For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २२

परम आत्मीय स्वजन

अप्रैल माह का मिसरा -ए- तरह मुग़ल काल के अंतिम दौर के शायर मोमिन खान 'मोमिन' की गज़ल से लिया गया है| मोमिन इश्क और मुहब्बत के शायर थे| उनकी ग़ज़लों का माधुर्य और नाज़ुकी उनके अशआर पढ़ने से सहज ही महसूस की जा सकती है| कहते हैं उनके एक शेर पर ग़ालिब ने अपना पूरा दीवान उनके नाम करने की घोषणा कर दी थी| इस बार का तरही मुशायरा ऐसे अज़ीम शायर को ओ बी ओ की तरफ से श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित है| मिसरा है:-


 

"तेरा ही जी न चाहे तो बातें हज़ार हैं "

बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ

(इसी बह्र पर ओ बी लाइव तरही मुशायरा -१९ भी आयोजित हो चुका है जिसे य...

ते/२/रा/२/ही/१      जी/२/न/१/चा/२/हे/१    तो/१/बा/२/तें/२/ह/१    जा/२/र/१/हैं/२

(तख्तीय करते समय जहाँ हर्फ़ गिराकर पढ़े गए हैं उसे लाल रंग से दर्शाया गया है)


रदीफ: हैं 

काफिया: आर (हज़ार, बेकरार, खाकसार, इन्तिज़ार, करार आदि)


विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिककर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें|

मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 अप्रैल 2012 दिन शनिवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 30 अप्रैल 2012 दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २१ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगा,जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  28 अप्रैल 2012 दिन शनिवार  लगते ही खोल दिया जायेगा )

यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |

Views: 15282

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आभारी हूँ

आदरणीय प्रभाकर जी, आपकी ग़ज़ल लाल रंग के फॉण्ट में लिखी है, इसलिए विशेष नहीं कही जा सकती, बल्कि इसको विशेष बनाती है इसकी कसावट और गहराई. क्या क्या नहीं कह गयी ये ग़ज़ल... दूसरा शेर ये चीख चीख कर कह रहा है कि आम जनता कि मेहनत न होती तो गगनचुम्बी इमारतों की कल्पना कर पाना संभव नहीं था.

तथाकथित 'विकास' का ढोंग पीटने वालों के लिए कितना मुफीद शेर कहा आपने...

//महरूम रौशनी से, गरीबों के झोंपड़े

बस कागजों में बोलते सारे सुधार हैं....//

कश्मीर के दर्द और चिनार का हवाला....नि:शब्द कर गया....

आखरी के दो शेर भी किसी से कम नहीं हैं....हिम्मत ए मर्दा मदद ए खुदा वाली बात कह दी...लेकिन शायद हिम्मत से ज्यादा राजनैतिक इच्छाशक्ति पर सवाल उठाया है आपने....आखरी शेर ने तो जैसे लुहार की चोट सा असर किया है....

किन शब्दों में इस ग़ज़ल की तारीफ करूँ, समझ नहीं आ रहा...हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये...

धरम भाई, आपकी ज़र्रानवाज़ी का दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

कैसे न हों उदास, ये मासूम तितलियाँ
मौजूद आस पास, हजारों ही खार हैं

वाह वाह, जे बात, सभी शेर उम्दा कहे हैं , गरीबों की झोपड़े वाला शेर भी बढ़िया लगा, अच्छी ग़ज़ल की प्रस्तुति, बधाई स्वीकार करें आदरणीय |

आभारी हूँ बागी भाई

आदरणीया सीमा जी ! बहुत ही उच्च कोटि के भावों से युक्त ग़ज़ल कही है आपने ! सभी शेर अच्छे हैं यह शेर खास तौर पर बहुत पसंद आया

//थी साफ़ नज़र साफ़ दिल ओ साफ़ जुबां भी,
बस इसीलिए हमारे हमसे शर्मसार हैं ll//

इस सद्प्रयास हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई! इसी तरह से प्रयास करती रहें तो शिल्प भी खुद बखुद सधता चला जायगा ! सादर

आदरणीया सीमाजी, सिर्फ एक शेर पर ही नहीं वरन पूरी की पूरी गज़ल जिसका भावपक्ष बहुत ही सुदृढ़ है, पर हमारी ओर से बहुत-बहुत मुबारक बाद स्वीकारें .....:-)

साधने के क्रम में एक और सुन्दर प्रयास

बधाई

सुन्दर भाव प्रयास के परिणाम दिख रहे हैं हम भी पीछे पीछे कोशिश में हैं 

माँ की दुआएं तीरगी मे दीप सी जलीं, 
उसकी नवाज़िशें ओ करम बेशुमार हैं ll

बहुत पसंद आया यह शेर 

बहुत ख़ूब! आखिरी शे'र तो सीधा दिल में उतर गया अपने ही दिल की बात सा लगा|

थी साफ़ नज़र साफ़ दिल ओ साफ़ जुबां भी,
बस इसीलिए हमारे हमसे शर्मसार हैं  --------- वाह!!

वाह वाह सीमा जी, बहुत खूब. बहुत सुंदर अशआर कहे हैं आपने. अन्य शेअर तो बढ़िया कहे ही हैं लेकिन गिरह भी बड़ी जबर्दस्त लगाई है, बधाई स्वीकार करें.

माँ की दुआएं तीरगी मे दीप सी जलीं,
उसकी नवाज़िशें ओ करम बेशुमार हैं .

बहुत खूब. यह शे'र सीधे मन में उतर गया.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरेया, सहज, सरल स्वाभाविक सुन्दर शब्द-चयन के साथ अच्छी रचना हुई,  बधाई  !"
43 seconds ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"जी, आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' मेरी  प्रस्तुति को आपकी बहुमूल्य प्रशंसा मिली,…"
6 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीया, सु श्री प्रतिभा पाण्डे जी, नमन ! आपका आभारी हूँ, ग़ज़ल को आपकी अनुशंसा प्राप्त हुई, …"
13 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आपकी उत्साहवर्धन करती इस प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी"
14 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब ,  आदाब सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।"
16 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. गिरीश भण्डारी जी, नमन, आप ने मक़ते कै शे'र में  मेरा ध्यान आकर्षित किया, बंधुवर, …"
18 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार ।सहमत "
18 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
19 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय जी  मन को छूती इस उत्तम प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई ।"
24 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"वाह  आदरणीया प्रतिभा जी बचपन की यादों को ताजा करती आपकी  इस मासूम सी रचना के लिए हार्दिक…"
26 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई  आदरणीय जी "
29 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीया प्रतिभा जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार ।"
32 minutes ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service