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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - २३ (Now closed with 1126 Replies)

परम आत्मीय स्वजन

पिछले मुशायरे मे बहुत ख़ूबसूरत गज़लें प्राप्त हुई, जिसमे कि कई शायर जिन्होंने अभी हाल ही मे गज़ल विधा मे कलम आज़माना प्रारम्भ किये हैं, वे भी हैं, यह इस बात का परिचायक है की ओ बी ओ का यह आयोजन धीरे धीरे अपने उद्देश्य मे सफल हो रहा है | कई लोगो को बह्र के साथ समस्यों से भी दो चार होना पड़ा | कहना चाहूँगा कि बह्र मुजारे मुशायरों की एक बहुत ही प्रसिद्द बह्र है और तमाम शायर इसी बह्र मे अपनी गज़लें बड़ी खूबसूरती के साथ पेश करते हैं | इसी बह्र मे और मश्क हो जाये इसलिए इस बार का मुशायरा भी बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ पर ही आयोजित किया जा रहा है | इस बार का मिसरा- ए- तरह भारत  के मशहूर गीतकार नक्श लायलपुरी जी की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया जा रहा है | नक्श लायलपुरी ऐसे शायर थे जिन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी लाजवाब गज़लें लिखीं और कई हिट गीत दिए | 24 फरवरी 1928 को लायलपुर (अब पाकिस्तान का फैसलबाद) में जन्मे नक्श लायलपुरी जी का असली नाम जसवंत राय था | बाद मे शायर बनने के बाद उन्हें नक्श लायलपुरी के नाम से जाना गाया | मिसरा है:-

"लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नहीं"

221  2121 1221 212

बह्र: बह्र मुजारे मुसम्मन अखरब मक्फूफ़ महजूफ

मफऊलु फाइलातु मफाईलु फाइलुन

लो/२/अब/२/तु/१   म्हा/२/री/१/रा/२/ह/१    मे/१/दी/२/वा/२/र/१     हम/२/न/१/हीं/२

(तख्तीय करते समय जहाँ हर्फ़ गिराकर पढ़े गए हैं उसे लाल रंग से दर्शाया गया है)

रदीफ: हम नहीं 

काफिया: आर (दीवार, इन्कार, बीमार, तलबगार, खतावार, झंकार आदि)

जिस गज़ल से मिसरा लिया गया है उसका विडियो सबसे नीचे देखा जा सकता है|

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | अच्छा हो यदि आप बहर में ग़ज़ल कहने का प्रयास करे, यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी की कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें |


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मई 2012 दिन रविवार  लगते ही हो जाएगी और दिनांक 29 मई   2012 दिन मंगलवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |


अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २३ जो पूर्व की भाति तीन दिनों तक चलेगाजिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन स्तरीय गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं | साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |


मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 

( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २७ मई २०१२ दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा )

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New "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक २३ के सम्बन्ध में एक सूचना

मंच संचालक 

राणा प्रताप सिंह 

Views: 18285

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Replies to This Discussion

भाई धर्मेन्द्र जी,  क्या अंदाज़ है ! वाह-वाह  !!

मतले से तो खुद्दारी छलक-छलक के बहिरा रही है !  और, ऐसा ही अंदाज़ कुछ इस शे’र में भी तारी है - 

लिपटे हुए हैं राख में पर यूँ न छेड़िए
मुट्ठी में ले लें आप वो अंगार हम नहीं

आखिरी शेर पर विशेष बधाई स्वीकार करें.

बहुत बहुत शुक्रिया सौरभ जी

 

लिपटे हुए हैं राख में पर यूँ न छेड़िए, मुट्ठी में ले लें आप वो अंगार हम नहीं..........बहुत उम्दा शेर भाई !

 रोटी दिखा के माँ की बुराई न कीजिए, भूखे तो हैं जरूर प’ गद्दार हम नहीं...अच्छा है। 

घाटा, नफ़ा, उधार, नकद, मूल, सूद सब, सीखे पढ़े हैं खूब प’ बाजार हम नहीं। ............बेहतरीन मकते का शेर 
दाद कुबूल करें धर्मेंद्र भाई !

शुक्रिया सूर्या जी

धर्मेन्द्र भाई बड़ी मुश्किल में डाल दिया आपने. किस शे'र की तारीफ करूँ किसे छोडूं... हर शे'र एक से बढ़कर एक...

जितनी बार पढ़ता हूँ ... एक नया आनंद अत है. दिली बधाई.

बहुत बहुत बहुत धन्यवाद

वाह जबरदस्त अंदाज जबरदस्त भाव बहुत उम्दा ग़ज़ल धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी बधाई स्वीकार करें 

शुक्रिया राजेश कुमारी जी

आदरणीय धर्मेन्द्र जी,

बेहतरीन ग़ज़ल पेश की आपने|

लिपटे हुए हैं राख में पर यूँ न छेड़िए

मुट्ठी में ले लें आप वो अंगार हम नहीं --- दमदार शे'र ..

रोटी दिखा के माँ की बुराई न कीजिए

भूखे तो हैं जरूर प’ गद्दार हम नहीं ---- ये शे'र तो सीधे दिल में उतर गया..

दिल के वरक़ पे नाम लिखा है बस एक बार

आते जो छप के रोज, हैं अख़बार, हम नहीं -- वाह... क्या ख़ूब सुखन है...

दाद क़ुबूल करें|

बहुत बहुत शुक्रिया संदीप जी

खुद्दारी से भरी गजल

शुक्रिया दिलबाग जी

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"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
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"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
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"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
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"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
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"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
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