"ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ "
2122 2122 2122 212
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
(बह्र: बह्रे रमल मुसम्मन् महजूफ )
परम आत्मीय स्वजन
86वें तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| बहर से खारिज मिसरे कटे हुए हैं और ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है इटैलिक हैं|
Mahendra Kumar
चिट्ठियों में बन्द वो साँसें पुरानी फिर कहाँ
भूल आये आख़िरी मेरी निशानी फिर कहाँ
बैठिए दो पल यहाँ और इक ग़ज़ल सुन लीजिए
ये बहारें फिर कहाँ, ये रुत सुहानी फिर कहाँ
क़ैस हूँ, हालात ने मजनूँ नहीं बनने दिया
वक़्त की ऐसी मिलेगी तर्जुमानी फिर कहाँ
ज़िन्दगी बर्बाद कर दी हमने भी ये सोच कर
"ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ"
बुत बने बैठे रहे देखा न कोई बात की
आपके जैसी मिलेगी मेज़बानी फिर कहाँ
सच कहा ज़िन्दा तो हूँ मैं यार तेरे बाद भी
ज़िन्दगी में पर मेरी वैसी रवानी फिर कहाँ
जब ख़बर में ही नहीं हो एक भी सच्ची ख़बर
तब कहानी में मिले कोई कहानी फिर कहाँ
मैं अधूरी छोड़ता हूँ दास्ताँ अपनी यहीं
तुमको ग़र सुननी नहीं हमको सुनानी फिर कहाँ
अब समन्दर हर कोई तो हो नहीं सकता मियाँ
आँख से निकले न जो ठहरे ये पानी फिर कहाँ
चार दिन की ज़िन्दगी का आख़िरी दिन आज है
अलविदा ऐ दोस्तों अब ज़िन्दगानी फिर कहाँ
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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)
देखते हो जो ये दरिया में रवानी फिर कहां ।
ये अभी बरसात का मौसम है पानी फिर कहां ।।
यूं अगर खामोश बैठोगे तो जानी फिर कहां ।
तुम सुनाओगे हमें अपनी कहानी फिर कहां ।।
जो गुज़र जाता है वो फिर लौट कर आता नहीं ।
ये ज़माना फिर कहां ये जिंदगानी फिर कहां , ।।
बैठ जाते हैं जो इल्मो फ़न की महफिल छोड़ कर ।
उनको दुनिया में मिलेगी कामरानी फिर कहां ।।
आबरु जब तक ढ़की रहती है तब तक शान है ।
जब उछल जाती है पगड़ी शादमानी फिर कहां ।।
ढूंढ़ते रहते हैं अपने जिस्मो जाँ में हम सभी ।
जो गुज़र जाती है पहली सी जवानी फिर कहांं ।।
दिन-ब-दिन आलूदगी बढ़ने लगी है शहर में ।
जो गुजर जाती है अक्सर रुत सुहानी फिर कहां ।।
जो मयस्सर हो रही थी तुझको ,गुलशन, आज तक ।
वो फ़जा में खुशबुयें अब ज़ाफ़रानी फिर कहां ।।
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Nilesh Shevgaonkar
अब वो बचपन फिर कहाँ वो बूढ़ी नानी फिर कहाँ
चाँद भी मामा था जिस में वो कहानी फिर कहाँ.
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इक खिलौने के लिये मोती बहाते थे नयन
ख़ुश्क दरियाओं में पहले सी रवानी फिर कहाँ.
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क्या वो पल था, साथ वाली सीट पर पाया तुम्हे
अब मुलाक़ातें यूँ तुम से नागहानी फिर कहाँ.
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रजनीगंधा की वो लड़ियाँ मोगरे की झालरें,
रात पहली और पहली रातरानी फिर कहाँ.
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जब गिराते ही रहे मेयार अपना आप ख़ुद
हम घटा कर अपने क़द को बनते सानी फिर कहाँ.
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ज़िन्दगी में नेकियाँ कर और दरिया में बहा
ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ.
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‘नूर’ को धोखा मुहब्बत में मिला हरदम नया
याद भी रखता सबक़ वो मुँह-ज़बानी, फिर कहाँ?
