For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियों

सादर वन्दे,

जैसा कि आप सभी को ज्ञात ही है कि ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "ओबीओ लाइव महाउत्सव" का आयोजन किया जाता है | दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन में एक कोई विषय देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है | पिछले १५ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने १५ विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर  कलम आजमाई की है ! इसी सिलसिले की अगली कड़ी में ओपन बुक्स ऑनलाइन पेश कर रहा है:-

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  १६   

विषय - "कन्यादान"  
आयोजन की अवधि बुधवार ८ फरवरी २०१२ से शुक्रवार १० फरवरी २०१२

महा उत्सव के लिए दिए विषय "कन्यादान" को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है | मित्रों, ध्यान रहे कि बात बेशक छोटी कहें मगर वो बात गंभीर घाव करने में सक्षम हो तो आनंद आ जाए |

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है :-

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

 अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन समिति ने यह निर्णय लिया है कि "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १६ में पूर्व कि भाति सदस्यगण आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |


(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो बुधवार ८ फरवरी लगते ही खोल दिया जायेगा )


यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com  पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |


"महा उत्सव"  के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ


मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

Views: 14262

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय नीरज जी बहुत ही सारगर्भित चौपाई. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये

atiuttam,lajabaab...tareef ke liye shabd chote pad rahe hain.

नीरज जी, बहुत ही खुबसूरत चौपाइयां, विषय को समाहित करती हुई, बधाई आपको |

नीरज जी, आपकी चौपाई पढ़कर आनंद आ गया. बधाई.

बहुत सुन्दर चौपाई नीरज भाई, साधुवाद स्वीकार करें.

भाई नीरज जी,  इस सुगढ़ चौपाई के लिये मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें. 

भाईजी,  आपने जिस लगन और गंभीरता से इन पंक्तियों की रचना की है, सही कहिये,  आप द्वारा अबतक प्रेषित समस्त प्रविष्टियों से बनी धारणा अब नये अर्थ पा रही है.  कृपया इस नयी धारणा को संजो कर रखियेगा.  

पुनश्च बधाइयाँ और शुभेच्छाएँ.

समस्त स्नेही मित्रों और आदरणीय गुरुजनों को सादर प्रणाम. ईश्वर की परम कृपा पुरखों के पुन्य आशीष स्वजनों और आप सभी स्नेही जनों की शुभकामनाओं का सुफल है कि मेरा छोटा सा आशियाना  तैयार हो गया है और परसों १० फरवरी को "गृह पूजा" का कार्यक्रम नियत हुआ है... उसी में व्यस्तता के वजह से अपने प्रिय मंच पर अपनी सक्रिय भागीदारी समाहित नहीं कर पा रहा... संभवतः इस महौत्सव के आनंद से भी वंचित होना होगा... अनुपस्थिति हेतु क्षमा निवेदन सहित आप सभी स्वजनों को पूजा में (मकान नंबर ४१९, सेजबहार हाउसिंग बोर्ड कालोनी, रायपुर छ ग प्रातः १० से संध्या ४) सादर आमंत्रण के साथ इस महाउत्सव में एक अनगढ़ सी रचना प्रस्तुत है-

|

बाबा के जीवन में वो इक वरदान है

मैया की अंखियों की वो तो मुस्कान है

छोड़ सखी, गलियाँ वो बचपन की आज रे

ऐसी डगर चली जो बिलकुल अनजान है

 

हरपल बन चन्दा वो शीतल घर करती थी

तीजों त्यौहारों में खुशियों सी झरती थी

दीपों सी, सीपों सी, निशछल वो उज्जर वो

छूने में उसको पुरवैया भी डरती थी

सदगुण की जगमग वो पावन सी खान है

छोड़ सखी, गलियाँ वो बचपन की आज रे

ऐसी डगर चली जो बिलकुल अनजान है

 

अठरह बसंत बीते परियों सी आई थी

घरभर की गोदी में खिल के मुस्काई थी

तितली वो, चिड़िया वो, भोली सी गुडिया वो

बगियन में फिरती वो, फुदकी इठलाई थी

उसके बिन दुनिया क्या? बिलकुल निष्प्राण है

छोड़ सखी, गलियाँ वो बचपन की आज रे

ऐसी डगर चली जो बिलकुल अनजान है

 

भैया की अंखियों से मोती बन खोई है

मैया की छाती लग बिलखी है रोई है

घर के मुंडेरों की रंगत वो सोंधी सी

बाबा की मुस्कानें रूठी हैं, सोई हैं

सुख दुख की बदली ज्यों ये कन्यादान है...

छोड़ सखी, गलियाँ वो बचपन की आज रे

ऐसी डगर चली जो बिलकुल अनजान है

 

दूजी ही दुनिया इक जाके अपनायेगी

अम्बर का उसके ही चन्दा हो जायेगी

दमकेगी चमकेगी बिटिया हो लछमी सी

सास ससुर के संग पिया मन को भायेगी

उसे घर बनायेगी जो अभी मकान है....

छोड़ सखी, गलियाँ वो बचपन की आज रे

ऐसी डगर चली जो बिलकुल अनजान है

 

कैसे हैं दिल का जो टुकड़ा ले जाते हैं

धोखा जो देते हैं खुद को भरमाते है

पर घर की बेटी को बेटी ना माने क्यूँ?

स्वारथ में ऐसे घर कितने जल जाते हैं

ऐसों को कैसे हम बोलें इंसान हैं?

छोड़ सखी, गलियाँ वो बचपन की आज रे

ऐसी डगर चली जो बिलकुल अनजान है

 

बेटी तो बेटी है उसकी हो मेरी हो

बदलें स्वयं को हम अब नाही देरी हो

आती जो तज के घर लछमी की सूरत ले

खुशियों में लहके वो घर डहर चितेरी हो

इतना ही नवयुग का सच्चा सा ज्ञान है...

छोड़ सखी, गलियाँ वो बचपन की आज रे

ऐसी डगर चली जो बिलकुल अनजान है

_________________________________

सादर.

- संजय मिश्रा 'हबीब'

गृहप्रवेश की हार्दिक बधाई संजय जी…बेहद खूबसूरत सुन्दर शब्दों से सजी  रचना वह दिली दाद हाज़िर हैं 

गृहप्रवेश की हार्दिक बधाई संजय जी…(vo bhi mere hi grih-nagar Raipur me to dubble BADHAIYAN )

बेटी तो बेटी है उसकी हो मेरी हो

बदलें स्वयं को हम अब नाही देरी हो...bahur marm-sparshi mohak rachana.


आशियाने की बहुत बहुत बधाई मिश्रा जी

गृह प्रवेश के लिए आपको और आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई आदरणीय संजय मिश्रा हबीब जी...रचना के लिए भी बधाई, क्योंकि आपने अपने व्यस्ततम समय में से कुछ क्षण निकाल कर मंच को आदर प्रदान किया है. हार्दिक बधाई

sabse pahle grahpravesh ki badhaai.fir itni shandar rachna ki badhaai.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service