आदरणीय सदस्यगण 85वें तरही मुशायरे का संकलन प्रस्तुत है| बेबहर शेर कटे हुए हैं, और जिन मिसरों में कोई न कोई ऐब है वह इटैलिक हैं|
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Samar kabeer
पहुँची हमारे ग़म की हिकायत कहाँ कहाँ
बरसी है आसमान से रहमत कहाँ कहाँ
फ़रमान बादशाह का जारी तो हो गया
अब देखना है होगी बग़ावत कहाँ कहाँ
आओ तलाश करते हैं मिल जुल के दोस्तो
बैठी हुई है छुप के ये नफ़रत कहाँ कहाँ
मारी है लात आपने हातिम की क़ब्र पर
मशहूर आपकी है सख़ावत कहाँ कहाँ
तूने तो झूट बोलना शैवा बना लिया
करता फिरूँगा तेरी वकालत कहाँ कहाँ
अटका हुआ है काम कई साल से मेरा
देना पड़ेगी बोलिये रिश्वत कहाँ कहाँ
कुछ आख़िरत की सोचिये,ये फ़िक्र छोड़िये
"ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ"
गौशा नशीन हूँ मैं "समर" कुछ ख़बर नहीं
फैली हुई है आपकी शुहरत कहाँ कहाँ
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Tasdiq Ahmed Khan
पूछो न आज़माई है क़िस्मत कहाँ कहाँ |
की उनको मैं ने पाने की हसरत कहाँ कहाँ |
टूटी है क्या बताएँ क़ियामत कहाँ कहाँ |
अफ़सोस ले गई मुझे उल्फ़त कहाँ कहाँ |
दिल कोसुकून तुमसे बिछड़के न मिल सका
बहलाई यूँ तो मैं ने तबीयत कहाँ कहाँ |
आँखों को अश्क मिल गये दिल ग़म से भर गया
की है किसी ने चश्मे इनायत कहाँ कहाँ |
वो दोस्ती का हो या मुहब्बत का मसअला
करने लगे हैं लोग तिजारत कहाँ कहाँ |
यह सोच कर वो छोड़ गये मेरा साथ भी
ले कर चलेंगे साथ मुसीबत कहाँ कहाँ |
राहे वफ़ा पे चल के हुआ है ये तज्रबा
यह ग़म कहाँ कहाँ यह मुसर्रत कहाँ कहाँ |
देखो तो आ के मेरा जिगर और दिल कभी
खाए हैं मैं ने ज़ख़्मे मुहब्बत कहाँ कहाँ |
पहले किसी हसीन से दिल तो लगाइए
फिर देखिए है ग़म में लताफत कहाँ कहाँ |
मेरा यक़ी न आए तो ख़ुद दिल से पूछ लो
तुम ने चलाए खन्जरे नफ़रत कहाँ कहाँ |
तस्दीक़ जिसकी बॅज़्म में खोले न लब कोई
उसकी करेंगे आप शिकायत कहाँ कहाँ |
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
वामन सी रखती पाँव सियासत कहाँ कहाँ
बोती है नाम धर्म के नफरत कहाँ कहाँ।1।
नेता के साथ लोग भी बाँटे हैं रंजिशें
शायर निभाए यार मुहब्बत कहाँ कहाँ।2।
हाकिम हमारी बात से दो चार तू न हो
बेकार खुद भी देख निजामत कहाँ कहाँ।3।
गुजरी हो जिनकी उम्र ही अखलात देखते
रकअत लिए न जानते सीरत कहाँ कहाँ ।4।
हूशों भरा जहान है समझा करो नदीम,
देते फिरोगे आप वजाहत कहाँ कहाँ ।5।
मंजिल की गर तलाश है तदवीर भी तो रख
देगी सदा ही साथ ये किस्मत कहाँ कहाँ।6।
हाकिम बने थे बोल के अच्छे दिनों की बात
देखो है उनके राज में बरकत कहाँ कहाँ।7।
हर आँख नम जहान में है तो ये परखिए
"ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ "।8।
मुझको सिवा खुदा के कोई जानता नहीं
मागूँ भला मैं और शफाकत कहाँ कहाँ।9।
जर्जर हुई है डोर ये रिश्तों की हर तरफ
दूँ भी अगर तो बोल मतानत कहाँ कहाँ।10।
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Majaz Sultanpuri
मैंने तलाश की है मोहब्बत कहाँ कहाँ
करवाएगी ये ज़िन्दगी हिजरत कहाँ कहाँ
देखा तो उसको पाया रागेजां के आस पास
मैंने तलाश की थी हक़ीक़त कहाँ कहाँ
इंसानियत का फ़र्ज़ निभाने के वास्ते