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Samar kabeer
इससे बढ़कर ज़िन्दगी में शादमानी फिर कहाँ
लूट लो इसके मज़े अह्द-ए-जवानी फिर कहाँ
बात ये उस वक़्त की है थीं दिलों में दूरियाँ
मिल गए जब हम गले,तो बदगुमानी फिर कहाँ
बेच देंगे जब वतन को ये सियासी रहनुमा
ये बता,जाऐं भला हिन्दौस्तानी फिर कहाँ
तुम थे मेरे साथ तो हर मरहला आसान था
तुम नहीं तो ज़िन्दगी में कामरानी फिर कहाँ
आज तक जो ओबीओ पर मेरी ग़ज़लों की हुई
देखिये होती है ऐसी क़द्रदानी फिर कहाँ
इश्क़ में सलमा के 'अख़्तर' ने कहा है दोस्तो
"ये ज़माना फिर कहाँ,ये जिंदगानी फिर कहाँ"
एह्ल-ए-महफ़िल ठूंस लेंगे रूई कानों में "समर"
तुम सुनाने जाओगे ये लनतरानी फिर कहाँ
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अरुण कुमार निगम
मौज कर दरिया में मौजों की रवानी फिर कहाँ
बागबाँ बदला अगर ये रातरानी फिर कहाँ ।
वक्त अच्छा चल रहा है, ऐश कर ले आज तू
कोट टाई फिर कहाँ, ये शेरवानी फिर कहाँ ।
कार कोठी शान शौकत चार दिन की चाँदनी
महकमा जैसे गया ये राजधानी फिर कहाँ ।
तू बटोरन लाल बनके, बैंक में बैलेंस भर
दिन फिरे नादान तो रातें सुहानी फिर कहाँ ।
इन सितारों की अगर कल चाल उल्टी हो गई
ये जमाना फिर कहाँ, ये जिंदगानी फिर कहाँ ।
सिर छुछुन्दर के चमेली तेल लगने दे अभी
"अरुण" घी की रोटियाँ, दालें मखानी फिर कहाँ ।
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सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'
तुम उठालो लुत्फ़ इसका शादमानी फिर कहाँ
जो गयी इक बार आती है जवानी फिर कहाँ
गर्द का तांडव मचा है जिस तरह से आजकल
नभ दिखेगा इस जहाँ में आसमानी फिर कहाँ
रह रहा जब तू अकेला बाप माँ को छोड़ कर
पाएंगे बच्चे तेरे गुण ख़ानदानी फिर कहाँ
मुफ़लिसी में दिन अगर कटने लगे तब देखना
इन परीज़ादों की होगी मह्रबानी फिर कहाँ
मैं रियासत का कोई सुल्तान हूँ ,तू ही बता
प्यार की तेरे बनाऊ मैं निशानी फ़िर कहाँ
आज में जीना हमेशा, कौन जाने यार कल
*ये जमाना फ़िर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ*
वक़्त ही मिलता नहीं जब बैठने का पास में
तब सुनोगे 'नाथ' दादी से कहानी फिर कहाँ
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राज़ नवादवी
वो शरारेवस्ल वो बहकी जवानी फिर कहाँ
वो तेरे आशुफ़्तालब की कज़दहानी फिर कहाँ
वाएक़िस्मत तुंदपा है आमदेफ़स्लेखिजाँ
आ गई है चल के दर पर गुल्फ़िशानी फिर कहाँ
इश्क़ मंजिल पर पहुंचकर हो गया बेज़ार सा
लुत्फ़ेहासिल और जज़्बेकामरानी फिर कहाँ
बाद तेरे रोयेंगे छुपकर दरोदीवार भी
मुश्कबू सुहबत की होगी दरमयानी फिर कहाँ
यार यकजाँ बाहमी हो बेतकल्लुफ़ हो गया
जब न महमाँ ही रहा तो मेज़बानी फिर कहाँ
बाद मुद्दत के मिले जब बोलती थी ख़ामुशी
प्यार ही जब तोड़ डाला सरगिरानी फिर कहाँ
क्या कहें जब आप गैरों के मुहालिफ़ हो गये
जब कहानी सच लगे तो हो कहानी फिर कहाँ
दो घड़ी रोलें बिछड़ जाने से पहले साथ हम
अश्क़ के सीने लगेगी शादमानी फिर कहाँ
लिख दिया है हाल सारा हमने ख़त में खोलकर
सामने कहने की हाज़त मुँहज़ुबानी फिर कहाँ
हौसलों को रख बुलंदी से भी ऊँचे बुर्ज़ पे
हो फ़लक पर जब अना तो नातवानी फिर कहाँ
राज़ मरने के भी पस है ज़िंदगी तू सोच मत
