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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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मेरी हद तंग करो ना भाई भाई के झगड़े में
रोते रोते हमसे गमगीं पुरखों की दीवार कहे।
सिर्फ़ ख़ुदा के आगे झुकता हूं , मुझसे उम्मीद न रख,
शाह से एक नक़ीब फ़कीर की गैरत-ए-दस्तार कहे।
waah waah...nayab gazal...bahut bahut badhai Dr saab...
तहे दिल आपका शुक्रिया शेषधर जी ,
आपके कमेन्ट्स का बहुत देर से इन्तज़ार था।
नफरत के शोले धधकाकर, आग बर्फ में लगा रहा.
छुरा पीठ में भोंक पड़ोसी, गद्दारी को प्यार कहे..
waah acharya jee waah....kya likha hai aapne...bahut khub....swagat hai dil se iska
सही सुना था " वो बात करते हैं हम शेर सुनते हैं "
नफरत के शोले धधकाकर, आग बर्फ में लगा रहा.
छुरा पीठ में भोंक पड़ोसी, गद्दारी को प्यार कहे....
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