रब ने करी है तुमको नसीहत कहाँ कहाँ
जुल्मत कदाए जहलो हसद में हुजूर आप
दिखलाइयेगा अपनी शराफत कहाँ कहाँ
करते नहीं हैं घर के बुज़ुर्गों का एहतिराम
कर आए है जनाब ज़ियारत कहाँ कहाँ
फहमो क़यास पर हैं फ़क़त आदमी की सोच
आलम में होगी उसकी हुक़ूमत कहाँ कहाँ
तेरे सिवा किसी को न माबूद कह सका
एक जान है करेगी इबादत कहाँ कहाँ
धरती को बांटने का नतीजा तो देखिये
सरहद पे हो रही हैं शहादत कहाँ कहाँ
देखेंगे हम भी दोस्तों ज़िंदा रहे अगर
उठती है उनकी चश्मे इनायत कहाँ कहाँ
बिखराए हैं बिखेरने वाले ने सोच कर
ये ग़म कहाँ कहाँ हैं मसर्रत कहाँ कहाँ
हिर्सो हवस का दौर है ये सोचिये "मजाज़"
जाएँगे आप लेके शिकायत कहाँ कहाँ
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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)
करवा रही है जिंदगी हिज़रत कहां-कहां ।
होने लगी है आपकी सोहरत कहां-कहां ।।
मातम कुना है कोई तो है कोई शादमा ।
ये ग़म कहां-कहां ये मसर्रत कहां कहां ।
सुनता नहीं है कोई मगर फिर भी दोस्तों ।
नासेह कर रहा है नसीहत कहां-कहां ।।
मिलते कहां हैं ये तो बता दो मेरे हजूर ।
ये ग़म कहां-कहां ये मुसर्रत कहां-कहां ।।
पैरिस में ढून्ढ़ते हो कि लन्दन में मेरे दोस्त ।
बिखरी पड़ी है इल्म की दौलत कहां-कहां ।।
ठुकरा दिया था तुमने रहे जीस्त में जिसे ।
ढूंढ़ोगे अब वो दोस्त मोहब्बत कहां-कहां ।।
मंदिर में मस्जिदों में कलीसा में देखलो ।
करते हैं लोग रब की इबादत कहां कहां ।।
इन्साफ मिल न पायेगा इस दौर में कभी ।
करते फिरेंगे आप शिकायत कहां कहां ।।
मासूम बेबसों पे सितम ढ़ा रहे हैं जो ।
दिखलाऐंगे वो अपनी सुजाअत कहां कहां ।।
खुशियाँ भी साथ ले लो ग़मे ज़िन्दगी के साथ ।
पड़ जाये तुमको इसकी जरुरत कहां कहां ।।
सोचा है इसके बारे में 'गुलशन' तमाम रात ।
नफरत कहां-कहां है मोहब्बत कहां-कहां ।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
ढूँढूँ भला खुदा की मैं रहमत कहाँ कहाँ,
अब क्या बताऊँ उसकी इनायत कहाँ कहाँ।
सहरा, नदी, पहाड़, समंदर ये दश्त सब,
फैली हुई खुदा की ये वसअत कहाँ कहाँ।
हर सम्त हर तरह के दिखे उसके मोजज़ा,
जैसे खुदा ने लिख दी इबारत कहाँ कहाँ।
सावन में शब्जियत से है सैराब हर फ़िज़ा,
खुर्शद करूँ इलाही तबीअत कहाँ कहाँ।
कोइ न जान पाया खुदा की खुदाई को,
*ये गम कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ।*
अंदर जरा तो झाँकते अपने को भूल कर,
बाहर खुदा की ढूँढते सूरत कहाँ कहाँ।
रुतबा-ओ-जिंदगी-ओ-नियामत खुदा से तय,
फिर बैल सी करे क्यों मशक्कत कहाँ कहाँ।
इंसानियत अता तो की इंसान को खुदा,
फैला रहा तु देख वो दहशत कहाँ कहाँ।
कहता 'नमन' कि एक खुदा है जहान में,
क्या फर्क कैसे उसकी इबादत कहाँ कहाँ।
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Naveen Mani Tripathi
लेंगे हजार बार नसीहत कहाँ कहाँ ।
बाकी अभी है और फ़जीहत कहाँ कहाँ ।।
चलना बहुत सँभल के ये हिन्दोस्तान है ।
देगा कोई किसी को हिदायत कहाँ कहाँ ।
मजहब कोई बड़ा है तो इंसानियत का है ।
पढ़ते रहेंगे आप शरीयत कहाँ कहाँ ।।
वादा किया हुजूर ने बेशक चुनाव में ।
यह बात है अलग कि इनायत कहाँ कहाँ ।।
बदलेंगे लोग ,सोच बदल दीजिये जनाब ।
रक्खेंगे आप इतनी अदावत कहाँ कहाँ ।।