‘ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ’
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Tasdiq Ahmed Khan
देख तो लूँ मनज़रे हुसने जवानी फिर कहाँ |
जाने वाले से मिलन हो नागहानी फिर कहाँ |
दूर करले उनसे मिलकर बदगुमानी फिर कहाँ |
यह इनायत फिर कहाँ ये महरबानी फिर कहाँ |
शुक्र तो कर तू हवा का परदा रुख़ से हट गया
ज़िंदगानी में क़ियामत वरना आनी फिर कहाँ |
काट डालेंगे ज़मीं के पेड़ ही सारे अगर
आप पीने के लिए ढूंढ़ेंगे पानी फिर कहाँ |
जो रिआया से किए वादे न पूरे कर सके
उसको मिल पाएगी आख़िर हुक्मरानी फिर कहाँ |
वक़्तेआख़िर है अयादत के लिए आ जाओ भी
यह ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ |
छेड ख़ानी तो ज़मीं से कर रहा है आदमी
जाएँगी आख़िर बलाएँ आसमानी फिर कहाँ |
आ गया है वक़्त अब बोलें ख़िलाफे ज़ुल्म सब
मुल्क में लोगों में होगी हम ज़बानी फिर कहाँ |
बुलबुलों जी भर के गालो फस्ले गुल जाने को है
दौर आते ही खिज़ाँ का नगमा ख़्वानी फिर कहाँ |
अपना दिलबर मुनतखिब करने में देरी मत करो
वरना जा कर आए वापस ये जवानी फिर कहाँ |
ढूढ़ने से भी ज़माने में न अब तक मिल सका
जा के मैं तस्दीक़ देखूं उनका सानी फिर कहाँ |
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
इस लड़कपन के सिवा यूँ हम-ज़बानी फिर कहाँ
और बचपन के सिवा ये खुशबयानी फिर कहाँ।1।
हैे जमाना ये कि जिसमें जाँ निसारी खूब है
दोस्ती की बाद इसके कद्रदानी फिर कहाँ ।2।
आज मरती है जो तुझ पर खूब इसकी कद्र कर
जो फिदा होती तुझी पर यह जवानी फिर कहाँ।3।
प्यार का आभार जिसने है दिया मौका जो ये
चाँद तारो में छिपी ये ख्वाब ख़्वानी फिर कहाँ ।4।
प्यार की फसलें उगा बस और नफरत तू न बो
ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ।5।
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Manan Kumar singh
शाम आई दिन ढ़ले,इतनी सुहानी फिर कहाँ
प्रीत जगती जो दबी,होगी पुरानी फिर कहाँ।1
बागवानों ने सहे कितने सितम हर मर्तबा
फूल कितने भी खिलेंगे, रातरानी फिर कहाँ।2
शेर सजते जा रहे बस,बेसबर हैं काफिये
दास्तानें हैं मुखर दिल की कहानी फिर कहाँ।3
बाँचिये मुखड़े,मुख़ालिफ़ हो गया लगता जहाँ,
हो गयीं बातें बहुत,कुछ भी अजानी फिर कहाँ।4
टूटते हैं ख्वाब हर पल बस्तियाँ उजड़ी हुईं
वक्त जब फटकारता,बचती रवानी फिर कहाँ।5
लाख बरसा है गगन पर झुर्रियाँ जातीं नहीं
सिलसिला हो रेत का ,तब शेष पानी फिर कहाँ।6
बुलबुले उठते रहेंगे रोज मिटने ले लिए
ये जमाना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ।7
केश बिखरा देखिये फिर वह रही पुचकारती
मैं मनाता,मान जाये,बात मानी फिर कहाँ।8
चाहतों ने दी हवा चंचल हुआ जाता 'मनन'
अनकही बातें बहुत हैं,धुन पुरानी फिर कहाँ।9
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munish tanha
देखता हूँ आपको रहती रवानी फिर कहाँ
आप के बिन रात लगती है सुहानी फिर कहाँ
काटती जो देख मस्तक थी सदा से झूठ का
आज उसकी है जरूरत तो भवानी फिर कहाँ
भूख जिस्मों की लगे है आजकल का प्रेम ये
जान देकर थी जो बनती अब कहानी फिर कहाँ
ये लहू की दौलतें हैं बांटते इनको चलो
ये जमाना फिर कहाँ ये जिन्दगानी फिर कहाँ
अब बुढ़ापा आ गया धर्म की कुछ फ़िक्र कर
याद दुनिया ही रही तो जान जानी फिर कहाँ
