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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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शम्सी साहब आदाब
बड़ी दयनीय स्थिति दिखाई दे रही है आपकी
गज़ल का एक ये मूड भी पसंद आया|
मतला क़बिले तारीफ़, इक बेहतरीन हज़ल का
मुज़ाहिरा करवाया है आपने , बधाई व आभार।
बेटी तो अंगूर की घर के अंदर मिलती है,
अंडों और नमकीन का बाहर ठेला लगता है ।
bahut badhiya moin sahab...bahut hi khubsurati se sajaya hai aapne is gazal ko......dil se swagat hai
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