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कथा पसंदगी के लिए आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
मेरे कहे को मान देने के लिए आभार. पुनः विलम्ब से आया हूँ सादर
कथा पर आपकी उपस्स्थिति और पसंदगी के लिए आभार आदरणीय पंकज जोशी जी
आपका आभार आदरणीय नीता कसार जी
आदरणीय मीना जी आप की लघुकथा शुरू से ही पाठकों को जिज्ञासा में बंधे रखती है. बीच में कई सवाल पैदा करती हुई आगे बढाती है. साथ ही बिच में विरोधाभास का आभास करती हुई अंत में जबरदस्त प्रहार के साथ खत्म हो जाती है. पाठक कुछ सोचता हुआ महसूस करता है. इस मायने में आप की लघुकथा बहुत ही मार्मिक हुई है. बधाई इस उम्दा लघुकथा के लिए. मगर इस विरोधाभास पर मन अटक गया है- लोग क्या कहेंगे सोचने वाली लडकी आसानी से बाँहों में चली गई.
आदरणीय om prakash जी आपने मेरी कथा का इतनी बारीकी से अवलोकन किया , इसके लिए मै आपकी आभारी हूँ I आपने जो विरोधाभास का बिंदु उठाया है -' लोग क्या कहेंगे सोचने वाली लड़की आसानी से बाहो में आ गयी ' ये पंक्ति मैंने लड़के के रोड पर फ़िल्मी स्टाइल में बैठ कर उसके हाथ पकड़ माफ़ी मांगने के नाटकीयता के लिए किया है रहा सवाल लड़की के बाहो में जाने का तो वह पुराने प्रेम के वशीभूत हो गयी थी जैसा अक्सर होता है आभार सहित
कथा पसंदगी के लिए आभार आदरणीय राजेंद्र कुमार गौर जी
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