सांस उखड़ी खत्म रिश्ता इस तरह से हो गया
रो लिए दिन चार गर तो याद आनी फिर कहाँ
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
आज साकी कुछ दिखा दे ये जवानी फिर कहाँ,
लूट ले महफ़िल बदन की अर्गवानी फिर कहाँ।
इस जमाने की खुशी में जिंदगी कुर्बाँ करें
ये जमाना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ।
कद्र बूढ़े गुरुजनों की माँ पिता की हम करें,
कब उन्हें ले जाए दौरे आसमानी फिर कहाँ।
नौजवाँ कुछ कर दिखा जा इस वतन के वास्ते,
सर धुनोगे बाद में ये नौजवानी फिर कहाँ।
क्या गज़ब मिसरा मिला तरही ग़ज़ल का इस दफा,
खोल के दिल सब लिखो अख्तर शीरानी फिर कहाँ।
खून की स्याही से नज़्में लिखता आया है 'नमन',
ओ बी ओ को छोड़कर ये नज़्म-ख्वानी फिर कहाँ।
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sagar anand
ख़्वाब की पहली छुअन सी, रातरानी फिर कहां
गुम गया बोलो मेरी, आंखों का पानी फिर कहां
आयते हैं, खुश्बुयें हैं, मन्त्र भी, सज़दे भी हैं
पाक़ दिल, पाकीज़गी की, धूपदानी, फिर कहां
आ ज़रा सा, चूम लें हम, इश्क़ के, अल्फ़ाज़ को
ये ज़माना, फिर कहां, ये जिंदगानी, फिर कहां
दौलतों की, दौड़ में हम, इस कदर, मशगूल हैं
अश्क़ में लिपटी हुई, पहली कहानी, फिर कहां
हां, हमारी ख़्वाहिशों ने, क्या नहीं, पाया अगर
हां, मगर इंसानियत वो, खानदानी फिर कहां
उस तरफ़, जाने से पहले, छू, समन्दर को ज़रा
नाखुदा, कश्ती, लहर औ बादबानी फिर कहां
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Balram Dhakar
खो गए हैं ख़्वाब सारे आसमानी फिर कहाँ
हौसलों के साथ थी वो नौजवानी फिर कहाँ
दुश्मनी भी जो निभाते थे सलीके से कभी
आज के इस दौर में वो ख़ानदानी फिर कहाँ
इश्क़ का जब रंग चढ़ जाए किसी इंसान पर
रंग फिर कोई हरा या जाफ़रानी फिर कहाँ
द्वारका के राजमहलों में बसी जब ज़िन्दगी
पनघटों पर गोपियों से छेड़खानी फिर कहाँ
साथ जब तक है हमारा आओ यारों झूम लें
ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िन्दगानी फिर कहाँ
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Ravi Shukla
शाम रंगी और शराबे ज़ाफरानी फिर कहाँ,
मैकदे की रौनकें ये रुत सुहानी फिर कहाँ।
जो मिला है वक्त उसको आज ही जी लीजिये ,
ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ।
देख वाइज फिर तुझे शायद नहीं मौका मिले,
आरिज़ों से ज़ुल्फ़ की ये छेड़खानी फिर कहाँ।
सुब्ह दम कितनी दिखाई दे रही थीं रौनकें,
शाम को जाती है आख़िर रुत सुहानी फिर कहाँ।
आपके आने से महकी आज आँगन में मिरे,
देखियेगा जागती है रातरानी फिर कहाँ।
आप ही से पाई मैंने शेर कहने की समझ,
गर नहीं हों आप ग़ज़लों में रवानी फिर कहाँ।
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rajesh kumari
आज है जो इस लहू में यह रवानी फिर कहाँ
जाँ फ़िदा कर दे वतन पर यह जवानी फिर कहाँ
ले अदावत की कलम जब सामने बैठा अदू
इक मुहब्बत की ग़ज़ल पर तर्जुमानी फिर कहाँ
बैर की आतिशकदा में गर समंदर जल गया
दोस्ती की किश्तियाँ ये आनी जानी फिर कहाँ
सामने हमराज बनकर वार पीछे से करे
लाश कंधों पे उखुव्वत की उठानी फिर कहाँ
वादियों को खंडहरों की लाश में तब्दील कर
ढूँढयेगा प्यार की सच्ची निशानी फिर कहाँ
पत्थरों के शहर में सब झूठ के किरदार हैं
