For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-74

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 74 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब शकील "बदायूँनी" साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
" ये सहर भी रफ्ता रफ्ता कहीं शाम तक न पहुंचे "

फइलातु     फाइलातुन   फइलातु    फाइलातुन

1121            2122       1121        2122

(बह्र:  रमल मुसम्मन् मशकूल )
रदीफ़ :- तक न पहुंचे 
काफिया :- आम (शाम, बाम, अवाम, पयाम आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 अगस्त दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 14489

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

किन्तु इस बह्र की और ग़ज़लों में भी पहले दो अरकान में ये छूट है  इस लिए ये शकील जी के मिसरे सही हैं | मैं ही  गलत  थी |

आद० गिरीराज जी ,मेरी ग़ज़ल को इस तरह पढ़ें --वैसे संकलन के वक़्त ही ठीक करवाऊँगी 

कई ख़ार रोकते हैं, कि निज़ाम तक न पंहुचे

कोई बात मुफ़लिसी की है पयाम तक न पंहुचे

 

वो लिखें तो क्या लिखेंगा ,जो लिखा तो फ़ायदा क्या

जो मफ्हूम उस ग़ज़ल का ,तो अवाम तक न पंहुचे

 

वो हुजूम अब्र रक्साँ, वो किसान डर रहा है

कहीं जेब में फसल का कोई दाम तक न पंहुचे

 

हुआ लाल जो समंदर तभी मुड़ गया मछेरा

डरे सोचकर कि वापस कभी बाम तक न पंहुचे

 

करे रात दिन तपस्या डरे मन में वो खिलाड़ी

कहीं लिस्ट में सिफ़ारिश बिना नाम तक न पंहुचे

 

यही सोच के सिहरता  मेरी जीत का उजाला

ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पंहुचे 

 

वो खिज़ां को देख इक दिन, मेरा डर गया बुढ़ापा  

कहीं  हाथ अब किसी दिन, मेरा जाम तक न पंहुचे

-----------------मौलिक एवं अप्रकाशित 

मुझे इश्क़ है तुझी से मेरी जान-ए-ज़िन्दग़ानी

तेरे पास मेरा दिल है, मेरे प्यार की निशानी ..

पुरानी फ़िल्म ’उम्मीद’ में रफ़ी साह्ब का ये गीत गाते जाइये, ग़ज़ल होती जायेगी.. :-))

 

जी सही कह रहे हैं इसी बह्र पर बहुत बहुत अच्छे अच्छे गीत हैं इस बह्र पर पहले भी मुशायरे में ग़ज़ल कही है किन्तु सच में इस बार कई ग़ज़लों में उलझे होने के कारण ये गलती हुई है जो नहीं होनी चाहिए थी |खैर अब हो गई तो हो गई 

दूसरी संशोधित रचना को भी पोस्ट करे बिना चैन नहीं मिल रहा था सो आद० गिरिराज जी के प्रतिउत्तर में पोस्ट कर दी जो संकलन के वक़्त ही प्रतिस्थापित हो पायेगी |

जी सही कहा आपने आदरणीया, एक ही साधे सब सधे.. 

:-))

अच्छी तरकीब बताई आपने जनाब ।

हा हा हा.. शुक्रिया आदरणीय समर साहब. जाने कैसे एकदम से याद आ गया यह गीत..

:-))

 

बहुत अच्छा गीत है, लेकिन ये शायद फ़िल्म का नहीं ।

हुज़ूर, ये फ़िल्मी गीत ही है. फ़िल्म ’उम्मीद’ का, जो १९६२ में आयी थी. शकील बदायूँनी के लिखे गीत को रवि ने संगीत दिया था. इसके हीरो जॉय मुकर्जी थे. हेरोइन शायद नन्दा थीं, या कोई और पूरी तरह से याद नहीं आ रहा है. 

जी,जानकारी देने का शुक्रिया,में इसे ग़ैर फ़िल्मी गीत समझा था ।
तरकीब कारगर है सर। मेरा अनुभव है। मैंने भी एक गीत को ध्यान में रख कर ही अब की बार कोशिश की थी। गीत था

तेरे प्यार की तमन्ना, ग़म-ए-जिंदगी के साये
बड़ी तेज आँधियाँ हैं, ये चिराग बुझ ना जाये

है अजीब दास्तां कुछ ये हमारी दास्तां भी
कभी तुम समझ ना पाये, कभी हम सुना ना पाये
इस बह्र में गीत तो बहुत से मिल जायेंगे, शकील साहिब के ही बहुत से गीत हैं ,'राह गर्दिशों में हर दम मिरे इश्क़ का सितारा,फ़िल्म दो बदन' लेकिन आप ये आदत न डाल लीजियेगा ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
4 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहा सप्तक. . . . . मित्र जग में सच्चे मित्र की, नहीं रही पहचान ।कदम -कदम विश्वास का ,होता है…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर,…"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"गीत••••• आया मौसम दोस्ती का ! वसंत ने आह्वान किया तो प्रकृति ने श्रृंगार…"
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आया मौसम दोस्ती का होती है ज्यों दिवाली पर  श्री राम जी के आने की खुशी में  घरों की…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली अपने थीम के अनुरूप ही प्रस्तुत हुई है.  हार्दिक बधाई "
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी दोहावली के लिए हार्दिक धन्यवाद.   यह अवश्य है कि…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी प्रस्तुति आज की एक अत्यंत विषम परिस्थिति को समक्ष ला रही है. प्रयास…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service