आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 85 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-86
विषय - "भूख"
आयोजन की अवधि- 08 दिसंबर 2017, दिन शुक्रवार से 09 दिसंबर 2017, दिन शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो -08 दिसंबर 2017, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय बृजेन्द्र नाथ मिश्रा जी।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहतरीन अतुकान्त कविता,इस प्रस्तुति पर ढेरों बधाई स्वीकार करें ।
(भूख)
भूख-
जो कभी खत्म न हुई......
कभी माँ के आँचल से लगकर भूख मिटाई ,
तो कभी खिलौनों की दुकानों पर जाकर पेट भर लिया....
वस्ल और क़राबत की भूख ने तो,
मुझे अपनों से ही दूर कर दिया।।
बेनाम सी जिंदगी में,
अब भूख थी,
इक पहचान की................
रिफ़्अत के जोश में फिर ,
न फिक्र की ईमान की।।
दौलत थी बेशुमार पर-
किस पर लुटाता दोस्तों ?
चालीस की वो उम्र थी-
जब भूख थी सन्तान की।।
ताउम्र अपनी ही फिकर,
न दूसरों से वास्ता ।
महरूम हो गया था मुझसे,
बंदगी का रास्ता...
करता हूँ अब ज़कात -
गुनाह कुछ तो कम होगा मेरा।
है वक्त मुख्तसर -
मलक-उल- मौत आने में जरा।।
लेकर न आया था मैं कुछ,
और ना ही लेकर जाऊँगा ...
भूखा रहा हूँ उम्र भर,
भूखा ही मैं मर जाऊँगा ।।
क़राबत = नजदीकी
रिफ़्अत= बुलंदी
मलक-उल-मौत= मौत का फरिश्ता
(मौलिक व अप्रकाशित)
लेकर न आया था मैं कुछ,
और ना ही लेकर जाऊँगा ...
भूखा रहा हूँ उम्र भर,
भूखा ही मैं मर जाऊँगा ।। वाह! वाह!! क्या ख़ूब सांसारिक निस्सारता की ओर संकेत है । बहुत ख़ूब मोहतरमा ।
हार्दिक बधाई आदरणीया रक्षिता सिंह जी ।
बेहतरीन सृजन से महा उत्सव को सुशोभित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद आदरणीया रक्षिता सिंह जी।
मोहतरमा रक्षिता जी अदब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती बढ़िया प्रस्तुति,बधाई स्वीकार करें ।कि
लाइव महाउत्सव अंक 86 को सफल बनाने के लिए सभी रचनाकारों और पाठकों का दिल की गहराइयों से धन्यवाद ।देना
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