कौन लिक्खे गुड्डे गुड़ियों पर कहानी फिर कहाँ
जल गए हैं जो रकाबत की तपिश की धूप में
उन गुलों में पाक निकहत ज़ाफ़रानी फिर कहाँ
गर खुदा की उस अदालत में कभी पकड़े गए
सोचिये तो फ़लसफ़ा वो हकबयानी फिर कहाँ
काम पूरे कर सभी जो हैं अधूरे ‘राज’ तू
ये जमाना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ
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SALIM RAZA REWA
हुस्न-ए-जाना लब की लाली रंग धानी फिर कहाँ i
वो नहीं तो ग़ुंचा-ओ-गुल रात रानी फिर कहाँ ii
दोस्तों संग खेलना छुपना दरख़्तों के तले i
वो सुहाना पल कहाँ यादें सुहानी फिर कहाँ ii
थपथपाकर गुनगुनाकर मुझको बहलाती सदा i
खो गईं वो लोरिया अब वो कहानी फिर कहाँ ii
तेरी बाँहों में गुज़रते थे हसीं जो रात दिन i
बिन तेरे खुशियों भरी वो जिंदगानी फिर कहाँ ii
पेंड पीपल का घना जो छाँव देता था सदा i
गांव में मिट्टी का घर छप्पर वो छानी फिर कहाँ ii
खो गया बचपन जवानी औ बुढ़ापा आ गया i
फिर ना लौटेगा वो बचपन वो जवानी फिर कहाँ ii
साथ तेरे जो गुज़रते हैं मेरे अनमोल पल i
ये ज़माना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ ii
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sunanda jha
चहचहाती भोर प्यारी जाफ़रानी फिर कहाँ ।
रात रोशन जुगनुओं से वो सुहानी फिर कहाँ ।
वो बुजुर्गों से सुनी किस्से कहानी फिर कहाँ ।
चाँद पे चरखा चलाती बूढ़ी नानी फिर कहाँ ।
खो गयी सब मस्तियाँ भूले शरारत भी सभी ।
नाव कागज़ की कहाँ बारिश का पानी फिर कहाँ ।
खिल रहीं मासूम कलियाँ आजकल दहशत लिए ।
घूमती बेख़ौफ़ वो अल्हड़ जवानी फिर कहाँ ।
पाँव जिसके हैं ज़मीं पर उसको ही बरक़त मिली ।
है ख़ुदा बर्दाश्त करता बदगुमानी फिर कहाँ ।
बेच कर सुख चैन दौलत क्यों जमा तुम कर रहे ।
ये ज़माना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ ।
फूल जबसे हो रहे आयात अपने मुल्क में ।
मोगरा ,चंपा ,चमेली ,रात रानी फिर कहाँ ।
टोक दें माँ बाप तो देते हैं धमकी जान की ।
गलतियों से सीखने की ज़िद पुरानी फिर कहाँ ।
दर्द में डूबे नहीं गर 'सीप' हों जज़्बात तो ।
शेर होंगे बेजुबां होगी रवानी फिर कहाँ
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कंवर करतार
मौज मस्ती चंद रोज आखिर जवानी फिर कहाँ I
दोस्तों में प्यार की वो ख़ुश-बयानी फिर कहाँ II
ख़्वाबों में बसता जो ऐसा यार-ए–जानी फिर कहाँ I
दिल में जो सोज़-ए–मुहब्बत की रवानी फिर कहाँ II
दिल के पुर्ज़े पुर्ज़े पर थी हो नुमायाँ अक्स जो ,
लिखने वाले लिख गये ऐसी कहानी फिर कहाँ I
फूल खिलकत के ले आए तोड़ हम उनके लिए ,
जाने उनकी कब मिलेगी मेज़बानी फिर कहाँ I
फिर मिलेंगे कब कहाँ जी भर के बातें कर लें हम ,
दौर-ए –उल्फ़त फिर कहाँ ये शादमानी फिर कहाँ I
आदमी हैं आदमी से काम कुछ तो कर चलें ,
ये जमाना फिर कहाँ ये जिंदगानी फिर कहाँ I
वो शराफ़त और नफ़ासत के हैं पैकर बन गये ,
गालिवन उनकी सदाकत का भी सानी फिर कहाँ I
आ चमन में सुर्ख इक ‘कंवर’ लगाएं फूल हम ,
कुछ दिनों की जिन्दगी होगी निशानी फिर कहाँ I
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मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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