ईमान बेचता है यहाँ आम आदमी ।
करते रहेंगे आप हुकूमत कहाँ कहाँ ।।
कैसे रिहा हुआ है यही पूछते हैं सब ।
होती है पैरवी में किफ़ायत कहाँ कहाँ ।।
है देखना तो देखिए मुफ़लिस की जिंदगी ।
मत देखिए हैं लोग सलामत कहाँ कहाँ ।।
सहमा हुए हैं चोर हकीकत ये जानकर ।
आएगी इक नज़र से कयामत कहाँ कहाँ ।।
हालात देख के वो समझने लगे हैं सब ।।
ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ "।।
चोरों को भी तलाश है ईमानदार की ।
ढूढा ज़मीर में है सदाक़त कहाँ कहाँ ।।
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rajesh kumari
किस्मत कहाँ कहाँ ये मशीयत कहाँ कहाँ
ले जाए इक बशर को जरूरत कहाँ कहाँ
फ़ुरक़त में या विसाल में उल्फत कहाँ कहाँ
ये इश्क में रुलाए मुहब्बत कहाँ कहाँ
फिरता है दर बदर ये बशर पेट के लिए
उसको नचाए जीस्त में दौलत कहाँ कहाँ
अन्याय के ख़िलाफ़ सभी लामबंद हैं
खिलक़त करे है आज बगावत कहाँ कहाँ
बलवाइयों ने छीन लिया चैन देश का
कायम है आज देखिये वहशत कहाँ कहाँ
मक्कारियों के आज समंदर हैं चार सू
ढूँढें बताओ आज शराफत कहाँ कहाँ
मासूम हैं सलीब पे हैवान मस्त हैं
इन्साफ में है आज ये गफ़लत कहाँ कहाँ
किस्मत से नातवानी जमाने से बेरुखी
पाता है इक गरीब जलालत कहाँ कहाँ
अच्छे बुरे करम से खुदा बांटता फकत
ये गम कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ
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munish tanha
आई नज़र वो चाँद सी सूरत कहाँ कहाँ
फैली हुई है प्यार की दौलत कहाँ कहाँ
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गम साथ आदमी के हुए धूप की तरह
विश्वास प्रेम खा गयी वहशत कहाँ कहाँ
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ये कर्म का हिसाब है क्यूँ आदमी डरे
धोखा निगल गया है शराफत कहाँ कहाँ
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जब जिन्दगी की रात हुई तब समझ पड़ी
ये गम कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ
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ये दौर आज का लगे कितना भला मगर
मालूम है तुम्हें की है दहशत कहाँ कहाँ
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तुम लूट कर चले हो अगर चैन सोच लो
फिर ढूँढ़ते फिरोगे मसर्रत कहाँ कहाँ
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सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'
देता फिरेगा शौक को दावत कहाँ कहाँ ।।
ढायेगा तेरा हुस्न क़यामत कहाँ कहाँ।।
थोड़ा तो कर लिहाज़ तू अपनी जुबान की
यू टर्न से चलेगी सियासत कहाँ कहाँ।।
मिलते वफ़ा के बदले यहाँ ग़म हज़ारहा
भटकेगी दर ब दर ये शराफ़त कहाँ कहाँ।।
आती हैं बालपन की हसीं यादें उम्र भर
मत पूछ हमने की थी शरारत कहाँ कहाँ।।
मैं अब तलक समझ नही पाया इसे ख़ुदा
*ये गम कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ*।।
क्या फायदा सभी से ये कहने का दोस्तों
दिल पर हुई है मेरे अज़ीयत कहाँ कहाँ ।।
अत्फाल के गुनाह पे पर्दा न डालिये
वर्ना करेंगे उनक़ी वक़ालत कहाँ कहाँ।।
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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
कैसे कहूं कि है ये इनायत कहाँ कहाँ ?
