋचा जी, ग़ज़ल पर आपकी हौसला-अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. लक्ष्मण जी, आपका तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमीरुद्दीन अमर जी, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
2 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमीर जी, आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद आपको।"
2 hours ago

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