ढाई है कितनी बार कयामत कहाँ कहाँ ?
उसमे वफ़ा का रंग तो रंगे जफा भी है
करता फिरूं मैं इसकी शिकायत कहाँ कहाँ ?
नफरत के साथ-साथ मसर्रत भी है अगर
ढाये न फिर गजब ये मुहब्बत कहाँ कहाँ
शोला भड़क रहा है तो शबनम भी है बिछी
बांटा करूं मैं दिल की मुसीबत कहाँ कहाँ
वहशत में थी कभी अभी दहशत में जान है
बहला चुका नहीं मैं तबीअत कहाँ कहाँ
आऊँ मैं बाज या कि भरोसा करूं अभी
मैं गर्क भी करूं तो ये गफलत कहाँ कहाँ
हैरान हूँ, चुप हैं सभी, मैंने कहा न कब
ये गम कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ
उसके निजाम पर मुझे हो किस तरह यकीं
है बांटता जहान में रहमत कहाँ कहाँ
दौलत हजार सिम्त बदौलत उसी के है
देखोगे उस हसीन की जीनत कहाँ कहाँ
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D.K.Nagaich 'Roshan'
नफ़रत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ,
वहशत कहाँ नहीं है नियामत कहाँ कहाँ ।
मेरी दुआओं को वो करेगा कुबूल अब,
उसको पता है की है इबादत कहाँ कहाँ ।
महफ़ूज़ अपने दिल में कोई रखता क्यूं नहीं,
भटकेगी दश्तो-सहरा में चाहत कहाँ कहाँ,
शाहिद हैं मेरी साँसें वतन के ही वास्ते,
कितने सुबूत लेगी शहादत कहाँ कहाँ ।
हमने तो ख़ुद को वक़्त के ही कर दिया सुपुर्द,
ग़म दे हमें या कितनी मसर्रत कहाँ कहाँ ।
अब इख़्तियार ख़ुद पे मेरा ही नहीं रहा,
ले जाये ज़िन्दगी की ज़रूरत कहाँ कहाँ ।
सबको ख़बर है आपके क़िरदार की हुज़ूर,
करते हैं आप कितनी तिजारत कहाँ कहाँ ।
मुझको तो मेरे इश्क़ ने सब कुछ भुला दिया,
*ये ग़म कहां कहां ये मसर्रत कहां कहां* ।
रोशन सहर तलाश रही है तुझे मगर,
करते हैं ये अँधेरे सियासत कहाँ कहाँ ।
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Nilesh Shevgaonkar
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उलझी हुई है दिल की तबीयत कहाँ कहाँ
करता फिरे है मेरी शिकायत कहाँ कहाँ.
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जो मौत से मिला वो कहाँ ज़ीस्त दे सकी
हम भी तलाशते थे मुहब्बत कहाँ कहाँ.
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ज़िन्दा समझ के जिस्म को भटके हैं उम्र भर
ले कर फिरे हैं अपनी ही मैय्यत कहाँ कहाँ
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तोडा है तुम ने यूँ कि ये जुड़ता नहीं कहीं
करवा चुके हैं दिल की मरम्मत कहाँ कहाँ
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वाइज़ मेरी नज़र से कभी मैकदे को देख
और देख कर बता कि है जन्नत कहाँ कहाँ
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दिल के गुलाम हो के ही हम जान पाये हैं
इस मुश्त भर की शय की है वुसअत कहाँ कहाँ.
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ख़ालिक़ बता कि तूने छुपाये हैं ज़हन में
“ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ”
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दरबार देख कर ही समझ पाये नूर जी
घुटनों पे रेंगती है सहाफत कहाँ कहाँ.
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अजय गुप्ता
जंगल, नदी व झील व पर्वत कहाँ कहाँ
कुदरत उतार लाई है जन्नत कहाँ कहाँ
रब ने नवाज़ रक्खी है किस्मत कहाँ-कहाँ
भटकी मगर बशर की है चाहत कहाँ-कहाँ
झरने से पानी झर रहा लगता है दूध सा
शक्कर बिना ही मीठा है शर्बत कहाँ-कहाँ
हीरे हैं कोयले में गुहर सीप में मिले
कुदरत छुपा के रखती है दौलत कहाँ कहाँ
छलनी हुई है हल से मगर फ़स्ल दी हमें
धरती की हम गिनेंगे स'आदत कहाँ कहाँ
नदियां सुखा दी, काट के जंगल मिटा दिए
इंसान ने दिखाई है फ़ितरत कहाँ कहाँ
बारिश की बूंद को न सहेजा, था वक़्त पर
अब कतरे कतरे की है मशक्क़त कहाँ कहाँ
ज़ोरो-जबर से नोच के बेहाल कर दिया
उघड़ी पड़ी ज़मीन की इज़्ज़त कहाँ कहाँ
ज्वालामुखी फटेंगे, कि आयेंगें जलजले
ताक़त दिखाएगी हमें कुदरत कहाँ कहाँ
सब कुछ मिटाके बैठ गया सोचता है अब
ये गम कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ
सौ पेड़ काट कर चले हैं पौधा रोपने
आदत में रम गई है तिज़ारत कहाँ कहाँ
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Ravi Shukla
फैला हुआ है नूरे सदाक़त कहाँ कहाँ
बरसी है मेरे यार की रहमत कहाँ कहाँ
मालूम हो रहा है सियाक़े बयान से,
सज़दे किये है आपने हज़रत कहाँ कहाँ।
अफ़सोस इक गुरूर ने रुस्वा किया तुम्हें,
फिरते हो लेके तौके मलामत कहाँ कहाँ।
पहले तो वक्त को न किया आपने सलाम,
अब याद कीजिये थी हुकूमत कहाँ कहाँ।
हालात जो हुए हैं तगाफुल से आपके,
अब देखिये की होगी बग़ावत कहाँ कहाँ।
कोई हमें बताए ज़रा राहे इश्क़ में ,
वहशत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ ।
गुम हैं तुम्हारे इश्क़ में हमको पता नहीं,
अब है हमारे हाल की शुहरत कहाँ कहाँ।
इस दौर में ख़ुद अपने मुहाफ़िज़ बने रहो,
आ जाए कैसी शक्ल में आफ़त कहाँ कहाँ।
क्या जानिये कहाँ से ये इलज़ाम सर पड़े,
ग़ैरों पे आप की है इनायत कहाँ कहाँ।
पूछा है हर किसी ने यहाँ एक ही सवाल,
"ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ"।
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Chhaya Shukla
ठोकर उठाई मेरी शराफत कहाँ कहाँ |
तेरे लिए खरीदी अदावत कहाँ कहाँ |
पर तुम न हो सके मेरे मुझको ज़खम दिया
हँस हँस गले लगाई खलाअत कहाँ कहाँ |
वो कौन सी घड़ी थी जो मुझको भुला दिया
तेरे लिए उठाई नदामत कहाँ कहाँ |
मैंने चुना है प्रेम को पूजा किया सदा
तूने मुझे तो दी है हिक़ारत कहाँ कहाँ |
जो भी मिली उठाइये मत तौलिये हुजूर
"ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ "
दर पे खड़े हैं देर से मुझको गले लगा
वहशत कहाँ कहाँ है ये उल्फत कहाँ कहाँ |
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मोहन बेगोवाल
मिलती है दर्द की यहाँ दौलत कहाँ कहाँ।
मिलती है प्यार में भी शिकायत कहाँ कहाँ।
दुनिया बदल गई कोई हमको बता गया,
रखती है अब भी सोच वहशत कहाँ कहाँ।
कब आज कल बहार हमारे नसीब में,
चलती यहाँ भी तो है तिजारत कहाँ कहाँ।
ढूँढें कहाँ से वह भी न मिलता कभी हमें,
पाने को उस करी थी इबादत कहाँ कहाँ।
हम को लगा हमेश रहे साथ वो तिरा,
ये अब पता चला कि सियासत कहाँ कहाँ।
जब जिंदगी कि रंग मनाने को चल पड़े,
"ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहा""।
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Gajendra shrotriya
निकले हैं अश्क नदियों की सूरत कहाँ कहाँ
पिघले हैं तेरी यादों के पर्वत कहाँ कहाँ
फैली है तिश्नगी की निज़ामत कहाँ कहाँ
ऐ अब्र देख तेरी ज़रूरत कहाँ कहाँ
नदियाँ पहाड़ खेत बगीचे ये वादियाँ
बनके-संवरके बैठी है क़ुदरत कहाँ कहाँ
जो अब्र पर लिखे थे मुहब्बत के रंग से
पहुँचा दिए हवाओं ने वो ख़त कहाँ कहाँ
पीटर का घर हिना का बगीचा सिया की छत
कर लेते है परिंदे भी दावत कहाँ कहाँ
यायावरी पसंद नही है मुझे मगर
भटका रही है दिल की ये ख़लवत कहाँ कहाँ
दुश्मन हज़ार हैं तेरे गुलशन में ऐ कली
इक बागबाँ करेगा हिफ़ाज़त कहाँ कहाँ
ये जीस्त के सराब तू अब खुद समझ ऐ दिल
दूँगा भला मैं तुझको हिदायत कहाँ कहाँ
ख़ुशबू है फ़कत जायदाद गुल की और क्या
तक़सीम होगी उसकी ये दौलत कहाँ कहाँ
कोई बता दे जीस्त की राहों में मिलेंगे
ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ
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Gazala tabassum
महबूब की है होती हुकूमत कहाँ कहाँ
फिरती है हमको ले के मुहब्बत कहाँ कहाँ
अब सीखना पड़ेंगी ही चालाकियां हमें
रुस्वा करेगी वरना शराफत कहाँ कहाँ
महशर में पुलसरात या दुनिया की क़ब्र में
काम आती है ये देखिये दौलत कहाँ कहाँ
लपटें उठी थीं जो यहां नफरत के आग की
फैलेगी देखिये ये अदावत कहाँ कहाँ
सुनता नही है मेरी यहां कोई भी सदा
करते फिरेंगे हम ये शिक़ायत कहाँ कहाँ
पैदा किये हैं उसने अजूबे कई बड़े
मिलती नही है उसकी ये अज़मत कहाँ कहाँ।
दे दे खुदा मुझे भी कोई ग़मगुसार अब
ढ़ोती फिरूँ मैं अपनी ये अज़लत कहाँ कहाँ।
मैदाने इश्क़ में लिए फिरते हैं दर बदर
ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ।
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Abha saxena
दीनो ईमान की बता दौलत कहाँ कहाँ!
सच्चाई की चुकाई है कीमत कहाँ कहाँ!!
वादा खिलाफ लोगों की है मुझ को देखना!
होती है ऐसे लोगों की इज्ज़त कहाँ कहाँ!!
आतंक वाद मुल्क में आ कर ही बस गया!
कैसे करें शुमार है दहशत कहाँ कहाँ!!
कैसे पता करोगे तुम इन बेटियों का हश्र
किस किस के घर में और है वहशत कहाँ कहाँ
करके गुनाह बैठे हैं बे फ़िक्र जेल में!
पेशी कहाँ पे होगी वकालत कहाँ कहाँ!!
मैं ढूँढती हूँ खुशियाँ तो ग़म साथ आते हैं!
ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ!!
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शिज्जु "शकूर"
दिखने लगी है ज़ीस्त की सूरत कहाँ-कहाँ
बरसे है ऐ खुदा! तेरी रहमत कहाँ-कहाँ
खामोश होके बैठ गया अपने सहन में
घर से जो निकलूँ तो हो नदामत कहाँ-कहाँ
उफ़, क्या बताऊँ! किसके मुकाबिल ठहर गया
करनी पड़ेगी मुझको वज़ाहत कहाँ-कहाँ
इक सिलसिला शुरू हुआ ग़ारत का आजकल
बरपेगी क्या पता ये कयामत कहाँ-कहाँ
तेरी तरह से होना मुसीबत का है सबब
तू ही बता करूँ मैं शिकायत कहाँ-कहाँ
ऐ ज़िन्दगी बताऊँ कि तेरी तलाश में
रुसवा हज़ारहा हुई हसरत कहाँ-कहाँ
क्या जाने मुझको तेरी महब्बत दिखाएगी
“ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ-कहाँ”
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मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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जनाब राणा प्रताप सिंह जी आदाब,संकलन के लिए बधाई स्वीकार करें ।
जनाब राणा प्रतापसिंह साहिब , ओ बी ओ ला इव तरही मुशायरा अंक 85 के संकलन और कामयाब निज़ामत के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं I
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